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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 17
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - इन्द्राग्न्यादयो देवताः छन्दः - भुरिग्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    उ॒क्ताः स॑ञ्च॒राऽएता॑ऽऐन्द्रा॒ग्नाः प्रा॑शृ॒ङ्गा मा॑हे॒न्द्रा ब॑हुरू॒पा वै॑श्वकर्म॒णाः॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒क्ताः। स॒ञ्च॒रा इति॑ सम्ऽच॒राः। एताः॑। ऐ॒न्द्रा॒ग्नाः। प्रा॒शृ॒ङ्गाः। प्र॒शृ॒ङ्गा इति॑ प्रऽशृ॒ङ्गाः। मा॒हे॒न्द्रा इति॑ महाऽइ॒न्द्राः। ब॒हु॒रू॒पा इति॑ बहुऽरू॒पाः। वै॒श्व॒क॒र्म॒णा इति॑ वैश्वऽकर्म॒णाः ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उक्ताः सञ्चराऽएताऽऐन्द्राग्नाः प्राशृङ्गा माहेन्द्रा बहुरूपा वैश्वकर्मणाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उक्ताः। सञ्चरा इति सम्ऽचराः। एताः। एेन्द्राग्नाः। प्राशृङ्गाः। प्रशृङ्गा इति प्रऽशृङ्गाः। माहेन्द्रा इति महाऽइन्द्राः। बहुरूपा इति बहुऽरूपाः। वैश्वकर्मणा इति वैश्वऽकर्मणाः॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 17
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    भावार्थ -
    (सञ्चराः उक्ता:) इनके साथ के अनुचर सूर्य कहे जा चुके हैं। ये विशेष समझो कि (ऐन्द्राग्नाः) इन्द्र और अग्नि के ( एता:) चितकबरे वर्ण के (प्राशृङ्गाः माहेन्द्राः) महान् राजा के अनुचर खुले हिंसा साधन, हथियारों को आगे थामे हुए हों। (वैश्वकर्मणां :) विश्वकर्मा एञ्जीनियर के अधीन (बहुरूपाः) नाना प्रकार के कर्मचारी हों । इस प्रकार राष्ट्र के भिन्न-भिन्न पदाधिकारियों के अधीन उनके भृत्य, साथी सड्गियों के नाना वर्ण के पोशाकों, स्वभावों और प्रकारों का वर्णन कर दिया । तदनुसार ही उनके विभागों में काम करने वाले पशुओं और यानों आदि के भी भिन्न-भिन्न रूप के संकेत कर लेने चाहिये । अश्वमेध यज्ञ में प्रतिनिधिवाद से इन वर्णों के बकरों को ही लेकर २१ यूथों में बांधने को लिखा है । पर जब अश्व राष्ट्र का प्रतिनिधि है तो ये बकरे भी राष्ट्र के कार्यों में नियुक्त पुरुषों के उपदर्शक मात्र हैं ।

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