ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 14
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ती॒व्रो वो॒ मधु॑माँ अ॒यं शु॒नहो॑त्रेषु मत्स॒रः। ए॒तं पि॑बत॒ काम्य॑म्॥
स्वर सहित पद पाठती॒व्रः । वः॒ । मधु॑ऽमान् । अ॒यम् । शु॒नऽहो॑त्रेषु । म॒त्स॒रः । ए॒तम् । पि॒ब॒त॒ । काम्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तीव्रो वो मधुमाँ अयं शुनहोत्रेषु मत्सरः। एतं पिबत काम्यम्॥
स्वर रहित पद पाठतीव्रः। वः। मधुऽमान्। अयम्। शुनऽहोत्रेषु। मत्सरः। एतम्। पिबत। काम्यम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 14
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे विश्वेदेवा यो वोऽयं शुनहोत्रेषु तीव्रो मधुमान् मत्सरोऽस्ति एतं काम्यं यूयं पिबत ॥१४॥
पदार्थः
(तीव्रः) तीक्ष्णः (वः) युष्माकम् (मधुमान्) विज्ञानसम्बन्धी (अयम्) (शुनहोत्रेषु) शुनानां विज्ञानवृद्धानां होत्रेषु दानेषु (मत्सरः) आनन्दः (एतम्) (पिबत) (काम्यम्) कमनीयं रसम् ॥१४॥
भावार्थः
ये विज्ञानवृद्धान् सेवन्ते ते तीव्रबुद्धयस्सन्तो विद्वाँसो जायन्ते ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे सब विद्वानो ! जो (वः) तुम्हारा (अयम्) यह (शुनहोत्रेषु) विद्वान् वृद्धों के दानों में (तीव्रः) तीक्ष्ण (मधुमान्) विज्ञानसम्बन्धी (मत्सरः) आनन्द है (एतम्) इस (काम्यम्) मनोहर रस को तुम (पिबत) पिओ ॥१४॥
भावार्थ
जो विज्ञान वृद्धों की सेवा करते हैं, वे तीव्रबुद्धि हुए विद्वान् होते हैं ॥१४॥
विषय
शुनहोत्र
पदार्थ
१. सब देव सोम का पान करते हैं- वीर्य का अपने में ही रक्षण करते हैं। वस्तुतः इस सोमरक्षण के अनुपात में ही उनमें दिव्यता की उत्पत्ति होती है । हे देवो! (वः) = तुम्हारा (अयम्) = यह सोम (तीव्रः) = बड़ा तीव्र है- तुम्हें तेजस्वी बनानेवाला है- तुम्हारे शत्रुओं के लिए भयंकर है। परन्तु साथ ही यह मधुमान् है- अत्यन्त माधुर्यवाला है - जीवन को मधुर बनाता है। तेजस्विता व मधुमान् मधुरता का इनके द्वारा समन्वय होता है। २. शुन-होत्रेषु - (शुन गतौ) क्रियाशील (हु दाने) व दानशील पुरुषों में यह (मत्सरः) = हर्ष का संचार करनेवाला है। क्रियाशील - पुरुष ही वासनाओं से बचकर सोम का रक्षण कर पाता है। दानशीलता उसे भोगवृत्ति से बचाती है और इस प्रकार यह वीर्य के विनाश से बचा रहता है। एतम्-इस काम्यम्-अत्यन्त कमनीय, सुन्दर व चाहने योग्य सोम को पिबत पीनेवाले बनो। इसे शरीर में ही सुरक्षित करो। रक्षित हुआ हुआ यह तुम्हें 'तेजस्वी, मधुर व प्रसन्न' बनाएगा।
भावार्थ
भावार्थ – क्रियाशील व दानशील पुरुष ही सोम का रक्षण कर पाते हैं। यह सुरक्षित सोम उन्हें 'तेजस्वी, मधुर व आनन्दमय' बनाता है।
विषय
उत्तम पुरुषों, नाना अध्यक्षों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे विद्वान् पुरुषो ! ( वः ) आप लोगों का ( अयं ) यह ( तीव्रः ) तीव्र, अतिवेग से उत्पन्न होने वाला, ( मत्सरः ) हर्ष को उत्पन्न करने वाला आनन्द ( मधुमान् ) ज्ञान विज्ञान युक्त, या अन्न जलादि से युक्त ( शुन-होत्रेषु ) विज्ञान और सुखों के देने वाले विज्ञान वृद्ध और धनसम्पन्न पुरुषों के बीच में हैं। ( एतं ) इस ( काम्यं ) कामना योग्य, उत्तम रस को ( पिबत ) पान करो, प्राप्त करो, भोगो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १, २ वायुः । ३ इन्द्रवायू । ४–६ मित्रावरुणौ । ७–९ अश्विनौ । १०–१२ इन्द्रः । १३–१५ विश्वेदेवाः । १६–१८ सरस्वती । १६–२० द्यावापृथिव्यौ हविर्भाने वा देवता ॥ छन्दः-१, ३, ४, ६, १०, ११, १३ ,१५ ,१९ ,२० ,२१ गायत्री । २,५ ,९ , १२, १४ निचृत् गायत्री । ७ त्रिपाद् गायत्री । ८ विराड् गायत्री । १६ अनुष्टुप् । १७ उष्णिक् । १८ बृहती ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे विज्ञानाने वृद्ध असतील अशा लोकांची जे सेवा करतात ते तीव्र बुद्धियुक्त होऊन विद्वान बनतात. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Intense, honey sweet and exhilarating is the pleasure gifted by saints and scholars in our soma-yajna for the promotion of science. It is for you, divinities of the world. Come and drink of this pleasure to your heart’s content.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The requests made to the learned persons.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O all the learned persons ! taking it as a gift by the experienced wiseman, you drink juice of this great Bliss which is sharp, sweet and desirable and scientifically prepared.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who serve the experienced enlightened and wise persons, they become highly intelligent and learned men.
Translator's Notes
शुनम् is from (टुओ शिव ) गतिवृढ्योः । गतेस्त्रयोऽर्था::- ज्ञान गमनं प्राप्तिश्च। Both the meanings of the verb have been taken here by the commentator. होत्नम् is from हु – दनादनयोः आदाने च । Here the first meaning of दान or donation ( gift ) has been taken. It was not correct on the part of Shri Sayanacharya, Prof. Wilson and Griffith to take the word शुन होत्रेषु used in the mantra as a Proper Noun and interpret it as शुन होत्रेषु गृत्समदेध्वस्मासु (सायणाचार्य:) Among the Shounahotras, the family of which Gritsamada-the Rishi of the hymn was a member (Griffith's foot-note Vol. 1, P. 311 ) मधुमान् is generally translated as sweet. But as the word मधु is derived from मन्– ज्ञाने ( दिवा० ) मनेर्धश्छन्दसि । (उणादि 2, 117 ), Rishi Dayananda Sarasvati had translated it related to the science or scientific.
Foot Notes
(शुनहोत्रेषु) शुनानां विज्ञानवृद्धानां होत्रेषु दानेषु । = Among the donations given by the experienced enlightened wise persons. (मधुमान्) विज्ञानसम्बन्धी। = Scientific.
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