ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 48/ मन्त्र 8
विश्व॑मस्या नानाम॒ चक्ष॑से॒ जग॒ज्ज्योति॑ष्कृणोति सू॒नरी॑ । अप॒ द्वेषो॑ म॒घोनी॑ दुहि॒ता दि॒व उ॒षा उ॑च्छ॒दप॒ स्रिधः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठविश्व॑म् । अ॒स्याः॒ । न॒ना॒म॒ । चक्ष॑से । जग॑त् । ज्योतिः॑ । कृ॒णो॒ति॒ । सू॒नरी॑ । अप॑ । द्वेषः॑ । म॒घोनी॑ । दि॒वः । उ॒षाः । उ॒च्छ॒त् । अप॑ । स्रिधः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वमस्या नानाम चक्षसे जगज्ज्योतिष्कृणोति सूनरी । अप द्वेषो मघोनी दुहिता दिव उषा उच्छदप स्रिधः ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वम् । अस्याः । ननाम । चक्षसे । जगत् । ज्योतिः । कृणोति । सूनरी । अप । द्वेषः । मघोनी । दिवः । उषाः । उच्छत् । अप । स्रिधः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 48; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
(विश्वम्) सर्वम् (अस्याः) उषसः (नानाम) नमति। अत्र तुजादित्वाद् अभ्यासदीर्घत्वम्। (चक्षसे) द्रष्टुम् (जगत्) संसारम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (कृणोति) करोति (सूनरी) सुष्ठ नेत्री (अप) दूरीकरणे (द्वेषः) द्विषन्ति ये शत्रवस्ते। अत्र अन्येभ्योऽपि दृश्यन्त इति विच्। (मघोनि) प्रशस्तानि मघानि पूज्यानि धनानि यस्याः सन्ति सा (दुहिता) पुत्रीव (दिवः) प्रकाशमानस्य सवितुः (उषाः) प्रभातः (उच्छत्) विवासयति (अप) अपराधे (स्रिधः) हिंसकान् ॥८॥
अन्वयः
पुनस्सा कीदृशीत्युपदिश्यते।
पदार्थः
हे स्त्रियो ! यूयं यथा मघोनी सूनरी दिवो दुहितेवोषा विश्वं जगन्नानामतस्याश्चक्षसे ज्योतिः कृणोति स्रिधोऽपद्वेषोऽपोच्छद्दूरतो विवासयति तथापत्यादिषु वर्त्तध्वम् ॥८॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः यथा सत्स्त्री विघ्नान्निवार्य्य क्रियमाणानि कार्य्याणि साध्नोति तथैवोषा दस्युचोरशत्र्वादीन्निवार्य्य कार्यसाधिका भवतीति ॥८॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वह कैसी हो, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।
पदार्थ
हे स्त्री जनो ! तुम जैसे (मघोनी) प्रशंसनीय धन का निमित्त (सूनरी) अच्छे प्रकार प्राप्त करानेवाली (दिवः) प्रकाशमान सूर्य्य की (दुहिता) पुत्री के सदृश (उषाः) प्रकाशने वाली प्रभात की वेला (विश्वम्) सब जगत् को (नानाम) आदर करता है, और उसको (चक्षसे) देखने के लिये (ज्योतिः) प्रकाश को (कृणोति) करती है और (स्रिधः) हिंसक (द्वेषः) बुरा द्वेष करनेवाले शत्रुओं को (अपोच्छत्) दूर वास कराती है वैसे पति आदि में वर्त्तो ॥८॥
भावार्थ
इस मंत्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे सती स्त्री विघ्नों को दूरकर कर्त्तव्य कर्मो को सिद्ध करती है, वैसे ही उषा डाकू, चोर, शत्रु आदि को दूर कर कार्य्य की सिद्धि कराने वाली होती है ॥८॥
विषय
मघोनी
पदार्थ
१. (अस्याः) = इस उषा के (चक्षसे) = प्रकाश के लिए (विश्वं जगत्) = सम्पूर्ण संसार (नानाम) = प्रभु को प्रति नतमस्तक होता है । "वस्तुतः रात्रि के अन्धकार को समाप्त करके किस प्रकार उषः काल प्रकाश को देता हुआ और न केवल प्रकाश को अपितु प्राणशक्ति को भी बढ़ाता हुआ आता है" - यह सब विचार करनेवाला पुरुष उस प्रभु के प्रति नतमस्तक होता है । प्रभु की विभूतियों में उषा का भी एक विशिष्ट स्थान है । उषा की लालिमा प्रभु की महिमा का गायन करती प्रतीत होती है । २. (सूनरी) = संसार के कार्यों का उत्तम प्रणयन करनेवाली उषा (ज्योतिः कृणोति) = चारों ओर प्रकाश कर देती है । यह उषा उषाबाह्य प्रकाश के साथ हृदय के अन्तस्तल को भी प्रकाशित करती है और इस प्रकार हमें उत्तम मार्ग से ले - चलनेवाली होती है । ३. (मघोनी) = प्रकाशरूप मघ - ऐश्वर्यवाली यह उषा (द्वेषः) = द्वेष की भावनाओं को हमारे हृदय से (अप उच्छत्) = दूर करनेवाली हो । द्वेष अज्ञानान्धकार में ही पनपता है । उषा अन्धकार को दूर करती हुई द्वेष को भी दूर करती है । ४. यह (दिवः दुहिता) = प्रकाश का पूरण करनेवाली (उषाः) = उषा (स्रिधः) = [स्त्रिधु शोषणे] हृदय की शोषक कामवासना को भी (अप उच्छत्) = हमारे हृदयों से दूर करे । वस्तुतः उषः काल में प्रभु के प्रति नतमस्तक होता हुआ व्यक्ति इन वासनाओं को विनष्ट ही कर डालता है ।
भावार्थ
भावार्थ - उषः काल प्रकाश को करता हुआ द्वेष व रागात्मक वासना को हमसे दूर कर दे । राग - द्वेष से ऊपर उठकर हम जीवन को सुन्दरता से बितानेवाले हों ।
विषय
उषा के वर्णन के साथ, कमनीय गुणों से युक्त कन्या और विदुषी स्त्री के गुण और कर्त्तव्य ।
भावार्थ
(दिषः दुहिता) प्रकाशमान सूर्य की मानो कन्या के समान तेज से ही समस्त आकाश को पूर देनेवाली (उषा) प्रभातवेला जिस प्रकार (मघोनी) अति तेजस्विनी होकर (द्वेषः) द्वेष करनेवाले चोर आदि को (स्रिधः) और हिंसक जन्तुओं को (अप) दूर करती हुई (उच्छत्) प्रकट होती है। और वह (सूनरी) उत्तम दिन की नेत्री (विश्वं जगत् चक्षसे) समस्त जगत् को नयनों द्वारा दिखाने के लिए (ज्योतिः कृणोति) समस्त संसार में प्रकाश कर देती है और (अस्या चक्षसे विश्वं नानाम) उसके देखते ही समस्त संसार भक्ति, प्रेम से ईश्वर को नमस्कार करता है उसी प्रकार (दिवः दुहिता) तेजस्वी माता पिता की पुत्री ‘सूर्या’, अथवा कामना करनेहारे पति के सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाली (मघोनी) ऐश्वर्यों और सौभाग्यों से युक्त होकर (उषा) स्वयं पति की कामना करती हुई (द्वेषः) द्वेष करनेवाले शत्रुओं को और (स्रिधः) हिंसकों को भी (अप ऊच्छत) दूर करे, वह प्रभात वेला के समान सुशोभित हो। और वह (सूनरी = सु-नरी) उत्तम नायिका या उत्तम महिला हो। (विश्वं जगत् अस्याः नानाम) समस्त जगत् उसका विनय से आदर करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रस्कण्व ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, ३, ७, ९ विराट् पथ्या बृहती । ५, ११, १३ निचृत् पथ्या बृहती च । १२ बृहती । १५ पथ्या बृहती । ४, ६, १४ विराट् सतः पंक्तिः । २, १०, १६ निचृत्सतः पंक्तिः । ८ पंक्तिः । षोडशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
फिर वह उषा कैसी हो, इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया है।
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
हे स्त्रियो ! यूयं यथा मघोनी सूनरी दिवः दुहिता इव उषा विश्वं जगत् नानाम तस्याः चक्षसे ज्योतिः कृणोति स्रिधो अप द्वेषः अप उच्छत् दूरतः वि वासयति तथा पति आदिषु वर्त्तध्वम् ॥८॥
पदार्थ
हे (स्त्रियः)=स्त्रियो ! (यूयम्)=तुम सब, (यथा)=जैसे, (मघोनि) प्रशस्तानि मघानि पूज्यानि धनानि यस्याः सन्ति सा= प्रशस्त धनवाली, (सूनरी) सुष्ठ नेत्री=उत्तम नेत्री, (दिवः) प्रकाशमानस्य सवितुः=प्रकाशमान सूर्य की, (दुहिता) पुत्रीव=पुत्री के समान, (उषाः) प्रभातः= उषा, (विश्वम्) सर्वम्=समस्त, (जगत्) संसारम्=संसार की ओर, (नानाम) नमति=झुकती है, (तस्याः) उषसः=उस उषा के, (चक्षसे) द्रष्टुम्=देखने से, (ज्योतिः) प्रकाशम्=प्रकाश, [वह] (कृणोति) करोति=करती है, स्रिधः) हिंसकान्=हिंसक, (अप) अपराधे= अपराध में, (द्वेषः) द्विषन्ति ये शत्रवस्ते=जो शत्रु द्वेष करते हैं, उनसे (अप) दूरीकरणे=दूरी रखते हुए, जो (उच्छत्) विवासयति=निवास करता है, (तथा)=वैसे ही, (पति)= पति, (आदिषु)= आदियों में, (वर्त्तध्वम्)=निवास करो ॥८॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
इस मंत्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे सती स्त्री विघ्नों को दूरकर कर्त्तव्य कर्मो को सिद्ध करती है, वैसे ही उषा डाकू, चोर, शत्रु आदि को दूर कर कार्य्य की सिद्धि कराने वाली होती है ॥८॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
हे (स्त्रियः) स्त्रियो ! (यूयम्) तुम सब (यथा) जैसे (मघोनि) प्रशस्त धनवाली, (सूनरी) उत्तम नेत्री और (दिवः) प्रकाशमान सूर्य की (दुहिता) पुत्री के समान (उषाः) उषा (विश्वम्) समस्त (जगत्) संसार की ओर (नानाम) झुकती है। (तस्याः) उस उषा के (चक्षसे) देखने से, [वह] (ज्योतिः) प्रकाश (कृणोति) करती है। (स्रिधः) हिंसक (अप) अपराध में (द्वेषः) जो शत्रु द्वेष करते हैं, उनसे (अप) दूरी रखते हुए, जो (उच्छत्) निवास करता है, (तथा) वैसे ही (पति) पति (आदिषु) आदियों [के हृदय में] में (वर्त्तध्वम्) निवास करो ॥८॥
संस्कृत भाग
पदार्थः(महर्षिकृतः)- (विश्वम्) सर्वम् (अस्याः) उषसः (नानाम) नमति। अत्र तुजादित्वाद् अभ्यासदीर्घत्वम्। (चक्षसे) द्रष्टुम् (जगत्) संसारम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (कृणोति) करोति (सूनरी) सुष्ठ नेत्री (अप) दूरीकरणे (द्वेषः) द्विषन्ति ये शत्रवस्ते। अत्र अन्येभ्योऽपि दृश्यन्त इति विच्। (मघोनि) प्रशस्तानि मघानि पूज्यानि धनानि यस्याः सन्ति सा (दुहिता) पुत्रीव (दिवः) प्रकाशमानस्य सवितुः (उषाः) प्रभातः (उच्छत्) विवासयति (अप) अपराधे (स्रिधः) हिंसकान् ॥८॥ विषयः- पुनस्सा कीदृशीत्युपदिश्यते। अन्वयः- हे स्त्रियो ! यूयं यथा मघोनी सूनरी दिवो दुहितेवोषा विश्वं जगन्नानामतस्याश्चक्षसे ज्योतिः कृणोति स्रिधोऽपद्वेषोऽपोच्छद्दूरतो विवासयति तथापत्यादिषु वर्त्तध्वम् ॥८॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः यथा सत्स्त्री विघ्नान्निवार्य्य क्रियमाणानि कार्य्याणि साध्नोति तथैवोषा दस्युचोरशत्र्वादीन्निवार्य्य कार्यसाधिका भवतीति ॥८॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचक लुप्तोपमालंकार आहे. जसे सत् स्त्री विघ्नांना दूर करून कर्तव्य कर्म सिद्ध करते तसेच उषा डाकू, चोर, शत्रू इत्यादींना दूर करून कार्याची सिद्धी करविणारी असते. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
The whole world bows in homage to this dawn. Noble guide and leader, it brings the light of the world for all so that they may see the glory of the universe. Daughter of light Divine, Queen of wealth and splendour, it lights up and life drives out the darkness of jealousy and throws off the violence of enmity.
Subject of the mantra
Then what kind of that dawn should be, this subject has been preached in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (striyaḥ) =women, (yūyam) =all of you, (yathā) =like, (maghoni) =having excellent wealth, (sūnarī) =escellent leader and, (divaḥ) =of bright Sun, (duhitā) =like a daughter, (uṣāḥ) =dawn, (viśvam) =all, (jagat) =towards the world, (nānāma) =bends, (tasyāḥ) =of that dawn,(cakṣase) =by seeing, [vaha]=that, (jyotiḥ) =light, (kṛṇoti) =emantes, (sridhaḥ) =violent, (apa) =in the crime, (dveṣaḥ) =from the enemies who hate, (apa) keeping distance, who (ucchat) =live, (tathā) =in the same way, (pati) =husband, (ādiṣu) =et cetera, [ke hṛdaya meṃ] =in the hearts of, (varttadhvam) =live.
English Translation (K.K.V.)
O women! Like all of you, dawn bows down towards the whole world, like all of you, with abundant wealth, good eyes and like the daughter of the bright Sun. Seeing that dawn, she illuminates. Keeping distance from the enemies who hate in violent crime, reside in the hearts of husbands et cetera.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
There is silent vocal simile as a figurative in this mantra. Just as a noble woman removes obstacles and fulfills her duty, similarly dawn is the one which removes dacoits, thieves, enemies et cetera.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is that Usha is taught further in the 8th Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O women, you should behave towards your husbands and others as the Dawn who is the daughter of the sky, good leader of the day, to meet whose glance all living creatures bend down, who lights up or illuminates the world, bringer of good, who drives away the malevolent and wild beasts, thieves and robbers and at whose appearance all bow to God in reverence.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As a good woman accomplishes all good works casting aside all obstacles, in the same way, the Dawn drives away with her light robbers, thieves and enemies and helps to accomplish noble acts.
Translator's Notes
Unlike most of the translators or commentators of the Rigveda, Rishi Dayananda has taken the word Ushas (उषा:) for a noble wife also, for which there is the following clear authority from the Brahmana, besides the Vedic hints like योषेव सुनरी ( ऋ० १.४८.५ ) which even Sayanacharya explains as " सुष्ठु गृहकृत्यस्य नेत्री गृहिणी इव " (सायणाचार्य:) and which Prof. Wilson following him translates as “like a Matron, the directress of household duties (Wilson). In the Shatpath Brahmana 6.1.3.7 we find भूतानां गृहपतिः आसीत् उषा: पत्नी | Here by Usha is meant wife. So Rishi Dayananda's interpretation is well-authenticated.
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