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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 48/ मन्त्र 2
    ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः देवता - उषाः छन्दः - निचृत्सतः पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    अश्वा॑वती॒र्गोम॑तीर्विश्वसु॒विदो॒ भूरि॑ च्यवन्त॒ वस्त॑वे । उदी॑रय॒ प्रति॑ मा सू॒नृता॑ उष॒श्चोद॒ राधो॑ म॒घोना॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अश्व॑ऽवतीः । गोऽम॑तीः । वि॒श्व॒ऽसु॒विदः॑ । भूरि॑ । च्य॒व॒न्त॒ । वस्त॑वे । उत् । ई॒र॒य॒ । प्रति॑ । मा॒ । सू॒नृताः॑ । उ॒षः॒ । चो॒द॒ । राधः॑ । म॒घोना॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वावतीर्गोमतीर्विश्वसुविदो भूरि च्यवन्त वस्तवे । उदीरय प्रति मा सूनृता उषश्चोद राधो मघोनाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्ववतीः । गोमतीः । विश्वसुविदः । भूरि । च्यवन्त । वस्तवे । उत् । ईरय । प्रति । मा । सूनृताः । उषः । चोद । राधः । मघोनाम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 48; मन्त्र » 2
    अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (अश्वावती) प्रशस्ता अश्वा विद्यन्ते यासान्ताः (गोमतीः) बह्व्यो गावो विद्यन्ते यासां ताः (विश्वसुविदः) विश्वानि सर्वाणि सुष्ठुतया विदंति याभ्यस्ताः (भूरि) बहु (च्यवन्त) च्यवन्ते (वस्तवे) निवस्तुम् (उत्) उत्कृष्टार्थे (ईरय) गमय (प्रति) अभिमुख्ये (मा) माम् (सूनृताः) सुष्ठुसत्यप्रियवाचः (उषः) दाहगुणयुक्तोषर्वत् (चोद) प्रेरय (राधः) अनुत्तमं धनम् (मघोनाम्) धनवतां सकाशात् ॥२॥

    अन्वयः

    पुनः सा कीदृशी किं करोतीत्युपदिश्यते।

    पदार्थः

    हे उपरिव स्त्रि ! त्वमश्ववतीर्गोमतीर्विश्वसुविदः सूनृता वाचो वस्तवे भूर्युदीरय ये व्यवहारेभ्यश्च्यवन्त तेषां मघोनां सकाशाद्राधश्चोद प्रेरय ताभिर्मा प्रत्यानन्दय ॥२॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। यथा सुशुम्भमानोषाः सर्वान्प्राणिनः सुखयति तथा स्त्रियः पत्यादीन् सततं सुखयेयुः ॥२॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वह कैसी और क्या करती है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    पदार्थ

    हे (उषः) उषा के सदृश स्त्री ! तू जैसे यह शुभगुणयुक्ता उषा है वैसे (अश्वावतीः) प्रशंसनीय व्याप्ति युक्त (गोमतीः) बहुत गौ आदि पशु सहित (विश्वसुविदः) सब वस्तुओं को अच्छे प्रकार जाननेवाली (सूनृताः) अच्छे प्रकार प्रियादियुक्त वाणियों को (वस्तवे) सुख में निवास के लिये (भूरि) बहुत (उदीरय) प्रेरणा कर और जो व्यवहारों से (च्यवन्त) निवृत्त होते हैं उनको (मघोनाम्) धनवानों के सकाश से (राधः) उत्तम से उत्तम धन को (चोद) प्रेरणा कर उनसे (मा) मुझे (प्रति) आनन्दित कर ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे अच्छी शोभित उषा सब प्राणियों को सुख देती है वैसे स्त्रियां अपने पतियों को निरन्तर सुख दिया करें ॥२॥

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    विषय

    सूनृतवाणी - कार्यसाधक धन

    पदार्थ

    १. प्रभुकृपा से (वस्तवे) = उत्तम निवास के लिए (अश्वावतीः) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाली, (गोमतीः) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियों (विश्वसुविदः) = सब उत्तम धनों को प्राप्त करानेवाली उषाएँ हमें (भूरि) = खूब ही (च्यवन्त) = प्राप्त हों । हे (उषः) = उषः काल ! (मा प्रति) = मेरे प्रति (सूनृताः) = उत्तम, दुःख का परिहाण करनेवाली, ऋत [ठीक] वाणियों को (उदीरय) = प्रेरित कीजिए, अर्थात् मैं सूनृत वाणियों को ही बोलूँ । २. हे उषः ! तू (मघोनाम्) = [मघ - मख, अथवा मा+अघ] यज्ञशील पुरुषों के अथवा पापशून्य पुरुषों के (राधः) = धनों को (चोद) = हमारे प्रति प्रेरित कर । हम सुपथ से धनार्जन करके उन धनों का यज्ञों में व लोकहित के कार्यों में विनियोग करें ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हमारे लिए उषः काल उत्तम ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को प्राप्त कराये । हम सूनृतवाणी बोलें और पुण्यार्जित धनों को यज्ञों में विनियुक्त करें ।

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    विषय

    उषा के वर्णन के साथ, कमनीय गुणों से युक्त कन्या और विदुषी स्त्री के गुण और कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (उषः) प्रभातवेले! उसके समान शुभ दर्शन और प्रेम से युक्त स्त्री! तथा दुष्ट पुरुषों और राष्ट्र के पापों को जला देने वाली राज्य-संस्थे! (वस्तवे) सुख से निवास करने के लिये (अश्वावतीः) अश्वों अश्वारोहियों से युक्त सेना और (गोमतीः) गौओं आदि पशु से युक्त सम्पदाएं और (विश्व-सुविदः) समस्त उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त कराने वाली भूमियां (भूरि) बहुत अधिक संख्या में (च्यवन्त) प्राप्त की जावें। इस हेतु तू (मा प्रति) मुझे (सुनृताः) उत्तम ज्ञानों से पूर्ण वाणियों, आज्ञाओं का (उत् ईरय) उपदेश कर। और (मघोनाम्) ऐश्वर्यवान् धनाढ्य पुरुषों के (राधः) ऐश्वर्य (चोद) प्राप्त करा। स्त्री भी पति को शुभ वाणिया कहे। उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त करने की प्रेरणा करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रस्कण्व ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, ३, ७, ९ विराट् पथ्या बृहती । ५, ११, १३ निचृत् पथ्या बृहती च । १२ बृहती । १५ पथ्या बृहती । ४, ६, १४ विराट् सतः पंक्तिः । २, १०, १६ निचृत्सतः पंक्तिः । ८ पंक्तिः । षोडशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    फिर वह कैसी और क्या करती है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    हे उषः इव स्त्रि ! त्वम् अश्ववतीः गोमतीः विश्वसुविदः सूनृता वाचः वस्तवे भूरि उत् ईरय ये व्यवहारेभ्यः च्यवन्त तेषां मघोनां सकाशात् राधः चोद प्रेरय ताभिः मा प्रति आनन्दय ॥२॥

    पदार्थ

    हे (उषः) दाहगुणयुक्तोषर्वत्=दाह गुण से युक्त उषा के, (इव)=समान, (स्त्रि)=स्त्री! (त्वम्)=तुम, (अश्वावती) प्रशस्ता अश्वा विद्यन्ते यासान्ताः= प्रशस्त अश्वोंवाली, (गोमतीः) बह्व्यो गावो विद्यन्ते यासां ताः=बहुत सी गायोंवाली, (विश्वसुविदः) विश्वानि सर्वाणि सुष्ठुतया विदंति याभ्यस्ताः=जिसे सब सुन्दर कहते हैं, ऐसी, (सूनृताः) सुष्ठुसत्यप्रियवाचः=सुन्दर, सत्य और (वाचः)= वाणी, (वस्तवे) निवस्तुम्= निवास करने के लिये, (भूरि) बहु= बहुत, (उत्) उत्कृष्टार्थे=उत्कृष्ट रूप से, (ईरय) गमय=प्रेरित करे, (ये) =जो, (व्यवहारेभ्यः) = व्यवहारों के लिये, (च्यवन्त) च्यवन्ते=प्राप्त करने में, (तेषाम्) =उन, (मघोनाम्) धनवतां सकाशात्=धनवानों की निकटता से, (राधः) अनुत्तमं धनम् =अप्रतिम धन, (चोद) प्रेरय =प्रेरित करती है, (ताभिः) =उसके द्वारा, (मा) माम्=मुझे, (प्रति) अभिमुख्ये=सामने से, (आनन्दय)=आनन्दित कीजिये ॥२॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे अच्छी, शोभित उषा सब प्राणियों को सुख देती है, वैसे ही स्त्रियां अपने पति आदि को निरन्तर सुख दिया करें ॥२॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    हे (उषः) दाह गुण से युक्त उषा के (इव) समान (स्त्रि) स्त्री! (त्वम्) तुम (अश्वावती) प्रशस्त अश्वोंवाली, (गोमतीः) बहुत सी गायोंवाली, (विश्वसुविदः) जिसे सब सुन्दर कहते हैं, ऐसी (सूनृताः) सुन्दर, सत्य और (वाचः) वाणी के (वस्तवे) निवास करने के लिये (भूरि) बहुत (उत्) उत्कृष्ट रूप से (ईरय) प्रेरित करनेवाली, (ये) जो (व्यवहारेभ्यः) व्यवहारों के लिये (च्यवन्त) प्राप्त करने में (तेषाम्)=उन (मघोनाम्) धनवानों की निकटता से, (राधः) अप्रतिम धन को (चोद) प्रेरित करती है, (ताभिः) उसके द्वारा (मा) मुझे (प्रति) सामने से (आनन्दय) आनन्दित कीजिये ॥२॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (अश्वावती) प्रशस्ता अश्वा विद्यन्ते यासान्ताः (गोमतीः) बह्व्यो गावो विद्यन्ते यासां ताः (विश्वसुविदः) विश्वानि सर्वाणि सुष्ठुतया विदंति याभ्यस्ताः (भूरि) बहु (च्यवन्त) च्यवन्ते (वस्तवे) निवस्तुम् (उत्) उत्कृष्टार्थे (ईरय) गमय (प्रति) अभिमुख्ये (मा) माम् (सूनृताः) सुष्ठुसत्यप्रियवाचः (उषः) दाहगुणयुक्तोषर्वत् (चोद) प्रेरय (राधः) अनुत्तमं धनम् (मघोनाम्) धनवतां सकाशात् ॥२॥ विषयः- पुनः सा कीदृशी किं करोतीत्युपदिश्यते। अन्वयः- हे उषरिव स्त्रि ! त्वमश्ववतीर्गोमतीर्विश्वसुविदः सूनृता वाचो वस्तवे भूर्युदीरय ये व्यवहारेभ्यश्च्यवन्त तेषां मघोनां सकाशाद्राधश्चोद प्रेरय ताभिर्मा प्रत्यानन्दय ॥२॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। यथा सुशुम्भमानोषाः सर्वान्प्राणिनः सुखयति तथा स्त्रियः पत्यादीन् सततं सुखयेयुः ॥२॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी सुंदर उषा सर्व प्राण्यांना सुख देते तसे स्त्रियांनी आपल्या पतींना निरन्तर सुखी करावे. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    The abundant lights of the dawn, blest with sun- rays and the speed of divine energy, move to the earth to usher in the morning and stir their cows and horses to start their day, as the sunrays illuminate the world. O dawn, bring me the blessed voice of truth. Inspire the munificence of the rich to charity and social creativity.

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    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (uṣaḥ)=of fiery dawn, (iva) =like, (stri) =woman (tvam) =you, (aśvāvatī) =having excellent horses, (gomatīḥ) =having many cows, (viśvasuvidaḥ)=the one whom everyone calls beautiful, such, (sūnṛtāḥ)=beautiful, true and, (vācaḥ) =of speech, (vastave)=to reside, (bhūri) =very, (ut)=excellently, (īraya)=motivational, (ye) =that, (vyavahārebhyaḥ) =for practices, (cyavanta) =in obtaining, (teṣām)=to those, (maghonām)=closeness of the rich, (rādhaḥ)=to incomparable wealth, (coda) =inspires, (tābhiḥ) =by that, (mā) =to me, (prati) =from front, (ānandaya) =make me delighted.

    English Translation (K.K.V.)

    O woman like Uṣā with burning qualities! You are having abundant horses, of many cows, who is called beautiful by all, so beautiful, so excellently inspiring to reside in truth and speech, which inspires incomparable wealth from the nearness of those rich in obtaining for practices, through Him make me happy from front.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    There is silent vocal simile as a figurative in this mantra. As a good, beautiful dawn gives happiness to all living beings, in the same way, women should always give happiness to their husbands et cetera.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is Usha and what does she do is taught in the Second Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O woman who art like the dawn, thou shouldst utter many true and sweet words which describe the attributes of the cows, the horses and give true knowledge of all objects in order to live in the world happily. From those wealthy persons who go astray from the path of their duty, take away wealth or induct them to spend it for noble purposes and make me happy thereby.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the charming dawn makes all beings happy, in the same manner, wives should constantly make their husbands, and other relations, delighted and full of joy.

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