ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 5
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
राजा॑ना॒वन॑भिद्रुहा ध्रु॒वे सद॑स्युत्त॒मे। स॒हस्र॑स्थूण आसाते॥
स्वर सहित पद पाठराजा॑नौ । अन॑भिऽद्रुहा । ध्रु॒वे । सद॑सि । उ॒त्ऽत॒मे । स॒हस्र॑ऽस्थूणे । आ॒सा॒ते॒ इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
राजानावनभिद्रुहा ध्रुवे सदस्युत्तमे। सहस्रस्थूण आसाते॥
स्वर रहित पद पाठराजानौ। अनभिऽद्रुहा। ध्रुवे। सदसि। उत्ऽतमे। सहस्रऽस्थूणे। आसाते इति॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 5
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे अनभिद्रुहा राजानौ युवां ध्रुवं उत्तमे सहस्रस्थूणे सदसि यौ मित्रावरुणावासाते तौ विजानीतम् ॥५॥
पदार्थः
(राजानौ) प्रकाशमानौ (अनभिद्रुहा) द्रोहकर्मरहितौ (ध्रुवे) निश्चले (सदसि) सभास्थाने (उत्तमे) श्रेष्ठे (सहस्रस्थूणे) सहस्राणि स्थूणाः स्तम्भाः यस्मिँस्तस्मिन् (आसाते) उपविशतः ॥५॥
भावार्थः
हे मनुष्यास्तावेव राजप्रधानपुरुषौ धन्यवादमर्हतः यौ गुणाढ्यायामुत्तमानां सभायां स्थित्वा कस्यचित् पक्षपातं कदाचिन्न कुर्याताम् ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे (अनभिद्रुहा) द्रोहकर्मरहित (राजानौ) प्रकाशमान जनो ! तुम (ध्रुवे) जो कि निश्चल (उत्तमे) श्रेष्ठ (सहस्रस्थूणे) जिसमें सहस्र खम्भा विद्यमान उस (सदसि) सभा में जो प्राणोदानवद्वर्त्तमान अध्यापकोपदेशक (आसाते) बैठते हैं, उनको जानो ॥५॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! वे ही राजा और प्रधान पुरुष धन्यवाद के योग्य होते हैं, जो गुणयुक्त उत्तम सभा में बैठके किसी का पक्षपात कभी न करें ॥५॥
विषय
व्यवस्थित जीवन व द्रोहशून्यता
पदार्थ
१. गतमन्त्र में 'मित्रावरुणा' को 'ऋतावृधा' कहा था। उन्हें ही प्रस्तुत मन्त्र में 'राजानौ' कहा है। [राज् regulate] (राजानौ) = बड़े regulated-व्यवस्थित जीवनवाले तथा (अनभिद्रुहा) = किसी का द्रोह न करनेवाले पति-पत्नी (सदसि) = स्थानविशेष में उपविष्ट होते हैं। पति-पत्नी को घर में बड़े व्यवस्थित जीवनवाला और सब प्रकार की द्रोह-वृत्ति से ऊपर उठा हुआ बनकर रहना चाहिए। २. कैसे घर में ? [क] (ध्रुवे) = जो ध्रुव है-मर्यादा से विचलित नहीं होता। घर में मर्यादाओं का पालन आवश्यक है । [ख] (उत्तमे) = जो उत्तम है। भोगाधिक्यवाला गृह अधम है। अर्थरुचितावाला मध्यम है। धर्म व यश की अभिरुचिवाला गृह उत्तम है। इस उत्तम घर में रहनेवालों की मानसवृत्ति धर्मप्रवण तथा यशःप्रवण होती है। [ग] (सहस्रस्थूणे) = यह घर हजारों स्तम्भोंवाला हो-विशाल हो । अथवा हजारों के लिए स्तम्भ के समान हो- उनका धारण करनेवाला हो। आनेवाले शतशः पुरुषों को वहाँ 'न' सुनने को न मिले। (आसाते) = आधार देने योग्य अपाहिजों को तो वह धारण करता ही हो ।
भावार्थ
भावार्थ- घर मर्यादावाला–धर्म व यश की अभिरुचिवाला-विशाल व बहुतों को धारण करनेवाला हो। इसमें रहनेवाले पति-पत्नी व्यवस्थित जीवनवाले तथा द्रोहरहित हों।
विषय
उत्तम पुरुषों, नाना अध्यक्षों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( राजाना ) प्रजाओं के रंजन करने वाले, गुणों से शोभा पाने वाले उत्तम राजा रानी, राजा सचिव, गुरु शिष्यो ! एवं स्त्री पुरुषो ! आप दोनों ( अनभिद्रुहा ) परस्पर द्रोह न करते हुए ( उत्तमे ) उत्तम ( ध्रुवे ) स्थायी ( सहस्र-स्थूणे ) सहस्रों अनेक एवं बलवान् स्तम्भों वाले ( सदसि ) घर, सभा-भवन आश्रय स्थान में, ( आसाते ) विराजो, रहो, आश्रय लो । अभ्यात्म में—सर्वोत्तम सर्व प्रबल स्तम्भ से युक्त ‘सदस्’ परमेश्वर है। उसमें आत्मा और मन आश्रय लें । इति सप्तमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १, २ वायुः । ३ इन्द्रवायू । ४–६ मित्रावरुणौ । ७–९ अश्विनौ । १०–१२ इन्द्रः । १३–१५ विश्वेदेवाः । १६–१८ सरस्वती । १६–२० द्यावापृथिव्यौ हविर्भाने वा देवता ॥ छन्दः-१, ३, ४, ६, १०, ११, १३ ,१५ ,१९ ,२० ,२१ गायत्री । २,५ ,९ , १२, १४ निचृत् गायत्री । ७ त्रिपाद् गायत्री । ८ विराड् गायत्री । १६ अनुष्टुप् । १७ उष्णिक् । १८ बृहती ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जे गुणवानांच्या उत्तम सभेमध्ये कुणाबरोबरही भेदभावाने वागत नाहीत तेच राजा व प्रधान धन्यवादास पात्र आहेत. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Vayu, power and progress, Mitra and Varuna, love and justice in freedom of choice, all embracing and hating none, abide in the house of inviolable peace and stability firmly resting on a thousand pillars.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
More about the teachers and their pupils.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The king and prime minister shine on account of their virtues. They do not oppress or have malice against anyone. They hold meetings and accept petitions in this magnificent and firmly founded hall, built on one thousand pillars. You should know them well.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! only those kings and prime ministers deserve gratitude, who while holding a virtuous good Assembly of noble People's Representatives (or seated in the Court of Justice) never show partiality or prejudice or discrimination of any kind towards any one. (Even the translation of this mantra by Prof. Ed.) Wilson and Griffith point out the glory of Vedic Polity.
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