ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 16
अम्बि॑तमे॒ नदी॑तमे॒ देवि॑तमे॒ सर॑स्वति। अ॒प्र॒श॒स्ताइ॑व स्मसि॒ प्रश॑स्तिमम्ब नस्कृधि॥
स्वर सहित पद पाठअम्बि॑ऽतमे । नदी॑ऽतमे । देवि॑ऽतमे । सर॑स्वति । अ॒प्र॒श॒स्ताःऽइ॑व । स्म॒सि॒ । प्रऽश॑स्तिम् । अ॒म्ब॒ । नः॒ । कृ॒धि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति। अप्रशस्ताइव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि॥
स्वर रहित पद पाठअम्बिऽतमे। नदीऽतमे। देविऽतमे। सरस्वति। अप्रशस्ताःऽइव। स्मसि। प्रऽशस्तिम्। अम्ब। नः। कृधि॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 16
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विदुषीविषयमाह।
अन्वयः
हे अम्बितमे देवितमे नदीतमे सरस्वत्यम्ब त्वं येऽप्रशस्ता इव वयं स्मसि तान्नः प्रशस्तिं प्राप्तान् कृधि ॥१६॥
पदार्थः
(अम्बितमे) याऽम्बतेऽध्यापयति साऽतिशयिता तत्सम्बुद्धौ (नदीतमे) अतिशयेनाव्यक्तविद्योपदेशिके (देवितमे) अतिशयेन विदुषि (सरस्वति) बहुविज्ञानवति (अप्रशस्ता इव) यथा न प्रशस्ता अप्रशस्तास्तथा वर्त्तमाना वयम् (स्मसि) (प्रशस्तिम्) श्रैष्ठ्यम् (अम्ब) मातरध्यापिके (नः) अस्मान् (कृधि) कुरु ॥१६॥
भावार्थः
यावत्यः कुमार्य्यस्सन्ति विदुषीणां सकाशादधीरन् ता ब्रह्मचारिण्यो विदुषीरेवं प्रार्थयेयुर्भवत्योऽस्मान् विद्यासुशिक्षायुक्तान् कुरुतेति ॥१६॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विदुषी के विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे (अम्बितमे) अतीव पढ़ानेवाली (देवितमे) अतीव पण्डिता (नदीतमे) अतीव अप्रकट विद्या का उपदेश करने (सरस्वति) बहुविज्ञान रखनेवाली (अम्ब) माता अध्यापिका जो (अप्रशस्ताइव) अप्रशस्तों के समान हम लोग (स्मसि) हैं उन (नः) हम लोगों को (प्रशस्तिम्) प्रशंसा को प्राप्त (कृधि) करो ॥१६॥
भावार्थ
जितनी कुमारी हैं, वे विदुषियों से विद्या अध्ययन करें और वे कुमारी ब्रह्मचारिणी विदुषियों की ऐसी प्रार्थना करें कि आप हम सबों को विद्या और सुशिक्षा से युक्त करें ॥१६॥
विषय
अप्रशस्तता से प्रशस्ति की ओर
पदार्थ
१. 'सरस्वती' ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। यह मनुष्य के लिए माता की तरह हितकारिणी है - यह उसके जीवन को बनानेवाली है— सचमुच माता है— अम्बितमा - dearest mother है। यह ज्ञान भी एक नदी के समान है- ज्ञानजल की नदी सर्वोत्तम नदी है। यह ज्ञान ही सब व्यवहारों का साधक है - अतः यह देवी है। आचार्य से शिष्य की ओर प्रवाहरूप में प्रवृत्त होने से सरस्वती है। इसमें स्नान किये बिना मनुष्य स्नातक नहीं कहलाता। इसमें स्नान से मनुष्य पवित्र बन जाता है। इस स्नान के अभाव में अपवित्रता बनी रहती है। २. इसलिए प्रार्थना करते हैं कि हे (अम्बितमे) = प्रशस्त मातृतुल्य! (नदीतमे) सर्वोत्तम नदी के समान ! (देवितमे) = सर्वोत्कृष्ट देवता ! (सरस्वति) = ज्ञान की अधिष्ठात्रि देवि! हम तेरे विना (अप्रशस्ताः इव) = कुछ अप्रशस्त से जीवनवाले (स्मसि) = हैं। तेरे बिना हमारा जीवन पवित्र नहीं बन पाया । हे (अम्ब) = उत्तम ज्ञानोपदेश देनेवाली मातः ! (नः प्रशस्तिं कृधि) = हमारे जीवन में प्रशस्ति को करिए। अप्रशस्तता को हटाकर हमें प्रशस्तता को प्राप्त कराइए ।
भावार्थ
भावार्थ - ज्ञान से जीवन प्रशस्त बनता है-
विषय
उत्तम स्त्रियों का वर्णन।
भावार्थ
हे (अम्ब) अध्यापन करने, शिक्षा देने वाली आचार्याणि ! और हे मातः ! हे ( अम्बितमे ) अध्यापन करने वालों में सबसे श्रेष्ठ ! सबसे अधिक पूजा योग्य ! ( नदीतमे ) उपदेश करने वालों में सबसे अधिक पूज्य ! हे ( देवितमे ) विद्यादि दान करने वाली स्त्रियों में सर्वंश्रेष्ठ ! हे ( सरस्वति ) उत्तम ज्ञान वाली ! हम ( अप्रशस्ताः इव ) उत्तम ज्ञानोपदेश, और प्रवचन से रहित अकुशल, मूर्ख, बालक के समान ( स्मसि ) हैं । ( नः ) हमें ( प्रशस्तिं ) उत्तम ज्ञानोपदेश ( कृधि ) कर । ( २ ) परमेश्वर सर्वश्रेष्ठ ज्ञानप्रद, सर्वैश्वर्यसम्पन्न, मातृतुल्य है । वह हम बालक समान अज्ञानियों को ज्ञानवान्, उत्तम बनावे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १, २ वायुः । ३ इन्द्रवायू । ४–६ मित्रावरुणौ । ७–९ अश्विनौ । १०–१२ इन्द्रः । १३–१५ विश्वेदेवाः । १६–१८ सरस्वती । १६–२० द्यावापृथिव्यौ हविर्भाने वा देवता ॥ छन्दः-१, ३, ४, ६, १०, ११, १३ ,१५ ,१९ ,२० ,२१ गायत्री । २,५ ,९ , १२, १४ निचृत् गायत्री । ७ त्रिपाद् गायत्री । ८ विराड् गायत्री । १६ अनुष्टुप् । १७ उष्णिक् । १८ बृहती ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जितक्या ब्रह्मचारिणी आहेत त्यांनी विदुषींकडून अध्ययन करावे व ब्रह्मचारिणींनी विदुषींना अशी प्रार्थना करावी की तुम्ही आम्हाला विद्या व सुशिक्षणाने युक्त करा. ॥ १६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Sarasvati, mother dearest, most fluent and eloquent giver of vision and wisdom, liberal and most brilliant, eternal fount of knowledge and speech, we are just like simple, natural, innocent, unknown children. Mother spirit of nature and humanity, give us the light of knowledge and culture with the grace of Divinity and make us worthy of acceptance, appreciation and rightful praise.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties and attributes of the learned ladies are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O mother ! O best among the teachers ! O best among the teaching of obstruse knowledge! O the most enlightened and the wisest! we are not yet endowed with all admirable qualities, you taught us. Please give us excellence and fame earned through your teachings.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
All virgins should learn their lessons from highly learned ladies and should pray to them to make endowed with all wisdom, knowledge and good education.
Foot Notes
(अम्बितमे) याऽम्बतेऽध्यापयति साऽतिशयता, तत्सम्बुद्धौ। = The best among the teachers. (नदीतमे) अतिशयेनाव्यक्तवित्तोपदेशिके। = The best among the instructresses of obstruse knowledge. (सरस्वति) बहुविज्ञानवति। = Highly learned, full of the knowledge of all sciences. (अम्ब) मातरध्यापिके । = Mother or lady teacher who is to be regarded as mother.
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