यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 25
ऋषिः - सरस्वत्यृषिः
देवता - इन्द्रो देवता
छन्दः - भुरिगतिजगती
स्वरः - निषादः
1
होता॑ यक्ष॒त्तनू॒नपा॑तमु॒द्भिदं॒ यं गर्भ॒मदि॑तिर्द॒धे शुचि॒मिन्द्रं॑ वयो॒धस॑म्।उ॒ष्णिहं॒ छन्द॑ऽ इन्द्रि॒यं दि॑त्य॒वाहं॒ गां वयो॒ दध॒द्वेत्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥२५॥
स्वर सहित पद पाठहोता॑। य॒क्ष॒त्। तनू॒नपा॑त॒मिति॒ तनू॒ऽनपा॑तम्। उ॒द्भिद॒मित्यु॒त्ऽभिद॑म्। यम्। गर्भ॑म्। अदि॑तिः। द॒धे। शुचि॑म्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒धस॑म्। उ॒ष्णिह॑म्। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। दि॒त्य॒वाह॒मिति॑ दित्य॒ऽवाह॑म्। गाम्। वयः॑। दध॑त्। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥२५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
होता यक्षत्तनूनपातमुद्भिदँयङ्गर्भमदितिर्दधे शुचिमिन्द्रँवयोधसम् । उष्णिहञ्छन्दऽइन्द्रियन्दित्यवाहङ्गाँवयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज ॥
स्वर रहित पद पाठ
होता। यक्षत्। तनूनपातमिति तनूऽनपातम्। उद्भिदमित्युत्ऽभिदम्। यम्। गर्भम्। अदितिः। दधे। शुचिम्। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःधसम्। उष्णिहम्। छन्दः। इन्द्रियम्। दित्यवाहमिति दित्यऽवाहम्। गाम्। वयः। दधत्। वेतु। आज्यस्य। होतः। यज॥२५॥
विषय - होता द्वारा भिन्न-भिन्न अधिकारियों की नियुक्ति और उनके विशेष आवश्यक लक्षण, अधिकार और शक्तियों का वर्णन।
भावार्थ -
(होता) अधिकारदाता विद्वान् ( तनूनपातम् ) शरीरों के न गिरने देने वाले, शरीरों के रक्षक, ( उद्भिदम ) ज्ञान के तत्वों को खोल- खोल कर बतलाने वाले, (यम् ) जिस बीज को (अदितिः) पृथिवी ( गर्भम् दधे ) गर्भ में धारण करती है और वह बीज ऊपर की तह को तोड़ कर अंकुर रूप में उत्पन्न होता है उसी प्रकार (अदितिः) माता के समान अखण्ड राजशक्ति ( यम् ) जिसको अपने ( गर्भम् ) गर्भ में (दधे) धारण करती है ऐसे (उद्भिदम् ) वृक्ष की तरह से बढ़े हुए, स्थिर, आश्रय वृक्ष के समान, ( शुचिम) अति शुद्ध चरित्रवान्, ( वयोधसम् ) बल के धारक और वर्धक ( इन्द्रम् ) सूर्य के समान तेजस्वी पुरुष को ( यक्षत् ) आदरपूर्वक उत्तम पद से युक्त करे । इस प्रकार वह (उष्णिहं छन्दः) राष्ट्र में उष्णिक् छन्द के समान २८ वर्ष गुरु के अधीन ब्रह्मचर्य, ( इन्द्रियम् ) शारीरिक बल, ( दिव्यवाहं गाम् ) दित्यवाड् रथवाही बैल के समान (वय:) बल वीर्य को राज्य में ( दधत् ) धारण करावें । उक्त विद्वान् (आज्यस्य वेतु) राष्ट्र के ऐश्वर्य की वृद्धि करे । (होत: यज) हे विद्धन् ! तू उसको योग्य पद प्रदान कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भुरिगतिजगती । निषादः ॥
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