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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 2
    ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृदतिजगती स्वरः - निषादः
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    होता॑ यक्ष॒त् तनू॒नपा॑तमू॒तिभि॒र्जेता॑र॒मप॑राजितम्। इन्द्रं॑ दे॒वस्व॒र्विदं॑ प॒थिभि॒र्मधु॑मत्तमै॒र्नरा॒शꣳसे॑न॒ तेज॑सा॒ वेत्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। तनू॒नपा॑त॒मिति तनू॒ऽनपा॑तम्। ऊ॒तिभि॒रित्यू॒तिऽभिः॑। जेता॑रम्। अप॑राजित॒मित्यप॑राऽजितम्। इन्द्र॑म्। दे॒वम्। स्व॒र्विद॒मिति॑ स्वः॒ऽविद॑म्। प॒थिभि॒रिति॑ प॒थिऽभिः॑। मधु॑मत्तमै॒रिति॒ मधु॑मत्ऽतमैः। नरा॒शꣳसे॑न। तेज॑सा। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षत्तनूनपातमूतिभिर्जेतारमपराजितम् । इन्द्रन्देवँ स्वर्विदम्पथिभिर्मधुमत्तमैर्नराशँसेन तेजसा वेत्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। तनूनपातमिति तनूऽनपातम्। ऊतिभिरित्यूतिऽभिः। जेतारम्। अपराजितमित्यपराऽजितम्। इन्द्रम्। देवम्। स्वर्विदमिति स्वःऽविदम्। पथिभिरिति पथिऽभिः। मधुमत्तमैरिति मधुमत्ऽतमैः। नराशꣳसेन। तेजसा। वेतु। आज्यस्य। होतः। यज॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 2
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    भावार्थ -
    (होता) अधिकारों को प्रदान करने हारा विद्वान् 'होता' ( तनूनपातम् ) समस्त राष्ट्रवासियों के शरीरों की रक्षा करने हारे, उनको क्षति न पहुँचाने वाले ( अपराजितम् ) कभी भी न हारे हुए, (जेतारम् ) विजेता, ( स्वविदम् ) सुख समृद्धि का लाभ करने और कराने वाले, ( देवम् ) विद्वान्, दानशील, राष्ट्र के द्रष्टा पुरुष को ( इन्द्रम् ) इन्द्र, ऐश्वर्यवान् पद पर ( यक्षत् ) स्थापित करे, वह (मधुमत्तमैः) अत्यन्त मधु, ज्ञान और मनोहर (पथिभिः) उपायों, मार्गों और व्यवस्था - मर्यादाओं से ( नराशंसेन तेजसा ) समस्त नेता पुरुषों को आदेश करने में समर्थ, एवं सर्व स्तुति योग्य तेज से, पराक्रम से (आज्यस्य) राष्ट्र के ऐश्वर्य को (वेतु) प्राप्त करे । हे (होतः) विद्वन् ! ऐसे पुरुष को (यज) तू अधिकार प्रदान कर | देखो अ० २१ | ३०, ३१ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - तनूनपादिन्द्रो देवता । निचृज्जगती । निषादः ॥

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