यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 22
त्वमि॒माऽओष॑धीः सोम॒ विश्वा॒स्त्वम॒पोऽअ॑जनय॒स्त्वं गाः।त्वमा त॑तन्थो॒र्वन्तरि॑क्षं॒ त्वं ज्योति॑षा॒ वि तमो॑ ववर्थ॥२२॥
स्वर सहित पद पाठत्वम्। इ॒माः। ओष॑धीः। सो॒म॒। विश्वाः॑। त्वम्। अ॒पः। अ॒ज॒न॒यः॒। त्वम्। गाः ॥ त्वम्। आ। त॒त॒न्थ॒। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। त्वम्। ज्योति॑षा। वि। तमः॑। ववर्थ॒ ॥२२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमिमाऽओषधीः सोम विश्वास्त्वमपोऽअजनयस्त्वङ्गाः । त्वमाततन्थोर्वन्तरिक्षन्त्वञ्ज्योतिषा वि तमो ववर्थ ॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम्। इमाः। ओषधीः। सोम। विश्वाः। त्वम्। अपः। अजनयः। त्वम्। गाः॥ त्वम्। आ। ततन्थ। उरु। अन्तरिक्षम्। त्वम्। ज्योतिषा। वि। तमः। ववर्थ॥२२॥
विषय - विद्वानों और नायक राजा के कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
हे (सोम) अभिषिक्त राजन् ! ऐश्वर्यवन् ! मेघ जिस प्रकार जल वर्षा कर (इमा ओषधीः) इन नाना ओषधियों को पैदा करता है उसी प्रकार ( त्वम् ) तू इन नाना शत्रु संतापक बल और तेज को धारण करने वाली वीर सेनाओं और वीर पुरुषों को (अजनयः ) उत्पन्न करता है । ( त्वम् ) मेघ जिस प्रकार जलों की वर्षा करता है उसी प्रकार तू (अप: अजनयः) जलों के समान शान्तिदायक आप्त पुरुषों, उत्तम बुद्धि और कर्म व्यवस्था को (अजनयः) प्रकट करता है । (त्वं गाः) तू ही गौ आदि पशु और राजाज्ञा रूप वाणियां प्रकट करता है । ( त्वम् ) तू ( अन्तरिक्षम् ) वायु के सम्मान विशाल अन्तरिक्ष और सबको आवरण और रक्षा करने वाले रक्षक, शासक विभाग को (आततन्थ) विस्तृत कर और ( त्वम् ) तू ही (ज्योतिषा) सूर्य के समान प्रकाश से (तमः) अन्धकार के समान प्रजा के कष्टदायी और शोक के हेतु दुःखों को ( ववर्थ ) निवारण कर । ( २ ) परमात्मा के पक्ष में - वह समस्त अन्न आदि ओषधि, जल, पशु प्रदान करता, आकाश को बनाता और सूर्य से अन्धकार और ज्ञान से मोह को दूर करता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गोतमः । सोमः । विराड् पंक्तिः । पंचमः ॥
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