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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 48/ मन्त्र 9
    ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः देवता - उषाः छन्दः - विराट्पथ्याबृहती स्वरः - मध्यमः

    उष॒ आ भा॑हि भा॒नुना॑ च॒न्द्रेण॑ दुहितर्दिवः । आ॒वह॑न्ती॒ भूर्य॒स्मभ्यं॒ सौभ॑गं व्यु॒च्छन्ती॒ दिवि॑ष्टिषु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उषः॑ । आ । भा॒हि॒ । भा॒नुना॑ । च॒न्द्रेण॑ । दु॒हि॒तः॒ । दि॒वः॒ । आ॒ऽवह॑न्ती । भूरि॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । सौभ॑गम् । वि॒ऽउ॒च्छन्ती॑ । दिवि॑ष्टिषु ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उष आ भाहि भानुना चन्द्रेण दुहितर्दिवः । आवहन्ती भूर्यस्मभ्यं सौभगं व्युच्छन्ती दिविष्टिषु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उषः । आ । भाहि । भानुना । चन्द्रेण । दुहितः । दिवः । आवहन्ती । भूरि । अस्मभ्यम् । सौभगम् । विउच्छन्ती । दिविष्टिषु॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 48; मन्त्र » 9
    अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (उषः) उषाइव कमनीये (आ) समन्तात् (भाहि) (भानुना) सूर्येण (चन्द्रेण) इन्दुना (दुहितः) पुत्रीव (दिवः) प्रकाशस्य (आवहन्ती) सर्वतः सुखं प्रापयन्ती (भूरि) बहु (अस्मभ्यम्) पुरुषार्थिभ्यः (सौभगम्) शोभनानां भगानामैश्वर्य्याणामिदम् (व्युच्छन्ती) निवासं कुर्वन्ती (दिविष्टिषु) प्रकाशितासु कान्तिषु ॥९॥

    अन्वयः

    पुनः सा कीदृशी सती किं कुर्यादित्युपदिश्यते।

    पदार्थः

    हे दिवो दुहितरिव वर्त्तमाने स्त्रि ! यथोषा भानुना चन्द्रेणाऽस्मभ्यं भूरि सौभगमावहन्ती दिविष्टिषु व्युच्छन्ती सती जगद् भाति तथा त्वं विद्याशमाभ्यामाभाहि ॥९॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। यथा सुकन्या मातृपतिकुले उज्ज्वलयति तथोषा उभे स्थूलसूक्ष्मे वस्तुनी प्रकाशयति ॥९॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वह कैसी होके क्या करे, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    पदार्थ

    हे (दिवः) सूर्य्य के प्रकाश की (दुहितः) पुत्री के तुल्य कन्ये ! जैसे (उषाः) प्रकाशमान उषा (भानुना) सूर्य्य और (चन्द्रेण) चन्द्रमा से (अस्मभ्यम्) हम पुरुषार्थी लोगों के लिये (भूरि) बहुत (सौभगम्) ऐश्वर्य्य के समूहों को (आवहन्ती) सब ओर से प्राप्त कराती (दिविष्टिषु) प्रकाशित कान्तियों में (व्युच्छन्ती) निवास कराती हुई संसार को प्रकाशित करती है वैसे ही तू विद्या और शमादि से सुशोभित हो ॥९॥

    भावार्थ

    इस मंत्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे विदुषी धार्मिक कन्या दोनों माता और पति के कुलों को उज्ज्वल करती है वैसे उषा दोनों स्थूल सूक्ष्म अर्थात् बड़ी छोटी वस्तुओं को प्रकाशित करती है ॥९॥

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    विषय

    आह्लादक [दीप्ति] प्रकाश

    पदार्थ

    १. (दिवः दुहितः) = प्रकाश का पूरण करनेवाली (उषः) = उषो देवते ! तू (चन्द्रेण) = आह्लाद के साधनभूत (भानुना) = प्रकाश से (आभाहि) = समन्तात् प्रकाश करनेवाली हो । उषा का प्रकाश अत्यन्त तीन न होने से सचमुच आह्लाद देनेवाला है । २. यह उषा (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (भूरि) = खूब अथवा पालक व पोषक [भृञ् - धारण, पोषण] (सौभगम्) = सौभाग्य को - ऐश्वर्य को (आवहन्ती) = प्राप्त करानेवाली हो । हम प्रातः काल को इस प्रकार सुन्दरता से प्रभु - उपासन व स्वाध्यायादि उत्तम कार्यों में बिताएँ कि हमारा सौभाग्य बढ़े । ३. यह उषा (दिविष्टिषु) = [दिवः इष्टिषु] प्रकाश की कामना होने पर (व्युच्छन्ती) = अन्धकार को पूर्णरूप से दूर करनेवाली होती है । नींद से उठा हुआ प्राणी कार्यों को सुचारू रूप से कर सकने के लिए प्रकाश चाहता है । यह उषः काल उसे वह प्रकाश प्राप्त कराता है । भावार्थ - उषः काल

    भावार्थ

    मनुष्य को सौभाग्य व वाञ्छनीय प्रकाश का देनेवाला है ।

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    विषय

    उषा के वर्णन के साथ, कमनीय गुणों से युक्त कन्या और विदुषी स्त्री के गुण और कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (उषः) उषः! प्रभातवेले! हे (दिवः दुहितः) प्रकाशमान सूर्य से उत्पन्न मानों उसकी कन्या के समान! एवं प्रकाश से आकाश को पूर्ण करनेवाली! तू (भानुना) पूर्व दिशा में सूर्य और पश्चिम दिशा में स्थित चन्द्र दोनों से (आ भाहि) प्रकाशित हो और (दिविष्टिपु) सूर्य के आगमन कालों में (वि उच्छन्ती) विशेषरूप से प्रकट होती हुई (अस्मभ्यं) हमारे लिये (भूरि सौभगं) बहुत उत्तम ऐश्वर्य (आवहन्ती) प्राप्त कराती रह। इसी प्रकार हे (उषः) कान्तिमति कमनीये! कन्ये! हे (दिवः दुहितः) ज्ञानवान् पुरुष की पुत्री! और प्रियतम पति की कामनाओं को पूर्ण करने हारी! तू (भानुना) सूर्य के समान तेजस्वी और (चन्द्रेण) चन्द्र के समान आह्लादक पति के साथ संगत होकर (आ वि भाहि) सर्वत्र प्रकाशित हो। और (दिविष्टिषु) गृहस्थोचित कामनाओं को पूर्ण करने के अवसरों में (अस्मभ्यम्) हमारे हितार्थ (व्युच्छन्ती) अपने उत्तम गुणों को प्रकट करती हुई (भूरि) बहुत अधिक (सौभगं) सौभाग्य, ऐश्वर्य को (आवहन्ती) धारण करती हुई हमें प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रस्कण्व ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, ३, ७, ९ विराट् पथ्या बृहती । ५, ११, १३ निचृत् पथ्या बृहती च । १२ बृहती । १५ पथ्या बृहती । ४, ६, १४ विराट् सतः पंक्तिः । २, १०, १६ निचृत्सतः पंक्तिः । ८ पंक्तिः । षोडशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    फिर वह उषा कैसी होके क्या करे, इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    हे दिवः दुहितः इव वर्त्तमाने स्त्रि ! यथा उषा भानुना चन्द्रेण अस्मभ्यं भूरि सौभगम् आवहन्ती दिविष्टिषु व्युच्छन्ती सती जगद् भाति तथा त्वं विद्याशमाभ्याम् आभाहि ॥९॥

    पदार्थ

    हे (दिवः) प्रकाशस्य=प्रकाश की, (दुहितः) पुत्रीव=पुत्री के समान, (वर्त्तमाने)= वर्त्तमान, (स्त्रि)=स्त्री ! (यथा)=जैसे, (उषः) उषाइव कमनीये=उषा के समान सुन्दर, (भानुना)=सूर्य और (चन्द्रेण)=चन्द्र के, (अस्मभ्यम्) पुरुषार्थिभ्यः=पुरुषार्थियों के लिये, (भूरि) बहु=बहुत, (सौभगम्) शोभनानां भगानामैश्वर्य्याणामिदम्=यह शोभा और ऐश्वर्य है, (आवहन्ती) सर्वतः सुखं प्रापयन्ती=सब ओर से सुख प्राप्त करती हुई, (दिविष्टिषु) प्रकाशितासु कान्तिषु=कान्तियों में, (व्युच्छन्ती) निवासं कुर्वन्ती=निवास करती, (सती)= हुई, (जगत्)= जगत् को, (भाति)= प्रकाशित करती है, (तथा)=वैसे ही, (त्वम्) =तुम, (विद्याशमाभ्याम्)=विद्या और मन की शान्ति से, (भानुना) सूर्येण=सूर्य के द्वारा, (आ) समन्तात्=हर ओर से, (भाहि) = प्रकाशित करो, ॥९॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    इस मंत्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे विदुषी धार्मिक कन्या माता और पति दोनों के कुलों को उज्ज्वल करती है, वैसे ही उषा दोनों स्थूल व सूक्ष्म अर्थात् बड़ी व छोटी वस्तुओं को प्रकाशित करती है ॥९॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    हे (दिवः) प्रकाश की (दुहितः) पुत्री के समान (वर्त्तमाने) वर्त्तमान (स्त्रि) स्त्री ! (यथा) जैसे (उषः) उषा के समान सुन्दर, (भानुना) सूर्य और (चन्द्रेण) चन्द्र के द्वारा (अस्मभ्यम्) हम पुरुषार्थियों के लिये (भूरि) बहुत (सौभगम्) शोभा और ऐश्वर्य [प्रदान किया जाता है।] (आवहन्ती) सब ओर से सुख प्राप्त करती हुई (दिविष्टिषु) कान्तियों में (व्युच्छन्ती) निवास करती (सती) हुई [वह] (जगत्) जगत् को (भाति) प्रकाशित करती है, (तथा) वैसे ही (त्वम्) तुम (विद्याशमाभ्याम्) विद्या और मन की शान्ति से (भानुना) सूर्य के द्वारा (आ) हर ओर से (भाहि) प्रकाशित करो॥९॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (उषः) उषाइव कमनीये (आ) समन्तात् (भाहि) (भानुना) सूर्येण (चन्द्रेण) इन्दुना (दुहितः) पुत्रीव (दिवः) प्रकाशस्य (आवहन्ती) सर्वतः सुखं प्रापयन्ती (भूरि) बहु (अस्मभ्यम्) पुरुषार्थिभ्यः (सौभगम्) शोभनानां भगानामैश्वर्य्याणामिदम् (व्युच्छन्ती) निवासं कुर्वन्ती (दिविष्टिषु) प्रकाशितासु कान्तिषु ॥९॥ विषयः- पुनः सा की दृशी सती किं कुर्यादित्युपदिश्यते। अन्वयः- हे दिवो दुहितरिव वर्त्तमाने स्त्रि ! यथोषा भानुना चन्द्रेणाऽस्मभ्यं भूरि सौभगमावहन्ती दिविष्टिषु व्युच्छन्ती सती जगद् भाति तथा त्वं विद्याशमाभ्यामाभाहि ॥९॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। यथा सुकन्या मातृपतिकुले उज्ज्वलयति तथोषा उभे स्थूलसूक्ष्मे वस्तुनी प्रकाशयति ॥९॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी विदुषी धार्मिक कन्या माता व पतीच्या दोन्ही कुळांना उज्ज्वल करते तशी उषा दोन्ही सूक्ष्म अर्थात छोट्या व मोठ्या वस्तूंना प्रकाशित करते. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O Dawn, daughter of the light of heaven, come and shine with the beauty of the moon and splendour of the sun, bearing for us all plenty of good fortune and brilliant success in our sacred programmes.

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    Subject of the mantra

    Then what should that dawn be like and what should she do, this topic has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (divaḥ) =of light, (duhitaḥ) =like a daughter, (varttamāne) =present, (stri) =woman, (yathā) =like, (uṣaḥ) =beautiful like dawn, (bhānunā) =the Sun and, (candreṇa) =by the Moon, (asmabhyam) =for us who make efforts, (bhūri) =very, (saubhagam)=splendor and glory, [pradāna kiyā jātā hai.]= is provided, (āvahantī)=enjoying all over, (diviṣṭiṣu) =in splendors, (vyucchantī) =living, (satī) =being, [vaha]=that, (jagat) =to the world, (bhāti) =illuminates, (tathā) =in the same way, (tvam) =you, (vidyāśamābhyām)=with wisdom and peace of mind, (bhānunā) =by the Sun, (ā) =from all sides, (bhāhi) =illuminate.

    English Translation (K.K.V.)

    O woman, present like daughter of light! As beautiful as dawn, a lot of beauty and opulence is given to us men by the Sun and the Moon. She illuminates the world while residing in the rays receiving happiness from all sides, in the same way you illuminate the world with knowledge and peace of mind through the Sun.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    There is silent vocal simile as a figurative in this mantra. Just as a virtuous daughter illuminates the clans of both mother and husband, similarly dawn illuminates both gross and subtle, that is, big and small things.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should she ( Usha ) be is taught further in the 9th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O woman like the Dawn the daughter of the Sun, as the dawn taking luster from the sun and the moon shines bringing us everyday much happiness and scattering darkness, living in the 'shining light, in the same manner, you should shine with knowledge and peace.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    ( व्युच्छन्ती) निवासं कुर्वन्ती उच्छ-विवासे = Residing or living. (दिविष्टिषु) प्रकाशितासु कान्तिषु = Shining lusters.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As a good girl illuminates both the families of her parents and husband, in the same way, the Dawn reveals both gross and subtle objects.

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