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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्रवायू छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    शु॒क्रस्या॒द्य गवा॑शिर॒ इन्द्र॑वायू नि॒युत्व॑तः। आ या॑तं॒ पिब॑तं नरा॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शु॒क्रस्य॑ । अ॒द्य । गोऽआ॑शिरः । इन्द्र॑वायू॒ इति॑ । नि॒युत्व॑तः । आ । या॒त॒म् । पिब॑तम् । न॒रा॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुक्रस्याद्य गवाशिर इन्द्रवायू नियुत्वतः। आ यातं पिबतं नरा॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुक्रस्य। अद्य। गोऽआशिरः। इन्द्रवायू इति। नियुत्वतः। आ। यातम्। पिबतम्। नरा॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथाऽध्यापकाऽध्येतृविषयमाह।

    अन्वयः

    हे नरा इन्द्रवायू इव वर्त्तमानौ युवामद्य शुक्रस्य गवाशिरो नियुत्वत आयातं शुक्रस्योदकस्य रसं पिबतम् ॥३॥

    पदार्थः

    (शुक्रस्य) शोषकस्योदकस्य। शुक्रमित्युदकना० निघं० १। १२। (अद्य) इदानीम् (गवाशिरः) गाः किरणान् अश्नुते तस्य (इन्द्रवायू) विद्युत्पवनौ (नियुत्वतः) नियमेन वर्त्तमानस्य (आ) (यातम्) प्राप्नुतम् (पिबतम्) (नरा) नायकौ ॥३॥

    भावार्थः

    यथा विद्युत्पवनौ सर्वत्राऽभिव्याप्तौ सर्वं जगद्रक्षतस्तथोत्तमानि कर्माणि कृत्वा शुद्धोदकं पीत्वाऽरोग्यं सर्वेषामुन्नतिश्च कार्य्या ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब अध्यापक और अध्येताओं के विषय को कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (नरा) बिजली और पवन के समान वर्त्तमान अग्रगन्ता मनुष्यो ! तुम (अद्य) आज (शुक्रस्य) अज्ञानता सोखने और (गवाशिरः) किरण को अर्थात् विद्याओं को व्याप्त होनेवाले (नियुत्वतः) नियमयुक्त के समीप (आ,यातम्) आओ और जल रस (पिबतम्) पिओ ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे बिजुली और पवन सर्वत्र अभिव्याप्त और सब जगत् की रक्षा करते हैं, वैसे उत्तम काम कर और शुद्ध जल पीके आरोग्यपन और सबकी उन्नति करनी चाहिये ॥३॥

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    विषय

    जितेन्द्रियता व क्रियाशीलता

    पदार्थ

    १. (इन्द्रवायू) हे इन्द्र और वायु-जितेन्द्रिय व गतिशील पुरुषो! (आयातम्) = आप दोनों आवो और (नरा) = अपने को उन्नतिपथ पर प्राप्त करानेवाले इन्द्र और वायु ! आप दोनों (अद्य) = आज (शुक्रस्य पिबतम्) = इस सोम का तृप्तिपर्यन्त पान करनेवाले बनो। शरीरस्थ सोम का पान वस्तुतः इन्द्र और वायु ही करते हैं । जितेन्द्रियता व गतिशीलता वे साधन हैं जिनसे कि सोमपान सम्भव होता है। २. उस सोम का आप पान करो, जो कि (गवाशिरः) = [गो आ शृ] इन्द्रियों को समन्तात् हिंसित करनेवाला है। ‘मन को मार लेता' मुहावरे में मारने का भाव जीत लेना ही है। सोम का पान करनेवाला इन्द्रियों को जीत लेना है। (नियुत्वतः) = यह सोम प्रशस्त इन्द्रियोंवाला है। सोमरक्षण से इन इन्द्रियाश्वों की शक्ति बढ़ती है; परन्तु साथ ही ये इन्द्रियाश्व इस सोमरक्षक की अधीनता में होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण के साधन जितेन्द्रियता व क्रियाशीलता हैं। सोमरक्षण से इन्द्रियाँ शक्तिशाली बनती हैं और इस सोमरक्षक के वश में होती हैं ।

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    विषय

    उत्तम पुरुषों, नाना अध्यक्षों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( इन्दवायू ) इन्द्र, मेघ, और वायु दोनों जिस प्रकार ( नियुत्-वतः ) लक्षों किरणों से युक्त ( गवाशिरः ) किरणों के आश्रय रूप ( शुक्रस्य ) तेजस्वी सूर्य को प्राप्त होकर ( गवाशिरः शुक्रस्य पिवतः ) भूमि पर आश्रित जल का पान करते हैं उसी प्रकार हे ( इन्द्रवायू ) ऐश्वर्यवन् और हे बलवन् ! सूर्य और वायु या मेघ और वायु के समान दानशील और बलवान् पुरुषो ! अथवा इन्द्र मेघ या सूर्य के समान सेचक और वायु के समान गर्भधारक गृहस्थ स्त्री पुरुषो ! आप दोनों ( नियुत्वतः ) नियम-व्यवस्था वाले या प्रबन्धक और ( गवाशिरः ) गो अर्थात् वाणी के प्रधान आश्रय विद्वान् या आज्ञापक ( शुक्रस्य ) तेजस्वी पुरुष के समीप ( आयातं ) आओ और हे ( नरा ) नायक नेता पुरुषो ! आप ( गवाशिरः ) पृथ्वी पर स्थित या गौओं से प्राप्त होने वाले ( शुक्रस्य ) शुद्ध, अन्न जल और तेज देनेवाले बलवर्धक दुग्ध आदि और ओषधिरसों का ( पिवतम् ) पान करो । ( २ ) अथवा—हे ज्ञान और वस्त्र के इच्छुक शिष्यो ! ( गवाशिरः ) इन्द्रियगणों में व्यापक शुक्र वीर्य का नियमकर्त्ता गुरु के अधीन ( पिबतं ) पालन करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ १, २ वायुः । ३ इन्द्रवायू । ४–६ मित्रावरुणौ । ७–९ अश्विनौ । १०–१२ इन्द्रः । १३–१५ विश्वेदेवाः । १६–१८ सरस्वती । १६–२० द्यावापृथिव्यौ हविर्भाने वा देवता ॥ छन्दः-१, ३, ४, ६, १०, ११, १३ ,१५ ,१९ ,२० ,२१ गायत्री । २,५ ,९ , १२, १४ निचृत् गायत्री । ७ त्रिपाद् गायत्री । ८ विराड् गायत्री । १६ अनुष्टुप् । १७ उष्णिक् । १८ बृहती ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे विद्युत व पवन सर्वत्र अभिव्याप्त असून सर्व जगाचे रक्षण करतात तसे उत्तम काम करून शुद्ध जल पिऊन आरोग्याचे रक्षण करून सर्वांची उन्नती केली पाहिजे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Indra, O Vayu, power dynamic as electric energy, scholar vibrant as wind, sages dedicated to love and Dharma, come to the yajamana, pure, brilliant, disciplined and dedicated, and drink of the soma distilled and prepared.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes and duties of the teachers and their pupils are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O leaders ! you are like electricity and air. Come to drink this pure water where the rays of the sun are falling and which has been distilled properly.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As electricity and air pervade all and protect the world, so men should always perform good deeds, drink pure water, preserve health and help in the advancement of all.

    Foot Notes

    (शुक्रस्य) शोषकस्योदकस्य शुक्रमित्युदकनाम (NG. 1/12) = Of pure water. (गवाशिरः) गाः किरणान् अश्नुते तस्य | गावः इति रश्मिनाम (NG. 1,5) = On which the rays of the sun are fallen.

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