ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 10
इन्द्रो॑ अ॒ङ्ग म॒हद्भ॒यम॒भी षदप॑ चुच्यवत्। स हि स्थि॒रो विच॑र्षणिः॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑ । अ॒ङ्ग । म॒हत् । भ॒यम् । अ॒भि । सत् । अप॑ । चु॒च्य॒व॒त् । सः । हि । स्थि॒रः । विऽच॑र्षणिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रो अङ्ग महद्भयमभी षदप चुच्यवत्। स हि स्थिरो विचर्षणिः॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रः। अङ्ग। महत्। भयम्। अभि। सत्। अप। चुच्यवत्। सः। हि। स्थिरः। विऽचर्षणिः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 10
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सूर्य्यविषयमाह।
अन्वयः
हे अङ्ग यः स्थिरो विचर्षणिरिन्द्रो महत्सद्भयमपाभिचुच्यवत्स हि वेदितव्यः ॥१०॥
पदार्थः
(इन्द्रः) (अङ्ग) सम्बोधने (महत्) (भयम्) (अभि) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सत्) (अप) (चुच्यवत्) च्यावयति (सः) (हि) किल (स्थिरः) स्वपरिधिस्थः (विचर्षणिः) दर्शकः। विचर्षणिरिति पश्यतिकर्मा निघं० ३। ११ ॥१०॥
भावार्थः
यदि ब्रह्माण्डे सूर्यो न स्यात्तर्हि कस्यापि भयं न निवर्त्तेत, यदि सूर्यलोकः स्वपरिधौ स्थिरो दर्शको न भवेत्तर्हि तुल्याकर्षणं दर्शनं च न भवेत् ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सूर्य्य के विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे (अङ्ग) विद्वान् पुरुष जो (स्थिरः) स्थिर अपनी परिधि में ठहरा हुआ (विचर्षणिः) देखनेवाला (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् सूर्य (महत्) बहुत (सत्) होता हुआ (भयम्) जो भय उसको (अप,अभि,चुच्यवत्) अलग करता है (सः,हि) वही सूर्यलोक जानने योग्य है ॥१०॥
भावार्थ
यदि ब्रह्माण्ड में सूर्य न हो तो किसी का भय न निवृत्त हो, यदि सूर्यलोक अपनी परिधि में स्थिर और दिखानेवाला न हो तो तुल्य आकर्षण और देखना न बने ॥१०॥
विषय
स्थिर विचर्षणि
पदार्थ
१. 'अत् सातत्य गमने' से आत्मा, 'वा गतौ' से वायु, तथा 'अगि गतौ' से अङ्ग शब्द बनता है। हे अङ्ग = क्रियाशील जीव ! इन्द्रः = वह सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला प्रभु ही महद्भयम्- इस महान् भय के कारणभूत 'जीवन-मरण-चक्र' व संसार का (अभीषत्) = अभिभव करता है और (अपचुच्यवत्) = इसे हमारे से पृथक् करता है संसार में भय ही भय है। प्रभुकृपा होती है और इस संसार से हम ऊपर उठ पाते हैं । २. (सः हि) = वे प्रभु ही (स्थिर:) = अच्युत हैं, किसी भी शत्रु से विचलित किये जाने योग्य नहीं हैं। (विचर्षणिः) = सर्वद्रष्टा हैं, सब को देखनेवाले हैं-वे ही सबका ध्यान करते हैं [Look after] |
भावार्थ
भावार्थ - इस संसार में पदे- पदे पर भय है। नाममात्र गलती हुई और पीड़ा प्राप्त हुई । प्रभु ही हमें इससे बचानेवाले हैं।
विषय
उत्तम पुरुषों, नाना अध्यक्षों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान्, शत्रुहन्ता वीर पुरुप सूर्य के समान तेजस्वी, सर्वमार्गप्रकाशक होकर ( महत् ) बड़े भारी ( सत् ) विद्यमान ( भयम् ) भय को ( अभि ) मुकाबला करके उसको ( अपचुच्यपत् ) दूर कर देता है। ( हि ) क्योंकि ( सः ) वह ही ( स्थिरः ) स्थिर, अन्त तक ठहरने में समर्थ, और ( विचर्षणिः ) विविध उपायों को देखने और दिखाने वाला, और ( विचर्षणिः ) विविध प्रजाओं का स्वामी है । इत्यष्टमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १, २ वायुः । ३ इन्द्रवायू । ४–६ मित्रावरुणौ । ७–९ अश्विनौ । १०–१२ इन्द्रः । १३–१५ विश्वेदेवाः । १६–१८ सरस्वती । १६–२० द्यावापृथिव्यौ हविर्भाने वा देवता ॥ छन्दः-१, ३, ४, ६, १०, ११, १३ ,१५ ,१९ ,२० ,२१ गायत्री । २,५ ,९ , १२, १४ निचृत् गायत्री । ७ त्रिपाद् गायत्री । ८ विराड् गायत्री । १६ अनुष्टुप् । १७ उष्णिक् । १८ बृहती ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जर ब्रह्मांडात सूर्य नसता तर कुणाचेही भय नष्ट झाले नसते. जर सूर्यलोक आपल्या परिधीत स्थिर राहून दृश्यमान नसेल तर तुल्य आकर्षण व दर्शन घडले नसते. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, light of life, dear as breath of vitality, mighty great, blazing as the sun which is stable in its orbit and enlightens and watches us all as it moves, may, we pray, remove all fear and give us freedom.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of the sun are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O dear one! you should know well that Indra (sun) dissipates all great and overpowering danger. It is firm in its own circumference and is the means to see all the objects with its light.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If there would be no sun in the world, none can become free from all fear. If the solar world is not firm on its own axis and does not provide power of vision none can see things properly and there may not be balanced vision.
Foot Notes
(स्थिरः) स्व्परिधिस्थः। =Firm on his own axis or circumference. (विचर्षणिः) दर्शक:। विचर्षणिरिति पश्यतिकर्मा (NG 3, 11, 10) = The cause of showing all objects. Rishi Dayananda Sarasvati has given only the cosmic interpretation as the spiritual meaning is quite evident, Indra is meaning God The Lord of the world. It is thus "God is the dispeller of dissipator of all fear and danger. He is immutable and omniscient seeing all thoroughly."
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