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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 48/ मन्त्र 5
    ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः देवता - उषाः छन्दः - निचृत्पथ्याबृहती स्वरः - मध्यमः

    आ घा॒ योषे॑व सू॒नर्यु॒षा या॑ति प्रभुञ्ज॒ती । ज॒रय॑न्ती॒ वृज॑नं प॒द्वदी॑यत॒ उत्पा॑तयति प॒क्षिणः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । घ॒ । योषा॑ऽइव । सू॒नरी॑ । उ॒षाः । या॒ति॒ । प्र॒ऽभु॒ञ्ज॒ती । ज॒रय॑न्ती । वृज॑नम् । प॒त्ऽवत् । ई॒य॒ते॒ । उत् । पा॒त॒य॒ति॒ । प॒क्षिणः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ घा योषेव सूनर्युषा याति प्रभुञ्जती । जरयन्ती वृजनं पद्वदीयत उत्पातयति पक्षिणः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । घ । योषाइव । सूनरी । उषाः । याति । प्रभुञ्जती । जरयन्ती । वृजनम् । पत्वत् । ईयते । उत् । पातयति । पक्षिणः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 48; मन्त्र » 5
    अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (आ) समन्तात् (घ) एव (योषेव) यथा स्त्री तथा (सूनरी) या सुष्ठु नयति (उषाः) प्रबोधदात्री (याति) प्राप्नोति (प्रभुंजती) प्रकृष्टं पालनं कुर्वती (जरयन्ती) या जीर्णामवस्थां भावयन्ती (वृजनम्) मार्गम् (पद्वत्) पद्भ्यां तुल्यम् (ईयते) प्राप्नोति (उत्) ऊर्ध्वे (पातयति) जागारयति (पक्षिणः) विहङ्गमान् ॥५॥

    अन्वयः

    पुनः सा किं करोतीत्युपदिश्यते।

    पदार्थः

    या योषेव प्रभुंजती सूनरी जरयंती उषा पद्वदीयते वृजनं याति पक्षिण उत्पातयति तस्यां सर्वैर्योगो घाभ्यसनीयः ॥५॥

    भावार्थः

    यथोषा निर्मला सर्वथा सुखप्रदा योगाभ्यासनिमित्ता भवति तथैव स्त्रीभिर्भवितव्यम् ॥५॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वह क्या करती है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    पदार्थ

    जो (योषेव) सत्स्त्री के समान (प्रभुंजती) अच्छे प्रकार भोगती (सूनरी) अच्छे प्रकार होती (जरयन्ती) जीर्णावस्था को करती (उषाः) प्रातसमय (पद्वत्) पगों के तुल्य (वृजनम्) मार्ग को (ईयते) प्राप्त होती हुई (याति) जाती और (पक्षिणः) पक्षियों को (उत्पातयति) उड़ाती है उस काल में सबको योगाभ्यास (घ) ही करना चाहिये ॥५॥ सं० भा० के अनुसार अच्छे प्रकार ले जाती। सं०

    भावार्थ

    जैसे प्रातःकाल की वेला सब प्रकार से सुख की देनेवाली योगाभ्यास का कारण है उसी प्रकार स्त्रियों को होना चाहिये ॥५॥

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    विषय

    सूनरी योषा

    पदार्थ

    १. (सूनरी) = घर का उत्तम सञ्चालन करनेवाली (योषा इव) = अवगुणों का पृथक्करण व गुणों का मिश्रण करनेवाली स्त्री की भाँति यह (उषाः) = प्रातः वेला भी (घ) = निश्चय से (आयाति) = आती है । उषा भी उसी गृहिणी की भाँति हमारे कार्यों का उत्तम प्रणयन करनेवाली है तथा हमें अभद्र से दूर करके भद्र से जोड़नेवाली है । २. (प्रभुञ्जती) = यह उषा हमारा उत्कृष्ट पालन करनेवाली है । भौतिक दृष्टिकोण से भी यह समय इसलिए अधिक उपयुक्त होता है कि इस समय वायुमण्डल में ओजोन गैस का प्राचुर्य होता है । यह वायु रक्तशोधन के द्वारा शक्तिवर्धक है । ३. यह उषा (वृजनम्) = पाप को [वर्ज्यते] (जरयन्ती) = जीर्ण करनेवाली है । उषा का अध्यात्म - लाभ यह है कि इस समय जागकर प्रभु - स्मरण से वासनाओं का विनाश होता है । प्रभुस्मरण के लिए यह उपयुक्ततम समय होता है । ४. इस उषा के आने पर (पद्वत्) = सब पाँवोंवाला प्राणिसमूह (ईयते) = गतिशील होता है । वस्तुतः यह उषा सबको उठाकर कार्य में लगने की प्रेरणा देती है, (पक्षिणः) = पक्षियों को भी (उत्पातयति) = घोंसलों से बाहर होकर आकाश में उड़नेवाला बनाती है । एवं, यह उषः काल सब तम को दूर करता हुआ मानस - तम [अन्धकार] को भी दूर करता है और सभी को क्रियाशील बनाता है । इस क्रियाशीलता के द्वारा ही यह उषा (प्रभुञ्जती) = सबका पालन करती है और सब पापों को जीर्ण करती है । इस प्रकार यह उषा हमारे जीवन का उत्तम प्रणयन करती है । इस प्रकार क्रम यह है [क] क्रियाशीलता [उत्पातयति], [ख] पालन [प्रभुञ्जती], [ग] पापविनाश [वृजनं जरयन्ती], [घ] जीवन का उत्तम प्रणयन [सूनरी] ।

    भावार्थ

    भावार्थ - यह उषा सुनरी योषा के समान है - 'प्रभुञ्जती, वृजनं जरयन्ती तथा उत्पातयन्ती' । उत्तम गृहिणी भी पति को सदा उत्तम कार्यों में व्यस्त रखती है ।

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    विषय

    उषा के वर्णन के साथ, कमनीय गुणों से युक्त कन्या और विदुषी स्त्री के गुण और कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    (घ) निश्चय से (उषा) उषा, प्रभातवेला भी (योषा इव) स्त्री के समान ही (सूनरी) उत्तम कार्यों में प्रवृत्त करानेवाली है। अर्थात् जिस प्रकार स्त्री पति को प्रेमपूर्वक कुमार्गों से हटाकर, कुव्यसनों से बचाकर सन्मार्ग में ले आती है इसी प्रकार प्रभात वेला भी सुखपूर्वक प्राणियों को योग, उपासना आदि कार्य में लगा देती है। स्त्री (प्रभुञ्जती) जिस प्रकार उत्तम उत्तम भोग प्रदान करती हुई अथवा पति और सन्तानों को व्रत, नियमादि का पालन कराती हुई (आयाति) प्राप्त होती है उसी प्रकार उषा भी (प्रभुञ्जती) उत्तम सुख प्रदान करती हुई और उत्तम व्रत, नियमों का पालन कराती हुई आती है। और जिस प्रकार स्त्री (जरयन्ती) पुरुष के साथ ही वृद्धावस्था तक आयु व्यतीत करती हुई (वृजनं) गमन योग्य मार्ग को (पद्वत् ईयते) दोनों चरणों से चलती है उसी प्रकार उषा भी (जरयन्ती) प्रतिदिन प्राणियों के जीवन की हानि करती हुई (पद्वत् ईयते) मानो पग पग धरती हुई प्राप्त होती है। और जिस प्रकार स्त्री घर की तथा अन्न की रक्षा के लिए (पक्षिणः) पक्षियों को (उत्पातयति) उड़ाती है अथवा अपने (पक्षिणः) पक्ष वाले सम्बन्धियों को उत्तम आदर प्राप्त कराती है। उसी प्रकार उषा भी अपने आगमन पर वृक्ष पर बैठे पक्षियों को जगा जगाकर आहार विहार के लिए उड़ाती है। इसी प्रकार ज्योतिष्मती विशोका का उदय होने पर भी वह प्रज्ञा योगी की सुखप्रदात्री, पालक, पाप के नाश करनेवाली ज्ञानस्वरूप होकर आती है और (पक्षिणः) परम हंसों को (उत्पातयति) ऊर्ध्वमार्ग, मोक्ष की तरफ़ ले जाती है। इति तृतीयो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रस्कण्व ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, ३, ७, ९ विराट् पथ्या बृहती । ५, ११, १३ निचृत् पथ्या बृहती च । १२ बृहती । १५ पथ्या बृहती । ४, ६, १४ विराट् सतः पंक्तिः । २, १०, १६ निचृत्सतः पंक्तिः । ८ पंक्तिः । षोडशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    फिर वह उषा क्या करती है, इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    या योषेव प्रभुंजती सूनरी जरयंती उषा पद्वत् ईयते वृजनं याति पक्षिण उत् पातयति तस्यां सर्वैः योगः घ अभ्यसनीयः ॥५॥

    पदार्थ

    (आ) समन्तात् =हर ओर से (या)=जाती हुई, (योषेव) यथा स्त्री तथा=जैसे स्त्री, वैसे ही (प्रभुंजती) प्रकृष्टं पालनं कुर्वती= प्रकृष्ट रूप से पालन करती हुई, (सूनरी) या सुष्ठु नयति= सुन्दर तरीके से ले जानेवाली, (जरयन्ती) या जीर्णामवस्थां भावयन्ती=जो बुढ़ापे की अवस्था प्राप्त करती हुई, (उषाः) प्रबोधदात्री= जागृति देनेवाली, (पद्वत्) पद्भ्यां तुल्यम्=पैरों के समान, (ईयते) प्राप्नोति=पहुँचती है, (वृजनम्) मार्गम्=मार्ग को, (याति) प्राप्नोति=प्राप्त करती है, (पक्षिणः) विहङ्गमान् = पक्षियों को, (उत्) ऊर्ध्वे =ऊपर की ओर, (पातयति) जागारयति=चला देती है, (तस्याम्)=उस, (सर्वैः)=सब को, (योगः)=योग का, (घ) एव= ही, (अभ्यसनीयः)=अभ्यास करना चाहिए ॥५॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    जैसे प्रातःकाल की वेला उषा सब प्रकार से सुख की देनेवाली योगाभ्यास का कारण होती है, उसी प्रकार स्त्रियों को होना चाहिये ॥५॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    (आ) हर ओर से (या) जाती हुई (योषेव) स्त्री, वैसे ही (प्रभुंजती) प्रकृष्ट रूप से पालन करती हुई, (सूनरी) सुन्दर तरीके से ले जानेवाली, (जरयन्ती) बुढ़ापे की अवस्थावाली, [और] (उषाः) जागृति देनेवाली, [वह] (पद्वत्) पैरों से चलने के समान, (ईयते) पहँचती है। [वह] (वृजनम्) मार्ग को (याति) पहुँचती है। (पक्षिणः) पक्षियों [की भाँति] [और] (उत्) ऊपर की ओर (पातयति) चला देती है। (तस्याम्) उस (सर्वैः) सब को (योगः) योग का (घ) ही (अभ्यसनीयः)अभ्यास करना चाहिए॥५॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (आ) समन्तात् (घ) एव (योषेव) यथा स्त्री तथा (सूनरी) या सुष्ठु नयति (उषाः) प्रबोधदात्री (याति) प्राप्नोति (प्रभुंजती) प्रकृष्टं पालनं कुर्वती (जरयन्ती) या जीर्णामवस्थां भावयन्ती (वृजनम्) मार्गम् (पद्वत्) पद्भ्यां तुल्यम् (ईयते) प्राप्नोति (उत्) ऊर्ध्वे (पातयति) जागारयति (पक्षिणः) विहङ्गमान् ॥५॥ विषयः- पुनः सा किं करोतीत्युपदिश्यते। अन्वयः- या योषेव प्रभुंजती सूनरी जरयंती उषा पद्वदीयते वृजनं याति पक्षिण उत्पातयति तस्यां सर्वैर्योगो घाभ्यसनीयः ॥५॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- यथोषा निर्मला सर्वथा सुखप्रदा योगाभ्यासनिमित्ता भवति तथैव स्त्रीभिर्भवितव्यम् ॥५॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जशी प्रातःकाळची वेळ निर्मळ व सर्व प्रकारे सुखी करणारी असून योग्याभ्यासाचे कारण असते तसे स्त्रियांनी असले पाहिजे. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Like a beautiful young maiden walks the dawn majestically (across the skies and over the earth), energising, exciting, exhorting, filling the sky with new light and life, calling out the humans and animals to move and the birds to fly away.

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    Subject of the mantra

    Then what does that Uṣā (dawn) do, this subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    (ā) From all sides, (yā) =going, (yoṣeva) =the woman in the same way, (prabhuṃjatī) =excellently nourishing, (sūnarī)=elegant carrier, (jarayantī)=of old age, [aura]=and, (uṣāḥ)=awakening, [vaha]=that, (padvat)=like walking on foot, (īyate) =reaches, [vaha]=that, (vṛjanam)=to the way, (yāti) =reaches, (pakṣiṇaḥ) =birds, [kī bhāṁti]=like, [aura]=and, (ut) =upwards, (pātayati) =moves away, (tasyām) =to that, (sarvaiḥ) all, (yogaḥ)=of Yoga, (gha) =only, (abhyasanīyaḥ) =practice.

    English Translation (K.K.V.)

    The woman who goes from all sides, in the same way, is a great nurturer, a beautiful carrier, a carrier of old age and a giver of awakening. Like walking on the feet, she reaches the path and moves upwards like birds. All of them should practice yoga only.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    Just as the morning dawn is the reason for practicing yoga which gives happiness in every way, women should do the same.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What does Usha do is taught in the fifth-Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    All should practice Yoga at Dawn who comes daily like a Matron, the directress of household duties, and good nourisher of the family conducting all transient creatures to decay; at her coming, each biped stirs and she makes the birds of air fly up.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (प्रभुंजती ) प्रकृष्टं पालनं कुर्वती = Sustaining or nourishing well by cooking nutritious food and looking after them. [भुज-पालनाभ्यवहारयोः -Tr.]

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the Usha (Dawn) is pure and giver of happiness and suitable for the practice of Yoga, so the women should be.

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