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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 7
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिपाद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    गोम॑दू॒ षु ना॑स॒त्याऽश्वा॑वद्यातमश्विना। व॒र्ती रु॑द्रा नृ॒पाय्य॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गोऽम॑त् । ऊँ॒ इति॑ । सु । ना॒स॒त्या॒ । अस्व॑ऽवत् । या॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । व॒र्तिः । रु॒द्रा॒ । नृ॒ऽपाय्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गोमदू षु नासत्याऽश्वावद्यातमश्विना। वर्ती रुद्रा नृपाय्यम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गोऽमत्। ऊँ इति। सु। नासत्या। अश्वऽवत्। यातम्। अश्विना। वर्तिः। रुद्रा। नृऽपाय्यम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 7
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथाग्निवायुगुणानाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यथा नासत्या रुद्राश्विना अश्वावद्गोमदू नृपाय्यं वर्त्तिः सुयातं प्राप्नुतस्तथा यूयमेतौ प्राप्नुत ॥७॥

    पदार्थः

    (गोमत्) बह्व्यो गावो विद्यते यस्मिँस्तत् (उ) वितर्के (सु) शोभने (नासत्या) असत्यरहितौ (अश्वावत्) अश्वेन तुल्यौ (यातम्) प्राप्नुतः (अश्विना) व्यापनशीलौ (वर्त्तिः) मार्गम् (रुद्रा) दुष्टानां रोदयितारौ (नृपाय्यम्) नृणां पाय्यं मानं नृपाय्यम् ॥७॥

    भावार्थः

    मनुष्या यदि वाय्वग्नियानेन यत्र-तत्र गच्छेयुस्तर्हि परिमितं सुखमाप्नुयुः ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब अग्नि और वायु के गुणों को कहते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (नासत्या) असत्यरहित (रुद्रा) दुष्ट के रुलानेवाले (अश्विना) व्यापनशील अध्यापकोपदेशक (अश्वावत्) घोड़े के तुल्य (उ) वा (गोमत्) बहुत गायें जिसमें विद्यमान उस (नृपाय्यम्) मनुष्यों के माननेवाले (वर्त्तिः) मार्ग को (सुयातम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं, वैसे तुम इनको प्राप्त होओ ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्य यदि वायु और अग्नि के यान से यहाँ-वहाँ जावें, तो परिमित सुख पावें ॥७॥

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    विषय

    गोमत्+अश्वावत्

    पदार्थ

    १. हे (नासत्या) = असत्य से रहित-सब प्रकार के असत्य को हमारे से दूर करनेवाले अथवा नासाछिन्द्रों में चलनेवाले- (अश्विना) = प्राणापानो! (रुद्रा) = [रुत्+द्रावयतः] आप रोगों को दूर करनेवाले हो । प्राणायाम से सब दोषों का दहन होकर नीरोगता प्राप्त होती है। आप (उ) = निश्चय से (सु) = अच्छी प्रकार (वर्तिः) = [abode residence] शरीरगृह को (यातम्) = प्राप्त कराओ। २. उस शरीरगृह को जो कि (क) गोमत् = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाला है (गाव: - ज्ञानेन्द्रियां) (ख) अश्वावत्-उत्तम कर्मेन्द्रियोंवाला है, तथा (ग) नृपाय्यम्- उन्नतिपथ पर चलनेवालों से रक्षणीय है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना होने पर शरीर उत्तम ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियोंवाला होता है— इसके द्वारा-हम उन्नतिपथ पर आगे बढ़ते हैं ।

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    विषय

    उत्तम पुरुषों, नाना अध्यक्षों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( अश्विना ) व्यापन गुण से युक्त अग्नि और वायु दोनों ( नासत्यौ ) कभी असत्य नहीं, अपने २ गुणों से सदा सत्य प्रत्यक्ष परिणाम प्रकट करते हैं वे दोनों ( रुद्रा ) शब्द करने वाले, होकर ( नृपाय्यं वर्तिः ) मनुष्यों और प्राणों के पालन करने योग्य मार्ग पर गमन करते हैं। उसी प्रकार हे ( अश्विना ) एक दूसरे के हृदय में व्यापने वाले ( नासत्यौ ) कभी असत्याचरण न करने वाले, स्त्री पुरुषो ! आप दोनों ( रुद्रा ) दुष्टों को रुलाने और मर्यादाओं को पालने वाले, उत्तम वचन बोलने वाले होकर ( गोमत् ) बहुतसी गौवों, किरणों, भूमियों और उत्तम इन्द्रियों से युक्त ( अश्वावत् ) अश्वों से युक्त ( नृपाय्यं ) मनुष्यों के मान्य, और उनके पालन करने योग्य ( वर्तिः ) मार्ग पर ( यातम् ) जाओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ १, २ वायुः । ३ इन्द्रवायू । ४–६ मित्रावरुणौ । ७–९ अश्विनौ । १०–१२ इन्द्रः । १३–१५ विश्वेदेवाः । १६–१८ सरस्वती । १६–२० द्यावापृथिव्यौ हविर्भाने वा देवता ॥ छन्दः-१, ३, ४, ६, १०, ११, १३ ,१५ ,१९ ,२० ,२१ गायत्री । २,५ ,९ , १२, १४ निचृत् गायत्री । ७ त्रिपाद् गायत्री । ८ विराड् गायत्री । १६ अनुष्टुप् । १७ उष्णिक् । १८ बृहती ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसे जर वायू व अग्नीयुक्त यानाने जेथे जेथे जातील तेथे तेथे खूप सुख प्राप्त करतील. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ashvins, complementarities of nature and humanity, spirits of love and justice, dedicated to truth and Dharma, rich and prosperous with cows and horses, that is, plenty of wealth and enlightenment and speed of progress, you are Rudras, wielding the sceptre of law and power and the rod of punishment, come to bless all by simple and straight paths of naturalness which are protective and promotive for all people.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the fire and air are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! as pervasive fire and air which are devoid of untruthful character and cause wicked people to weep, they go to the path where there are many horses and cows. That path is protected by good men. You should also do the same way.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If men go to distant places with the vehicles or conveyances made with the proper combination of fire water and air etc., they can enjoy limited happiness.

    Foot Notes

    (वर्त्तिः) मार्गम् । वर्तते गतिकर्मा = (NG. 2, 14) = Path. So it is used for the path on which men go-Translator. (रुद्रा) दुष्टानां रोदयितारौ । = Causing the wicked to weep. (अश्विना) व्यापनशीलौ। = Pervading. Here it is used for the fire and air.

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