यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 26
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - भूम्यादयो देवताः
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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भूम्या॑ऽआ॒खूनाल॑भते॒ऽन्तरि॑क्षाय पा॒ङ्क्तान् दि॒वे कशा॑न् दि॒ग्भ्यो न॑कु॒लान् बभ्रु॑कानवान्तरदि॒शाभ्यः॑॥२६॥
स्वर सहित पद पाठभूम्यै॑। आ॒खून्। आ। ल॒भ॒ते॒। अ॒न्तरि॑क्षाय। पा॒ङ्क्तान्। दि॒वे। कशा॑न्। दि॒ग्भ्य इति॑ दि॒क्ऽभ्यः। न॒कु॒लान्। बभ्रु॑कान्। अ॒वा॒न्त॒र॒दि॒शाभ्य॒ इत्य॑वान्तरऽदि॒शाभ्यः॑ ॥२६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
भूम्याऽआखूनालभतेन्तरिक्षाय पाङ्क्त्रान्दिवे कशान्दिग्भ्यो नकुलान्बभ्रुकानवाभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठ
भूम्यै। आखून्। आ। लभते। अन्तरिक्षाय। पाङ्क्तान्। दिवे। कशान्। दिग्भ्य इति दिक्ऽभ्यः। नकुलान्। बभ्रुकान्। अवान्तरदिशाभ्य इत्यवान्तरऽदिशाभ्यः॥२६॥
विषय - भिन्न-भिन्न गुणों और विशेष हुनरों के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना पक्षियों और जानवरों के चरित्रों का अध्ययन और संग्रह ।
भावार्थ -
(भूम्यै आखून् आलभते ) भूमि की उत्तमता के लिये मूषकों का स्वाध्याय करे । ( अन्तरिक्षाय पांक्तान् ) अन्तरिक्ष विज्ञान के लिये पंक्ति बनाकर चलने वाले पक्षियों को देखे । ( दिवे कशान् ) प्रकाश के लिये 'कश' नाम के पक्षियों को प्राप्त करे ( दिग्भ्यः नकुलान् ) दिशाओं के ज्ञान के लिये नेवलों का स्वाध्याय करे । (अवान्तरदिग्भ्यः) उपदिशाओं के ज्ञान के लिये ( बभ्रु कान् ) बभ्रु नामक जन्तुओं को देखे इनको दिशा उपदिशा का अच्छा ज्ञान रहता है ।
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