Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 25
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - कालावयवा देवताः छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    1

    अह्ने॑ पा॒राव॑ता॒नाल॑भते॒ रात्र्यै॑ सीचा॒पूर॑होरा॒त्रयोः॑ स॒न्धिभ्यो॑ ज॒तूर्मासे॑भ्यो दात्यौ॒हान्त्सं॑वत्स॒राय॑ मह॒तः सु॑प॒र्णान्॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अह्ने॑। पा॒राव॑तान्। आ। ल॒भ॒ते॒। रात्र्यै॑। सी॒चा॒पूः। अ॒हो॒रा॒त्रयोः॑। स॒न्धिभ्य॒ इति॑ स॒न्धिऽभ्यः॑। ज॒तूः। मासे॑भ्यः। दा॒त्यौ॒हान्। सं॒व॒त्स॒राय॑। म॒ह॒तः। सु॒प॒र्णानिति॑ सुऽप॒र्णान् ॥२५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अह्ने पारावतानालभते रात्र्यै सीचापूरहोरात्रयोः सन्धिभ्यो जतूर्मासेभ्यो दात्यौहान्त्सँवत्सराय महतः सुपर्णान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अह्ने। पारावतान्। आ। लभते। रात्र्यै। सीचापूः। अहोरात्रयोः। सन्धिभ्य इति सन्धिऽभ्यः। जतूः। मासेभ्यः। दात्यौहान्। संवत्सराय। महतः। सुपर्णानिति सुऽपर्णान्॥२५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 25
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    दिन के प्रारम्भ के लिये ( पारावतान् ) कबुतरों को देखे, वे भोर में ही उठते हैं, घूत्कार करते हैं। वैसे मनुष्य भी शीघ्र उठे और मन्त्रपाठ करे । अथवा दिन के कार्य के लिये कबूतरों को प्रयोग करे, वे दिन में दूर तक देखते हैं । ( रात्र्यै: सीचापूः ) रात्रि के कार्य के लिये 'सीचापू:' नाम पक्षी को लाभ करे । (अहोरात्रयोः संधिभ्यः जतुः) दिन और रात की संधिकाल, संध्या संमय में 'जंतू', चमगीदड़ों का ज्ञान करे | वे उस समय अच्छा देखतीं और अति कौशल से आहार पाती हैं । ( मासेभ्यः दात्यौहान् ) मासों की उत्तमता के ज्ञान के लिये काले कौओं का ज्ञान करे । ( संवत्सराय महतः सुपर्णान् ) संवत्सर की उत्तमता को जानने के लिये बड़ी जाति के पक्षियों का अध्ययन करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विराट पंक्ति: । पंचमः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top