ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 48/ मन्त्र 16
ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः
देवता - उषाः
छन्दः - निचृत्सतः पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
सं नो॑ रा॒या बृ॑ह॒ता वि॒श्वपे॑शसा मिमि॒क्ष्वा समिळा॑भि॒रा । सं द्यु॒म्नेन॑ विश्व॒तुरो॑षो महि॒ सं वाजै॑र्वाजिनीवति ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । नः॒ । रा॒या । बृ॒ह॒ता । वि॒श्वऽपे॑शसा । मि॒मि॒क्ष्व । सम् । इळा॑भिः । आ । सम् । द्यु॒म्नेन॑ । वि॒श्व॒ऽतुरा॑ । उ॒षः॒ । म॒हि॒ । सम् । वाजैः॑ । वा॒जि॒नी॒ऽव॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सं नो राया बृहता विश्वपेशसा मिमिक्ष्वा समिळाभिरा । सं द्युम्नेन विश्वतुरोषो महि सं वाजैर्वाजिनीवति ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । नः । राया । बृहता । विश्वपेशसा । मिमिक्ष्व । सम् । इळाभिः । आ । सम् । द्युम्नेन । विश्वतुरा । उषः । महि । सम् । वाजैः । वाजिनीवति॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 48; मन्त्र » 16
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 6
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अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
(सम्) सम्यगर्थे (नः) अस्मभ्यम् (राया) प्रशस्तधनेन (बृहता) महता (विश्वपेशसा) विश्वानि सर्वाणि पेशांसि रूपाणि यस्मात्तेन (मिमिक्ष्व) मेदुमिच्छ। अत्र अन्येषामपि० इति दीर्घः। (सम्) एकीभावे (इडाभिः) भूमिवाणीनीतिभिः। इडेति पृथिवीना०। निघं० १।१। वाङ्ना० निघं० १।११। पदना० निघं० ५।५। अनेन प्राप्तुं योग्या नीतिर्गृह्यते। (आ) समन्तात् (सम्) श्रैष्ठ्येर्थे (द्युम्नेन) विद्याधर्मादिगुणप्रकाशवता (विश्वतुरा) यद्विश्वं सर्वं तुरति त्वरयति तेन (उषः) उषर्वत् सर्वरूपप्रकाशिके (महि) पूजनीये (सम्) सम्यक् (वाजैः) युद्धैरन्नैर्विज्ञानैर्वा (वाजिनीवति) प्रशस्ता वाजिनी क्रिया विद्यते यस्यास्तत्सम्बुद्धौ ॥१६॥
अन्वयः
पुनस्सा केन किं दद्यादित्युपदिश्यते।
पदार्थः
हे उषर्वद्वर्त्तमाने वाजिनीवति महि विदुषि स्त्रि ! यथोषा विश्वपेशसा बृहता संविश्चतुरा संद्युम्नेन राया समिडाभिः संवाजैर्नः सुखयति तथैतैस्त्वमस्मान्सुखय ॥१६॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। विदुषां शिक्षयोषर्गुणज्ञानेन सुहितैर्मनुष्यैर्भूत्वाऽनेन पुरुषार्थसिद्धेः सर्वाणि सुखनिमित्तानि वस्तूनि जायन्ते तथा मातृशिक्षयैवाऽपत्यान्युत्तमानि भवन्ति नान्यथा ॥१६॥ अत्रोषर्दृष्टान्तेन कन्यास्त्रीणां लक्षणप्रतिपादनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तोक्तार्थेन सह संगतिरस्तीति बोध्यम् ॥ इत्यष्टाचत्वारिंशं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥४८॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वह किससे क्या दे, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।
पदार्थ
हे (उषः) प्रातः समय के सम तुल्य वर्त्तमान (वाजिनीवति) प्रशंसनीय क्रियायुक्त (महि) पूजनीय विद्वान् स्त्री ! तू जैसे (उषाः) सब रूप को प्रकाश करनेवाली प्रातःसमय की वेला (विश्वपेशसा) सब सुन्दर रूप युक्त (बृहता) बड़े (विश्वतुरा) सबको प्रवृत्त करने (संद्युम्नेन) विद्या धर्मादि गुण प्रकाश युक्त (राया) प्रशंसनीय धन (सामिड़ाभिः) भूमि वाणी नीति और (संवाजैः) अच्छे प्रकार युद्ध अन्न विज्ञान से (नः) हम लोगों को सुख देती है वैसे ही इन से तू हमे सुख दे ॥१६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे विद्वानों की विद्या शिक्षा से उषा के गुण का ज्ञान होके उससे पुरुषार्थ सिद्धि फिर उससे सब सुखों की निमित्त विद्या प्राप्त होती है वैसे ही माता की शिक्षा से पुत्र उत्तम होते है और प्रकार से नहीं ॥१६॥ इस सूक्त में उषा के दृष्टान्त करके कन्या और स्त्रियों के लक्षणों का प्रतिपदान करने से इस सूक्तार्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह अड़तालीसवां सूक्त ४८ और पांचवां वर्ग ५ समाप्त हुआ ॥
विषय
धन - गौ - ज्ञान - अन्न
पदार्थ
१. हे (उषः) = उषः का ! तू (नः) = हमें (राया) = धन से (संमिमिक्ष्व) = संगत कर, सिक्त करने की इच्छा कर । उस धन से जो (बृहता) = हमारी वृद्धि का कारण बनता है और (विश्वपेशसा) = सम्पूर्ण सुन्दर रूपोंवाला है, अर्थात् जो धन हमारे शरीर, मन व मस्तिष्क को तथा व्यक्ति व समाज दोनों को सुन्दर बनाता है । २. हे उषे ! तू हमें (इळाभिः आ) [मिमिक्ष्व] - गौओं से युक्त कर [इडा - गौ०नि०] - अथवा तू हमें वेदवाणियों से युक्त कर । हम प्रातः काल इन ज्ञान की वाणियों का अध्ययन करें । ३. इन गोदुग्धों के सेवन से तथा ज्ञान की वाणियों के स्वाध्याय से हमें (द्युम्नेन) = उस ज्ञान - ज्योति से सिक्त कर जो (विश्वतुरा) = हमारी सब बुराइयों का हिंसन करनेवाला है । ज्ञान वह अग्नि है जिसमें सब मल भस्म हो जाते हैं । ४. हे (वाजिनीवति) = उत्तम अन्नोंवाली, अन्न - साधनभूत क्रियाओंवाली उषे ! हे (महि) = [मह पूजायाम्] पूजावाली महनीय उषे ! तू (वाजैः) = शक्ति को देनेवाले अन्नों से (सम्) = हमें संगत कर ।
भावार्थ
भावार्थ - हम उषः काल में निश्चय करें कि [क] वृद्धि के कारणभूत - शरीर, मन व मस्तिष्क को सुन्दर बनानेवाले धन को प्राप्त करेंगे, [ख] गोदुग्ध का सेवन करते हुए, ज्ञान की वाणियों को पढ़ते हुए हम उस ज्ञान को प्राप्त करेंगे जो सब बुराइयों को भस्म कर देता है, [ग] हम शक्तिप्रद अन्नों का ही सेवन करेंगे ।
विशेष / सूचना
विशेष - सूक्त का आरम्भ इन शब्दों से हुआ है कि उषः काल हमें सब सुन्दर वस्तुएँ प्राप्त कराये [१], सूनृतवाणी व कार्यसाधक धन भी दे [२] । हम चित्तवृत्तिनिरोध द्वारा आत्मा में स्थित हों [३] । योग व जप में हमारी रुचि हो । यह उषा हमारे लिए 'सूनरी योषा' हो [५] इसमें हम अपने कार्यों में उत्तमता से लग जाएँ [६] । यह हमारे लिए 'सुभगा' हो [७], 'मघ' वाली हो [८] । आह्लादक दीप्ति को प्राप्त कराये [९] । यह हमें प्राण और जीवन देनेवाली हो [१०] । हम इसमें पुण्यशील व कर्तव्यपरायण बनें [११] । हम अपने में दिव्यगुणों का विकास करें [१२] । यह उषा हमें वरणीय धन दे [१३] । हमारा उषः काल प्रभुस्तवन में बीते [१४] । हमारा घर हिंसा व लोभ से रहित तथा विशाल हो [१५] । उषा हमें धन, गौ, ज्ञान व अन्न प्राप्त कराये [१६] । इसी बात को अब इस रूप में कहते हैं कि हे उषे! तू सब भद्र वस्तुओं के साथ हमें प्राप्त हो -
विषय
उषा के वर्णन के साथ, कमनीय गुणों से युक्त कन्या और विदुषी स्त्री के गुण और कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे (उषः) उषाके समान सब पदार्थों को प्रकाशित करनेहारी विदुषी स्त्री! तू (नः) हमें (बृहता) बड़े अधिक परिमाण वाले (विश्वपेशसा) नाना प्रकारों के (राया) ऐश्वर्य से (नः) हमारी (सं मिमिक्ष्व) वृद्धि कर, हम पर हरएक प्रकार की ऐश्वर्य की वर्षा कर जिससे हम बढ़ें। और (इळाभिः) उत्तम वाणियों, भूमियों, अन्न सम्पदाओं से (सं मिमिक्ष्व) हमें बढ़ा। (विश्वतुरा) समस्त शत्रुओं के नाशक एवं सेवकों को शीघ्र से शीघ्र कार्य कराने में समर्थ (द्युम्नेन) धन और प्रकाश, तेज, प्रभाव से युक्त कर। हे (महि) अति पूजनीये! हे (वाजिनीवती) ऐश्वर्यवती, उत्तम क्रिया और ज्ञान से युक्त! तू (वाजैः) संग्रामों, ऐश्वर्यों और अन्नों से भी (सं मिमिक्ष्व) बढ़ा। इति पंचमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रस्कण्व ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, ३, ७, ९ विराट् पथ्या बृहती । ५, ११, १३ निचृत् पथ्या बृहती च । १२ बृहती । १५ पथ्या बृहती । ४, ६, १४ विराट् सतः पंक्तिः । २, १०, १६ निचृत्सतः पंक्तिः । ८ पंक्तिः । षोडशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
फिर वह उषा भूमि, वाणी और नीति आदि से क्या दे, इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया है।
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
हे उषः वत् वर्त्तमाने वाजिनीवति महि विदुषि स्त्रि ! यथा उषा विश्वपेशसा बृहता सं विश्चतुरा संद्युम्नेन राया सम् इडाभिः संवाजैः नः सुखयति तथा एतैःत्वम् अस्मान् सुखय ॥१६॥
पदार्थ
हे (उषः) उषर्वत् सर्वरूपप्रकाशिके =उषा के समान अपने रूप को प्रकाशित करनेवाली, (वर्त्तमाने)= वर्त्तमान, (वाजिनीवति) प्रशस्ता वाजिनी क्रिया विद्यते यस्यास्तत्सम्बुद्धौ= प्रशस्त क्रियाओं से युक्त, (विदुषि)= विदुषी, (स्त्रि)= स्त्री ! (यथा)=जैसे, (उषा)=उषा, (विश्वपेशसा) विश्वानि सर्वाणि पेशांसि रूपाणि यस्मात्तेन=सब रूपों से, (बृहता) महता =बड़ी, (विश्वतुरा) यद्विश्वं सर्वं तुरति त्वरयति तेन=सब कार्यों को तीव्र करनेवाली, (आ) समन्तात्=हर ओर से, (सम्) श्रैष्ठ्येर्थे =श्रैष्ठ, (द्युम्नेन) विद्याधर्मादिगुणप्रकाशवता= विद्या, धर्म आदि के गुणों के प्रकाश से, (राया) प्रशस्तधनेन =प्रशस्त धन के द्वारा, (सम्) एकीभावे=सामान्य रूप से, (इडाभिः) भूमिवाणीनीतिभिः=भूमि, वाणी, और नीति के द्वारा, (महि) पूजनीये= पूजनीय, (सम्) सम्यक्=पूर्ण रूप से, (वाजैः) युद्धैरन्नैर्विज्ञानैर्वा= युद्ध, अन्न और विशेष ज्ञान से, (नः) अस्मभ्यम्=हमे, (सुखयति)=सुखी करती है, (तथा)=वैसे ही, (एतैः)=इसके द्वारा, (त्वम्)=तुम, (सम्) सम्यगर्थे=पूर्ण रूप से, (अस्मान्)=हमें, (सुखय)= सुखी कीजिये॥१६॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे विद्वान विद्या, शिक्षा और उषा के गुण के ज्ञान से मिलनसार मनुष्य बन करके पुरुषार्थ की सिद्धि करके सब सुखों की निमित्त वस्तुओं को पैदा करते हैं, वैसे ही माता की शिक्षा से ही सन्तान उत्तम होती हैं, अन्य प्रकार से नहीं ॥१६॥
विशेष
इस सूक्त में उषा के दृष्टान्त से कन्या और स्त्रियों के लक्षणों का प्रतिपदान करने से, इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
हे (उषः) उषा के समान अपने रूप को प्रकाशित करनेवाली (वर्त्तमाने) वर्त्तमान, (वाजिनीवति) प्रशस्त क्रियाओं से युक्त, (विदुषि) विदुषी (स्त्रि) स्त्री ! (यथा) जैसे (उषा) उषा (विश्वपेशसा) सब रूपों से (बृहता) बड़ी, (विश्वतुरा) सब कार्यों को तीव्रता से करनेवाली (आ) हर ओर से (सम्) श्रेष्ठ है [और] (द्युम्नेन) विद्या, धर्म आदि के गुणों के प्रकाश से (राया) प्रशस्त धन के द्वारा (सम्) सामान्य रूप से (इडाभिः) भूमि, वाणी, और नीति के द्वारा (महि) पूजनीय है। (वाजैः) युद्ध, अन्न और विशेष ज्ञान से (नः) हमे (सुखयति) सुखी करती है, (तथा) वैसे ही (एतैः) इसके द्वारा (त्वम्) तुम (अस्मान्) हमें (सम्) पूर्ण रूप से (सुखय) सुखी कीजिये॥१६॥
संस्कृत भाग
पदार्थः(महर्षिकृतः)- (सम्) सम्यगर्थे (नः) अस्मभ्यम् (राया) प्रशस्तधनेन (बृहता) महता (विश्वपेशसा) विश्वानि सर्वाणि पेशांसि रूपाणि यस्मात्तेन (मिमिक्ष्व) मेदुमिच्छ। अत्र अन्येषामपि० इति दीर्घः। (सम्) एकीभावे (इडाभिः) भूमिवाणीनीतिभिः। इडेति पृथिवीना०। निघं० १।१। वाङ्ना० निघं० १।११। पदना० निघं० ५।५। अनेन प्राप्तुं योग्या नीतिर्गृह्यते। (आ) समन्तात् (सम्) श्रैष्ठ्येर्थे (द्युम्नेन) विद्याधर्मादिगुणप्रकाशवता (विश्वतुरा) यद्विश्वं सर्वं तुरति त्वरयति तेन (उषः) उषर्वत् सर्वरूपप्रकाशिके (महि) पूजनीये (सम्) सम्यक् (वाजैः) युद्धैरन्नैर्विज्ञानैर्वा (वाजिनीवति) प्रशस्ता वाजिनी क्रिया विद्यते यस्यास्तत्सम्बुद्धौ ॥१६॥ विषयः- पुनस्सा केन किं दद्यादित्युपदिश्यते। अन्वयः- हे उषर्वद्वर्त्तमाने वाजिनीवति महि विदुषि स्त्रि ! यथोषा विश्वपेशसा बृहता संविश्चतुरा संद्युम्नेन राया समिडाभिः संवाजैर्नः सुखयति तथैतैस्त्वमस्मान्सुखय ॥१६॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। विदुषां शिक्षयोषर्गुणज्ञानेन सुहितैर्मनुष्यैर्भूत्वाऽनेन पुरुषार्थसिद्धेः सर्वाणि सुखनिमित्तानि वस्तूनि जायन्ते तथा मातृशिक्षयैवाऽपत्यान्युत्तमानि भवन्ति नान्यथा ॥१६॥ सूक्तस्य भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्रोषर्दृष्टान्तेन कन्यास्त्रीणां लक्षणप्रतिपादनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तोक्तार्थेन सह संगतिरस्तीति बोध्यम् ॥४८॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वानाच्या शिक्षणामुळे उषेच्या गुणांचे ज्ञान होते व त्यामुळे पुरुषार्थ सिद्धी होते. त्यानंतर सर्व सुखाचे निमित्त असलेले पदार्थ प्राप्त होतात. इतर प्रकारे नाही. ॥ १६ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Light of Divinity, great mistress of the dawn of power and energy, bless us with the wealth of life, great, beautiful and universal, food and energy, dynamic knowledge, action and splendour, and vision of the Divine Word and beauty of the earth.
Subject of the mantra
Then what should dawn give with land, speech and ethics etc., this topic has been preached in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (uṣaḥ)=she who shines like dawn, (varttamāne) =present,, (vājinīvati)=full of action, (viduṣi) =learned, (stri)= lady, (yathā) =like, (uṣā) =that, (viśvapeśasā) =in all forms, (bṛhatā) =gerat, (viśvaturā)=one who does all things speedily, (ā) =from all sides (sam) =is best, [aura]=and, (dyumnena)=by the light of the qualities of knowledge, righteousness etc., (rāyā)=through abundant wealth, (sam)=generally, (iḍābhiḥ)=by land, speech, and morality, (mahi) =is worshipable, (vājaiḥ)=by war, food and special knowledge, (naḥ) =to us, (sukhayati)=makes happy, (tathā) =in the same way, (etaiḥ) =by it, (tvam)=you, (asmān) =to us, (sam) =fully, (sukhaya) =make happy.
English Translation (K.K.V.)
O present, enlightened woman with expansive actions, who illuminates her form like dawn! Just as dawn is greater than all forms, the one who performs all tasks with intensity, is superior in every way and is generally worshiped by land, speech, and morality by means of riches filled with the light of virtues of knowledge, righteousness et cetera. War makes us happy with food and special knowledge, similarly you make us completely happy through this.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
There is silent vocal simile as a figurative in this mantra. Just as a lady scholar, having knowledge of the virtues, education and dawn, becoming a sociable human being, having attained the success of efforts, produces the object of all happiness, in the same way, the descendants become good only by the education of the mother, and not in any other way Translation of gist of the hymn by Maharshi Dayanand- In this hymn, the interpretation of this hymn should be related to the interpretation of the previous hymn, by giving the characteristics of girls and women from the example of dawn.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should she (Usha) give with what is taught in the 16th Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned noble active lady like the Dawn, as Dawn makes us happy with abundant and multiform wealth, adorable wealth, with reputation, with noble speech and policy, with the light of knowledge and Dharma, which makes us active, with food, you should also gladden us by supplying these means. (All this is the result of meditation at the Dawn which gives us power to discharge our duties well) Tr.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should possess the knowledge of the attributes of the Dawn as taught by the learned and thereby acquire with exertion all objects that cause happiness. It is by the proper training or education given by the mothers that children become good. In this hymn, the attributes of girls and women have been taught by the illustration of the Dawn, and so this hymn is connected with the previous hymn. Here ends the commentary on the 48th Hymn of the 1st Mandala of the Rigveda.
Translator's Notes
Skanda Swami, Sayanacharya, Wilson, Griffith and other translators of the Rigveda, have taken the word Ushas used in the Mantras in the sense of external Dawn, while Rishi Dayananda taking into consideration adjectives like सूनरी (Good leader or Excellent Guide in the words of Griffith) प्रभु जति (nourisher)चित्रामहे (of wondrous wealth) सूनृते इरयन्ति (Speaking true and sweet words) etc. and on the authority of the Brahmanic passages like भूतानां पतिगृहपतिरासीदुषाः (शत० ६.१.३.७ ) has taken it to mean an educated noble lady also who burns up all evils उष-दाहे उच्च-बिवासे who makes her husband live in happiness. Shri Kapali Shastri following Shri Aurobindo-a great Yogi has given spiritual interpretation of this and other hymns concerning the Ushas, criticizing Shri Sayanacharya and his followers as; स्थूलपक्षीया giving gross or mere external meaning, not going deep to know the secret meaning of the Mantras. He takes Ushas as the Divine Dawn of spiritual illumination. (दिन्य ज्ञान प्रभात:) ज्योतिः कृणोति सुनरी ( म० ८ ) he explains as सूर्यात्मक सत्य ज्योतिः प्रादुर्भावर्यात = generates true spiritual light. मघोनी he takes not as full of opulent material wealth but as Full of Divine Wealth of wisdom and peace etc. This spiritual interpretation is also worth-considering for all seekers after the secret of the Vedas.
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