ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 19
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - द्यावापृथिव्यौ हविर्धाने वा
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्रेतां॑ य॒ज्ञस्य॑ शं॒भुवा॑ यु॒वामिदा वृ॑णीमहे। अ॒ग्निं च॑ हव्य॒वाह॑नम्॥
स्वर सहित पद पाठप्र । इ॒ता॒म् । य॒ज्ञस्य॑ । श॒म्ऽभुवा॑ । यु॒वाम् । इत् । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ । अ॒ग्निम् । च॒ । ह॒व्य॒ऽवाह॑नम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रेतां यज्ञस्य शंभुवा युवामिदा वृणीमहे। अग्निं च हव्यवाहनम्॥
स्वर रहित पद पाठप्र। इताम्। यज्ञस्य। शम्ऽभुवा। युवाम्। इत्। आ। वृणीमहे। अग्निम्। च। हव्यऽवाहनम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 19
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे स्त्रीपुरुषौ यौ शम्भुवा युवां यज्ञस्य विद्याः प्रेतां हव्यवाहनमग्निं च ताविदेव वयमा वृणीमहे ॥१९॥
पदार्थः
(प्र) (इताम्) प्राप्नुतः (यज्ञस्य) अध्यापनाध्ययनस्य (शंभुवा) यौ शं सुखं सम्भावयतस्तौ (युवाम्) द्वौ स्त्रीपुरुषौ (इत्) एव (आ) (वृणीमहे) स्वीकुर्महे (अग्निम्) पावकम् (च) (हव्यवाहनम्) यो हव्यं वहति तम् ॥१९॥
भावार्थः
सर्वैर्मनुष्यैः पुत्राध्यापकान् पुरुषान् कन्याध्यापिकाः स्त्रियश्च सततमध्यापनाय नियोजनीया यतस्स्त्रीपुरुषेषु पूर्णविद्याप्रचारः स्यात् ॥१९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे स्त्री पुरुषो ! जो (शम्भुवा) सुख की सम्भावना करानेवाले (युवाम्) दोनों स्त्री-पुरुष (यज्ञस्य) यज्ञ की विद्याओं को (प्रेताम्) प्राप्त होते (च) और (हव्यवाहनम्) हव्य द्रव्य को पहुँचानेवाले (अग्निम्) अग्नि को प्राप्त होते (इत्) उन्हीं को हम लोग (आ,वृणीमहे) अच्छे प्रकार स्वीकार करते हैं ॥१९॥
भावार्थ
सब मनुष्यों को पुत्रों के अध्यापकों और पुत्री की अध्यापिकाओं को निरन्तर नियुक्त करना चाहिये, जिससे स्त्री-पुरुषों में पूर्ण विद्याओं का प्रचार हो ॥१९॥
विषय
स्वास्थ्य+ज्ञान तथा यज्ञ
पदार्थ
१. जीवन में शरीर व मस्तिष्क दोनों ठीक हों तो यज्ञ चलते हैं। इनमें से किसी एक के भी ठीक न होने पर यज्ञ समाप्त हो जाते हैं। सो द्यावा पृथिवी से प्रार्थना करते हैं कि (यज्ञस्य शंभुवा) = इस जीवनयज्ञ को शान्ति से चलानेवाले मस्तिष्क व शरीर ! आप दोनों (प्रेताम्) = हमें प्रकर्षेण प्राप्त होओ। हमारा मस्तिष्क भी ठीक हो और हमारा शरीर भी ठीक हो । (युवाम् इत्) = आप दोनों को ही निश्चय से (आवृणीमहे) = हम सर्वथा वरते हैं। हम चाहते हैं कि हमारा मस्तिष्क भी ठीक हो और हमारा शरीर भी ठीक हो । २. (च) = और (हव्यवाहनम्) = हव्य पदार्थों का वहन करनेवाले (अग्निम्) = अग्नि को हम वरते हैं। हम चाहते हैं कि स्वस्थ मस्तिष्क व स्वस्थ शरीरवाले बनकर हम यज्ञादि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहें।
भावार्थ
भावार्थ- हमारा मस्तिष्क सर्वथा ठीक हो – शरीर स्वस्थ हो और हम यज्ञों के करनेवाले हों।
विषय
और विद्वानों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे सूर्य और भूमि के समान प्रकाशक, सेचक और उत्पादक ( युवाम् ) आप दोनों ( यज्ञस्य ) यज्ञ, परस्पर सत्संग, दान, उपासना आदि उत्तम कर्म और गृहस्थादि यज्ञ के कार्य के लिये ( प्र इताम् ) आगे बढ़ो । ( युवाम् इत् ) आप दोनों को ही हम इस निमित्त ( आ वृणीमहे ) अच्छी प्रकार वरण करते हैं। और इसी कार्य के लिये ( अग्निं ) अग्रणी नायक और ( हव्य-वाहनम् आवृणीमहे ) ग्राह्य ज्ञान, और उत्तम अन्न आदि पदार्थ को धारण करने वाले विद्वान् पुरुष को हम वरण किया करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १, २ वायुः । ३ इन्द्रवायू । ४–६ मित्रावरुणौ । ७–९ अश्विनौ । १०–१२ इन्द्रः । १३–१५ विश्वेदेवाः । १६–१८ सरस्वती । १६–२० द्यावापृथिव्यौ हविर्भाने वा देवता ॥ छन्दः-१, ३, ४, ६, १०, ११, १३ ,१५ ,१९ ,२० ,२१ गायत्री । २,५ ,९ , १२, १४ निचृत् गायत्री । ७ त्रिपाद् गायत्री । ८ विराड् गायत्री । १६ अनुष्टुप् । १७ उष्णिक् । १८ बृहती ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
सर्व माणसांनी पुत्रांसाठी अध्यापक व पुत्रींसाठी अध्यापिकांना नियुक्त केले पाहिजे. ज्यामुळे स्त्री-पुरुषांमध्ये पूर्ण विद्यांचा प्रचार व्हावा. ॥ १९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Dyavaprthivi, heaven and earth, generative treasures of yajnic wealth, creators and givers of peace, prosperity and well-being, come and grace our yajna. We opt for you and invoke and invite you. And we invoke and invite Agni who carries the fragrance of the holy yajna offered into the fire.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
In the praise of male and female teachers.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men and women! we select you wholeheartedly who confer happiness upon all and are experts in the knowledge of the Yajna (in the form of study and teaching). They know well the properties of the fire which is the bearer of the oblations.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
All should appoint male teachers for teaching boys and adults and female teachers for imparting education to girls and women. This helps to wipe out ignorance and illiteracy and helps in the diffusion of knowledge among all men and women.
Translator's Notes
In the Vedas, the word Yajna has been used in a very comprehensive sense and it includes every noble act which brings about the welfare of all. Brahma Yajna is the first among the daily Yajnas and its consist of Sandhya (Meditation) and Svādhyāya. In the Manu Smriti it is stated अध्यापनं ब्रह्मयज्ञ: (मनु ३, ७० ) and the commentators have rightly remarked that अध्यापनशब्देनाध्ययनमपि गृह्यते । i.e. teaching includes study also. So the study and teaching of the Vedas and other shastras is a part of the Brahma Yajna.
Foot Notes
(यज्ञस्य) अध्यापनाध्ययनस्य = Of study and teaching.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal