यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 9
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - इन्द्रो देवता
छन्दः - निचृदतिजगती
स्वरः - निषादः
1
होता॑ यक्ष॒त् त्वष्टा॑र॒मिन्द्रं॑ दे॒वं भि॒षज॑ꣳसु॒यजं॑ घृत॒श्रिय॑म्।पु॒रु॒रूप॑ꣳ सु॒रेत॑सं म॒घोन॒मिन्द्रा॑य॒ त्वष्टा॒ दध॑दिन्द्रि॒याणि॒ वेत्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥९॥
स्वर सहित पद पाठहोता॑। य॒क्ष॒त्। त्वष्टा॑रम्। इन्द्र॑म्। दे॒वम्। भि॒षज॑म्। सु॒यज॒मिति॑ सु॒ऽयज॑म्। घृ॒त॒श्रिय॒मिति॑ घृत॒ऽश्रिय॑म् पु॒रु॒रूप॒मिति॑ पुरु॒ऽरूप॑म्। सु॒रेत॑स॒मिति॑ सु॒ऽरेत॑सम्। म॒घोन॑म्। इन्द्रा॑य। त्वष्टा॑। दध॑त्। इ॒न्द्रि॒याणि॑। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
होता यक्षत्त्वष्टारमिन्द्रन्देवम्भिषजँ सुयजङ्घृतश्रियम् । पुरुरूपँ सुरेतसम्मघोनमिन्द्राय त्वष्टा दधदिन्द्रियाणि वेत्वाज्यस्य होतर्यज ॥
स्वर रहित पद पाठ
होता। यक्षत्। त्वष्टारम्। इन्द्रम्। देवम्। भिषजम्। सुयजमिति सुऽयजम्। घृतश्रियमिति घृतऽश्रियम् पुरुरूपमिति पुरुऽरूपम्। सुरेतसमिति सुऽरेतसम्। मघोनम्। इन्द्राय। त्वष्टा। दधत्। इन्द्रियाणि। वेतु। आज्यस्य। होतः। यज॥९॥
विषय - होता द्वारा भिन्न-भिन्न अधिकारियों की नियुक्ति और उनके विशेष आवश्यक लक्षण, अधिकार और शक्तियों का वर्णन।
भावार्थ -
( त्वष्टारम् ) शरीर में कान्ति के उत्पन्न करने वाले, (भिष- जम् ) रोग के निवारक, (सुयजम् ) उत्तम पुष्टि बलदायक, (घृतश्रियम् ) स्निग्ध शोभा को धारण करने वाले, ( पुरुरूपम् ) नाना रूपों में प्रकट, (सुरेतसम् ) उत्तम वीर्य को जिस प्रकार मनुष्य सदा धारण करे उसी प्रकार (होता) सबको अधिकारपद प्रदान करने हारा 'होता' नामक विद्वान् (त्वष्टारम् ) तेजस्वी, ( इन्द्रम् ) शत्रुनिवारक, ( देवम् ) दान- शील, राष्ट्रनिरीक्षक, देख भाल करने में चतुर, ( भिषजम् ) त्रुटियों को दूर करने वाले, (सुयजम ) उत्तम व्यवस्था करने में कुशल, (घृतश्रियम् ) राज्यलक्ष्मी के धारण में समर्थ, (पुरुरूपम् ) नाना प्रकार के पशु, मनुष्य, मृगादि के स्वामी, ( सुरेतसम् ) उत्तम वीर्यवान्, ( मघोनम् ) ऐश्वर्यवान् पुरुष को (इन्द्राय) ‘इन्द्र' पद के लिये ( यक्षत् ) अधिकार प्रदान करे । (त्वष्टा) वह तेजस्वी पुरुष (इन्द्रियाणि) इन्द्रोचित समस्त अधिकारों, बलों, सामर्थ्यो को (वेत्) प्राप्त करे और (आज्यस्य) राष्ट्र की समृद्धि को भोगे । (होतर्यज) हे विद्वन् ! तू उसको अधिकार प्रदान कर।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - इन्द्रः । निचृदतिजगती । निषादः ॥
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