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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 39
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - आदित्यादयो देवताः छन्दः - स्वराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    श्वि॒त्रऽआ॑दि॒त्याना॒मुष्ट्रो॒ घृणी॑वान् वार्ध्रीन॒सस्ते म॒त्याऽअर॑ण्याय सृम॒रो रुरू॑ रौ॒द्रः क्वयिः॑ कु॒टरु॑र्दात्यौ॒हस्ते वा॒जिनां॒ कामा॑य पि॒कः॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्वि॒त्रः। आ॒दि॒त्याना॑म्। उष्ट्रः॑। घृणी॑वान्। घृणि॑वा॒निति॒ घृणि॑ऽवान्। वा॒र्ध्री॒न॒सः। ते। म॒त्यै। अर॑ण्याय। सृ॒म॒रः। रुरुः॑। रौ॒द्रः। क्वयिः॑। कु॒टरुः॑। दा॒त्यौ॒हः। ते। वा॒जिना॑म्। कामा॑य। पि॒कः ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्वित्रऽआदित्यानामुष्ट्रो घृणीवान्वार्ध्रीणसस्ते मत्या अरण्याय सृमरो रुरू रौद्रः क्वयिः कुटरुर्दात्यौहस्ते वाजिनाङ्कामाय पिकः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    श्वित्रः। आदित्यानाम्। उष्ट्रः। घृणीवान्। घृणिवानिति घृणिऽवान्। वाध्राaनसः। ते। मत्यै। अरण्याय। सृमरः। रुरुः। रौद्रः। क्वयिः। कुटरुः। दात्यौहः। ते। वाजिनाम्। कामाय। पिकः॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 39
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    भावार्थ -
    (श्वित्रः आदित्यानाम् ) श्वेत प्रकाश सूर्य की किरणों का है । वैसा निष्पाप चरित्र आदित्य ब्रह्मचारियों का हो । (उष्ट्रः) उष्ट्र, अर्थात् पापों का दहन करने वाला ( घृणीवान् ) सूर्य के समान तेजस्वी और (वार्धीनसः) नाक में नकेल लगा लेने के समान इन्द्रियों पर निग्रह करने वाला ये तीन पुरुष (ते मत्यै) उत्तम ज्ञान प्राप्त करने के लिये उपासना करने योग्य हैं। श्वेत कुष्ठी, ऊंट, वार्धीनस ये जन्तु अपनी विशेषताओं के लिये अनुकरणीय हैं । (अरण्याय सृमर: ) गवय के समान जंगलों में घूमने वाला पुरुष जंगल के लिये पथदर्शक होने योग्य है । (रुरुः) निरन्तर उपदेश करने वाला (रौद्रः ) उपदेशक होने योग्य है । अथवा, भयंकर शब्द करने वाला पुरुष भयजनक है । (क्कयि: कुटरु: दात्यौह: ते) वेटर कुटरु = कुक्कुट और काक ये तीनों पक्षी (वाजिनाम् ) घोड़ों के हितकारी हैं । अथवा बटेरा, कुक्कुर और काक ये तीन दृष्टान्त ( वाजिनाम् ) युद्ध करने वालों को अनुकरणीय हैं । (कामाय पिकः) काम, मनोभिलाषा पूर्ण करने के लिये कोकिल के समान मनोहर वाणी बोलनेहारा हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - आदित्यादयः । स्वराट् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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