ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 9
ता न॒ आ वो॑ळ्हमश्विना र॒यिं पि॒शङ्ग॑संदृशम्। धिष्ण्या॑ वरिवो॒विद॑म्॥
स्वर सहित पद पाठता । नः॒ । आ । वो॒ळ्ह॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । र॒यिम् । पि॒शङ्ग॑ऽसन्दृशम् । धिष्ण्या॑ । व॒रि॒वः॒ऽविद॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ता न आ वोळ्हमश्विना रयिं पिशङ्गसंदृशम्। धिष्ण्या वरिवोविदम्॥
स्वर रहित पद पाठता। नः। आ। वोळ्हम्। अश्विना। रयिम्। पिशङ्गऽसन्दृशम्। धिष्ण्या। वरिवःऽविदम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 9
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्या यौ धिष्ण्याऽश्विना नो वरिवोविदं पिशङ्गसंदृशं रयिमावोढं समन्तात्प्रापयतस्ता उपदिशत ॥९॥
पदार्थः
(ता) तौ (नः) अस्मभ्यम् (आ) (वोढम्) वहतः (अश्विना) (रयिम्) (पिशङ्गसंदृशम्) पिशङ्गं शोभनं वर्णं सम्यग् पश्यन्ति येन तम् (धिष्ण्या) यौ धेष्येते शब्द्येते स्तूयेते तौ (वरिवोविदम्) वरिवः सेवनं विन्दन्ति येन तम् ॥९॥
भावार्थः
मनुष्यैर्याभ्यामग्निवायुभ्यां पुष्कलां श्रियं प्राप्नुवन्ति तौ यथावद्देयौ ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (धिष्ण्या) शब्दायमान हों वा स्तुति किये जावें वे (अश्विना) सर्वत्र होनेवाले अग्नि और वायु (नः) हम लोगों के लिये (वरिवोविदम्) जिससे सेवा को प्राप्त होते वा (पिशङ्गसंदृशम्) सुन्दर वर्ण को देखते हैं उस (रयिम्) धन को (आ,वोढम्) अच्छे प्रकार प्राप्त करते हैं (ता) उनका उपदेश करो ॥९॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि जिन अग्नि और वायु से पुष्कल धन को प्राप्त होते हैं, उनको यथावत् जानें ॥९॥
विषय
अभ्युदय व तेजस्विता
पदार्थ
१. (धिष्ण्या) = [धिषणाभव: नि० ८.३] उत्तम बुद्धि में स्थित होनेवाले (अश्विना) = प्राणापानो ! [प्राणसाधना से बुद्धि तीव्र बनती ही है] (ता) = वे आप (नः) = हमारे लिए (रयिम्) = ऐश्वर्य को (आवोढम्) = प्राप्त कराओ। प्राणसाधना से बुद्धि तो तीव्र होती ही है। मनुष्य उस तीव्रबुद्धि द्वारा सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करनेवाला बनता है। २. हमें आप उस ऐश्वर्य को प्राप्त कराओ, जो कि (पिशंगसन्दृशम्) = [पिशांग=reddist-brown] स्वर्ण के समान देदीप्यमान वर्णवाला है तथा (वरिवः विदम्) = सब वरणीय धनों व वस्तुओं को प्राप्त करानेवाला है। प्राणापान से प्राप्त होनेवाला बाह्यधन अभ्युदय के रूप में हमें सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त कराने का साधन बनता है। प्राणापान से प्राप्त होनेवाला आन्तर- धन हमें स्वर्ण के समान देदीप्यमान वर्णवाला तेजस्वी बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ – प्राणसाधना से हमें बाह्यधन प्राप्त करने की भी शक्ति मिले और इससे हम तेजस्वी बनकर स्वर्ण के समान चमकें। प्रभु भी तो 'रुक्मवान' हैं ।
विषय
उत्तम पुरुषों, नाना अध्यक्षों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( अश्विना ) व्यापक गुणों वालो ! या अश्वादि के आरोही पुरुषों के स्वामियो ! उत्तम स्त्री पुरुषो ! हे ( धिष्ण्या ) बुद्धिमानो ! उत्तम आसनों के योग्य ! एवं उत्तम स्तुति के योग्य स्त्री पुरुषो ! ( ता ) वे आप दोनों ( वरिवोविदम् ) उत्तम सेवा और धन को प्राप्त कराने वाले ( पिशङ्ग-संदृशम् ) सुवर्ण के समान दिखलाई देने वाले, ( रयिम् ) ऐश्वर्य को ( नः आ वोढम् ) हमें प्राप्त कराओ । ( २ ) इसी प्रकार वायु अग्नि आदि तत्व भी उत्तम सुन्दर धनादि प्राप्त कराने वाले ( रयिं ) वेग युक्त रथ को ( वोढम् ) वहन करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १, २ वायुः । ३ इन्द्रवायू । ४–६ मित्रावरुणौ । ७–९ अश्विनौ । १०–१२ इन्द्रः । १३–१५ विश्वेदेवाः । १६–१८ सरस्वती । १६–२० द्यावापृथिव्यौ हविर्भाने वा देवता ॥ छन्दः-१, ३, ४, ६, १०, ११, १३ ,१५ ,१९ ,२० ,२१ गायत्री । २,५ ,९ , १२, १४ निचृत् गायत्री । ७ त्रिपाद् गायत्री । ८ विराड् गायत्री । १६ अनुष्टुप् । १७ उष्णिक् । १८ बृहती ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या अग्नी व वायूमुळे पुष्कळ धन प्राप्त होते त्यांना माणसांनी योग्यरीत्या जाणावे. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, pious and resolute lords of generosity, fire and air of life in existence, bring us that wealth of golden hue which creates further wealth and gives us freedom and space for progress and expansion.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of fire and air continues.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! tell us about these Ashvinau (pair of pervasive fire and air) which are praised everywhere on account of their properties. They bring us wealth from all sides which is very useful and is another name of health. It enables us to see all beautiful objects well.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should know well the properties of the fire and air with the help of which much wealth is acquired.
Foot Notes
(धिष्ण्या) यो धेष्येते शन्द्य ते स्तूयेते तौ । = Praiseworthy. (पिशङ्गसंदृशम् ) पिसङ्ग शोभनं वर्ण सम्यक् पश्यन्ति येन तम् = Which enables us to see various beautiful articles. (वारिवोविदम्) वरिवः सेवनं विन्दन्ति येन तम् = Useful, which serves many purposes.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal