ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 17/ मन्त्र 14
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
अ॒यं च॒क्रमि॑षण॒त्सूर्य॑स्य॒ न्येत॑शं रीरमत्ससृमा॒णम्। आ कृ॒ष्ण ईं॑ जुहुरा॒णो जि॑घर्ति त्व॒चो बु॒घ्ने रज॑सो अ॒स्य योनौ॑ ॥१४॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । च॒क्रम् । इ॒ष॒ण॒त् । सूर्य॑स्य । नि । एत॑शम् । री॒र॒म॒त् । स॒सृ॒मा॒णम् । आ । कृ॒ष्णः । ई॒म् । जु॒हु॒रा॒णः । जि॒घ॒र्ति॒ । त्व॒चः । बु॒ध्ने । रज॑सः । अ॒स्य । योनौ॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं चक्रमिषणत्सूर्यस्य न्येतशं रीरमत्ससृमाणम्। आ कृष्ण ईं जुहुराणो जिघर्ति त्वचो बुघ्ने रजसो अस्य योनौ ॥१४॥
स्वर रहित पद पाठअयम्। चक्रम्। इषणत्। सूर्यस्य। नि। एतशम्। रीरमत्। ससृमाणम्। आ। कृष्णः। ईम्। जुहुराणः। जिघर्ति। त्वचः। बुध्ने। रजसः। अस्य। योनौ ॥१४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 17; मन्त्र » 14
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राज्ञा वेगवन्ति यन्त्राणि निर्माय दुष्टसंशोधनं कार्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! भवान् यथाऽयं सूर्यस्य मण्डलमिव चक्रमिषणत् ससृमाणमेतशं नि रीरमत् कृष्णो जुहुराण इवेमाजिघर्त्ति त्वचो रजसोऽस्य बुध्ने योनौ रमत इति विज्ञायेमं सत्कृत्य दुष्टं ताडय ॥१४॥
पदार्थः
(अयम्) (चक्रम्) (इषणत्) इष्णाति प्राप्नोति (सूर्यस्य) (नि) (एतशम्) अश्वम् (रीरमत्) रमयति (ससृमाणम्) भृशं गच्छन्तम् (आ) (कृष्णः) कर्षकः (ईम्) जलम् (जुहुराणः) कुटिलगतिः (जिघर्त्ति) क्षरति (त्वचः) वाचः (बुध्ने) अन्तरिक्षे (रजसः) लोकसमूहस्य (अस्य) (योनौ) गृहे ॥१४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः कलाकौशलेन चक्रयन्त्राणि निर्माय वेगवन्ति यानान्यासाद्य रमन्ते ते ऐश्वर्यं प्राप्य कुटिलतां विहाय सुखयन्ति ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजा को वेगवान् यन्त्रों को बनाय दुष्टसंशोधन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! आप जैसे (अयम्) यह (सूर्यस्य) सूर्य के मण्डल के सदृश (चक्रम्) चक्र को (इषणत्) प्राप्त होता है (ससृमाणम्) निरन्तर प्राप्त होते हुए (एतशम्) घोड़े को (नि, रीरमत्) रमाता है (कृष्णः) खीचनेवाला (जुहुराणः) कुटिल गमनवाले के सदृश (ईम्) जल को (आ, जिघर्ति) नष्ट करता है (त्वचः) वाणी के संबन्ध में (रजसः) लोकसमूह और (अस्य) इसके (बुध्ने) अन्तरिक्ष और (योनौ) गृह में रमता है, ऐसा जानकर इसका सत्कार करके दुष्ट पुरुष को ताड़न दीजिये ॥१४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य कलाकौशल से चक्रयन्त्रों का निर्म्माण करके वेगयुक्त वाहनों को प्राप्त होकर रमण करते हैं, वे ऐश्वर्य को प्राप्त होकर और कुटिलता को त्याग करके सुख को प्राप्त होते हैं ॥१४॥
विषय
सूर्य-चक्र अवर्तक प्रभु
पदार्थ
[१] (अयम्) = ये प्रभु (सूर्यस्य चक्रम्) = सूर्य के चक्र को (इषणत्) = प्रेरित करते हैं, अर्थात् सूर्य को गति देनेवाले ये प्रभु ही हैं। (ससृमाणम्) = अत्यन्त गति करते हुए (एतशम्) = इस अश्व को [सूर्य के अश्व को] (निरीरमत्) = ये प्रभु ही नितरां रमण कराते हैं। सूर्य अपनी सात किरणों के कारण 'सप्ताश्व' कहलाता है। उन अश्वों को इस ब्रह्माण्ड में प्रभु ही विविध क्रियाएँ करने में समर्थ करते हैं। [२] यह (कृष्ण:) = आकर्षण से आकृष्ट हुआ-हुआ, (जुहुराण:) = [The moon सा०] चन्द्र (ईम्) = निश्चय से (आजिघर्ति) = [आ ईषदर्थे] कुछ दीप्तिवाला होता है। (त्वचः) = [त्वच्-स्पर्श, वायु का यह गुण है] स्पर्श गुणवाले वायु के (बुध्ने) = आधारभूत और (अस्य रजस:) = इस उदक के (योनौ) = उत्पत्ति- स्थान इस अन्तरिक्ष में वे प्रभु सूर्य-चक्र को चलाते हैं और इन गति करते हुए सूर्याश्वों को नितरां रमण कराते हैं। वस्तुत: इन सूर्यकिरणों के कारण ही वायु का प्रवाह व जल का मेघरूप से वर्षण सम्भव होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ही सूर्य-चक्र को चलाते हैं। इस सूर्य से ही चन्द्रमा को प्रकाश मिलता है । सूर्यकिरणें ही वायुप्रवाह व जलवर्षण का कारण बनती हैं।
विषय
राजचक्रवत् सैन्यचक्र का चालन, राष्ट्र की वृद्धि, और उसमें अभय का स्थापन ।
भावार्थ
(अयं) यह ऐश्वर्यवान् पुरुष (सूर्यस्य) सूर्य के समान तेजस्वी पुरुष के (चक्रम्) राज्य-चक्र वा सैन्य-चक्र को (इषणत्) चलावे । वह (ससृमाणं) वेग से जाने वाले (एतशं) अश्व सैन्य को (रीरमत) युद्धादि क्रीड़ा का अभ्यास करावे । (अस्य रजसः) इस लोक के (त्वचः) त्वचा के समान संवरण करने वाले और वाणी या तेज के समान प्रकाशित करने वाले सामर्थ्य के (बुध्ने) आश्रय रूप (योनौ) स्थान वा पद में स्थित होकर अन्तरिक्ष में स्थित (कृष्णः) श्याम वर्ण का मेघ वा सूर्य रश्मियों द्वारा जलाकर्षक जिस प्रकार (जुहुराणः) वक्रगति से चलता हुआ (ई जिघर्ति) जल को सर्वत्र सेचन करता है उसी प्रकार राजा (कृष्णः) सबका चित्त आकर्षण करता हुआ (जुहुराणः) वक्रगति से प्रत्यक्ष रूप से चेष्टा करता हुआ (ईं जिघर्ति) इसको सर्वत्र ऐश्वर्य से सेचन करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ पंक्तिः । ७,९ भुरिक पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः। १५ याजुषी पंक्तिः । निचृत्पंक्तिः । २, १२, १३, १७, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, ८, १०, ११ त्रिष्टुप् । ४, २० , । विराट् त्रिष्टुप् ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे कला-कौशल्याने चक्रयंत्र निर्माण करून वेगवान याने प्राप्त करून त्यात रमतात तो ऐश्वर्यवान बनून कुटिलतेचा त्याग करून सुख प्राप्त करतात. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
This Indra, lord ruler of cosmic energy, moves the wheel of the sun in orbit and then stops the continuance of the day’s activity for rest. By virtue of the same energy the dark cloud in its tortuous motions holds and releases the waters to shower and flow. And the same Indra holds the great defining dark concentrations of energy in its cosmic womb at the deepest.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
A king should get manufactured quick-moving machines and punish the wicked.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! this industrious person manufactures wheel of a machine as God makes this solar world. The other man drives the speedy horses. The farmer going some times on the straight and sometimes crooked (rough) path makes the water flow or sprinkle (for the fields etc.). Some scholar uses his speech (power of discussion) and takes delight in the description of the firmament, and other worlds and the home (this earth). Honor all such tireless astronomists and punish the wicked.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The persons who manufacture various artistic and complicated machines and enjoy by quick transport getting quick movement, become prosperous. Having given up crookedness, they make others happy?
Foot Notes
(एतशम्) अश्वम् । एतश इति अश्वनाम (NG 1, 14 ) = Horse. (कृष्णः ) कर्षकः । = Farmer, Driver. (बुघ्ने) अन्तरिक्षे । बुघ्नम् अन्तरिक्षं बद्धा अस्मिन धृता आप इति वा (NKT 10, 4, 44) In the firmament. (त्वचः) वाचः । = Of the speech. (त्वचः) वाचः। = Makes flow.
हिंगलिश (1)
Word Meaning
सौरमन्डल से प्रेरणा ले कर निरंतर प्राप्त होने वाली ऊर्जा से गतिमान कलाकौशल से चक्रयंत्रों के निर्माण, कुटिल मार्ग से चलने वालों द्वारा जल का नष्ट न करना. लोकसमूह की वाणी को सम्मान देना राज्य में ऐश्वर्य और और सुख प्राप्त कराते हैं
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