ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 13
विश्वे॑ देवास॒ आ ग॑त शृणु॒ता म॑ इ॒मं हव॑म्। एदं ब॒र्हिर्नि षी॑दत॥
स्वर सहित पद पाठविश्वे॑ । दे॒वा॒सः॒ । आ । ग॒त॒ । शृ॒णु॒त । मे॒ । इ॒मम् । हव॑म् । आ । इ॒दम् । ब॒र्हिः । नि । सी॒द॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वे देवास आ गत शृणुता म इमं हवम्। एदं बर्हिर्नि षीदत॥
स्वर रहित पद पाठविश्वे। देवासः। आ। गत। शृणुत। मे। इमम्। हवम्। आ। इदम्। बर्हिः। नि। सीदत॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 13
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरध्यापकाऽध्येतृविषयमाह।
अन्वयः
हे विश्वे देवासो यूयमा गतेदं बर्हिर्निषीदत म इमं हवमाशृणुत ॥१३॥
पदार्थः
(विश्वे) सर्वे (देवासः) विद्वांसः (आ) (गत) गच्छत (शृणुत) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (मे) मम (इमम्) (हवम्) आदातव्यं शब्दार्थसम्बन्धाऽध्ययनम् (आ) (इदम्) (बर्हिः) उत्तमासनम् (नि) नितराम् (सीदत) उपाध्वम् ॥१३॥
भावार्थः
विद्यार्थिनोऽध्यापकान् प्रत्येवं ब्रूयुर्भवन्तं इहागच्छन्तु सर्वोत्तमासने स्थित्वाऽस्माभिरधीतानां शास्त्राणां मध्ये परीक्षां कुरुत ॥१३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर अध्यापक और अध्येताओं के विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे (विश्वे) सब (देवासः) विद्वानो ! तुम (आ,गत) आओ और (इदम्) इस (बर्हिः) उत्तमासन पर (निषीदत) बैठो (मे) और मेरे (इमम्) इस (हवम्) ग्रहण करने योग्य शब्दार्थसम्बन्ध को (आ,शृणुत) अच्छे प्रकार सुनो ॥१३॥
भावार्थ
विद्यार्थी जन पढ़ानेवालों से यह कहें कि आप यहाँ आइये, सर्वोत्तम आसन पर बैठ के हमने जो शास्त्र पढ़े, उनमें परीक्षा कीजिये ॥१३॥
विषय
विश्वे देवासः
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार हमें निर्भयता प्राप्त होती है। यह अभय ही दैवी- सम्पत्ति का प्रारम्भ है। इससे सब दिव्यगुणों की प्राप्ति होती है। (विश्वे देवासः) = सब देव (आगत) = आइए-सब दिव्यगुण मुझे प्राप्त हों । (मे) = मेरे (इमं हवम्) = इस आह्वान को-पुकार व प्रार्थना को (आ शृणुत) = सुनो । २. (इदं बर्हिः) = मेरे इस वासनाशून्य हृदय में (आनिषीदत) = आकर बैठिए। जिस हृदय में अभय है-वहाँ अन्य दिव्यगुण भी आएँगे ही।
भावार्थ
भावार्थ - हमारा हृदय सब दिव्यगुणों का आधार बने ।
विषय
उत्तम पुरुषों, नाना अध्यक्षों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( विश्वे देवासः ) समस्त विद्वान् पुरुषो ! उत्तम ज्ञान और ऐश्वर्य के देने वाले पूज्य पुरुषो ! आप लोग ( आ गत ) आइये । ( इदम् बर्हिः ) यह उत्तम आसन है इस पर ( आ नि सीदत ) आकर विराजिये । हे अध्यक्ष पुरुषो ! यह ( बर्हिः ) वृद्धिशील प्रजाजनों का राष्ट्र है इस पर अध्यक्ष रूप से रहें ( मे ) मेरे ( इमं हवम् ) इस उत्तम वचन, को ( शृणुत ) श्रवण करें । अध्यक्ष जन प्रजा के आह्वान, पुकार और निवेदन का श्रवण करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १, २ वायुः । ३ इन्द्रवायू । ४–६ मित्रावरुणौ । ७–९ अश्विनौ । १०–१२ इन्द्रः । १३–१५ विश्वेदेवाः । १६–१८ सरस्वती । १६–२० द्यावापृथिव्यौ हविर्भाने वा देवता ॥ छन्दः-१, ३, ४, ६, १०, ११, १३ ,१५ ,१९ ,२० ,२१ गायत्री । २,५ ,९ , १२, १४ निचृत् गायत्री । ७ त्रिपाद् गायत्री । ८ विराड् गायत्री । १६ अनुष्टुप् । १७ उष्णिक् । १८ बृहती ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
विद्यार्थ्यांनी अध्यापकांना हे म्हणावे की तुम्ही इथे येऊन सर्वोत्तम आसनावर बसून आम्ही शिकलेल्या शास्त्राची परीक्षा घ्या ॥ १३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
All brilliant greats of the world, divinities of nature and humanity, sages and scholars, listen to this voice and prayer of mine: come and grace the holy seats of our yajna.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes and duties of the teachers and the pupils.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O all learned persons ! come here. Be seated on this good Asana (comfortable seat) and listen to my studies related to the words and their meanings (science of lexicography, etymology etc. ).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The pupils should request their teachers in the following manners. Please come and take your seat on the best Asana offered by us. Then kindly examine us to test our studies and knowledge.
Foot Notes
(हवम् ) आदातव्यं शब्दार्थसम्बन्धाऽध्ययनम्। = Studying the relation between the words and their meanings.(बर्हिः) उत्तमासनम् । = Good comfortable seat. How wrong and misleading it is on the part of Griffith to translate विश्वेदेवास: as "O all ye Gods" when as a matter of fact, the word देवास: means the enlightened or highly learned persons as clearly stated in the Shatpath Brahmana 3.7.3.10 विद्वान्सो हि देवाः।
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