ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 17/ मन्त्र 9
अ॒यं वृत॑श्चातयते समी॒चीर्य आ॒जिषु॑ म॒घवा॑ शृ॒ण्व एकः॑। अ॒यं वाजं॑ भरति॒ यं स॒नोत्य॒स्य प्रि॒यासः॑ स॒ख्ये स्या॑म ॥९॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । वृतः॑ । चा॒त॒य॒ते॒ । स॒म्ऽई॒चीः । यः । आ॒जिषु॑ । म॒घऽवा॑ । शृ॒ण्वे । एकः॑ । अ॒यम् । वाज॑म् । भ॒र॒ति॒ । यम् । स॒नोति॑ । अ॒स्य । प्रि॒यासः॑ । स॒ख्ये । स्या॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं वृतश्चातयते समीचीर्य आजिषु मघवा शृण्व एकः। अयं वाजं भरति यं सनोत्यस्य प्रियासः सख्ये स्याम ॥९॥
स्वर रहित पद पाठअयम्। वृतः। चातयते। सम्ऽईचीः। यः। आजिषु। मघऽवा। शृण्वे। एकः। अयम्। वाजम्। भरति। यम्। सनोति। अस्य। प्रियासः। सख्ये। स्याम ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 17; मन्त्र » 9
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राज्ञा कीदृशा अमात्यादयो भृत्या संरक्षणीया इत्याह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! योऽयं वृतः सन्नबुद्धाञ्चातयते यो मघवैक आजिषु समीचीर्भरति। अयं वाजं भरति यमाप्तः सनोति यमहं शृण्वेऽस्य सख्ये वयं प्रियासः स्याम ॥९॥
पदार्थः
(अयम्) राजा (वृतः) (चातयते) विज्ञापयति। चततीति गतिकर्म्मा । (निघं०२.१४)। (समीचीः) याः सम्यगञ्चन्ति शिक्षाः प्राप्नुवन्ति ताः सेनाः (यः) (आजिषु) सङ्ग्रामेषु (मघवा) बहुधनैश्वर्यः (शृण्वे) (एकः) असहायः (अयम्) (वाजम्) विज्ञानम् (भरति) (यम्) (सनोति) सम्पन्नं करोति (अस्य) (प्रियासः) (सख्ये) मित्रस्य कर्मणि (स्याम) भवेम ॥९॥
भावार्थः
हे राजन् ! यः सेनाः शिक्षयति विशेषतो युद्धसमय उचितवक्तृत्वेन योद्धॄनुत्साहयति ये सम्मुखे भवद्दोषान् कथयन्ति तेषां शासने स्थित्वा तेष्वेव मैत्रीं भावयित्वा सर्वाणि कार्याणि साध्नुहि ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजा को अमात्य आदि भृत्य कैसे रखने चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! (यः) जो (अयम्) यह राजा (वृतः) स्वीकार किया हुआ बोधरहितों को (चातयते) विज्ञान करता है और जो (मघवा) बहुत धनरूप ऐश्वर्य्य से युक्त (एकः) अकेला अर्थात् सहायरहित (आजिषु) संग्रामों में (समीचीः) शिक्षाओं को प्राप्त होनेवाली सेनाओं का (भरति) पोषण करता है (अयम्) और यह (वाजम्) विज्ञान को पुष्ट करता है (यम्) जिसको यथार्थवक्ता पुरुष प्राप्त कर (सनोति) संपन्न करता है, जिसको मैं (शृण्वे) सुनता हूँ (अस्य) इसके (सख्ये) मित्रकर्म्म में हम लोग (प्रियासः) प्रिय (स्याम) होवें ॥९॥
भावार्थ
हे राजन् ! जो सेनाओं को शिक्षा दिलाता है, विशेष करके युद्ध के समय में उचित बात कहने से योद्धाजनों का उत्साह बढ़ाता है और जो जन सम्मुख आपके दोषों को कहते हैं, उनकी शिक्षा में स्थित होकर, उन्हीं जनों में मित्रता करके सम्पूर्ण कार्य्यों को सिद्ध करो ॥९॥
विषय
संग्राम विजय
पदार्थ
[१] (अयम्) = ये प्रभु (वृतः) = [आवृण्वन्ति] आच्छादित करनेवाली ढक-सा लेनेवाली अपार (समीची:) = संगत हुई हुई शत्रु सेनाओं को (चातयते) = विनष्ट करते हैं। ये (मघवा) = ऐश्वर्यशाली प्रभु वे हैं, (यः) = जो कि (आजिषु) = संग्रामों में (एकः शृण्वे) = अद्वितीय सुने जाते हैं। प्रभुस्मरण होने पर किसी भी शत्रु का बचे रहना सम्भव नहीं। [२] (यम्) = जिस को प्रभु (सनोति) = देते हैं (अयम्) = वह व्यक्ति (वाजं भरति) = शक्ति को अपने में भरनेवाला होता है। इसलिए हम भी (अस्य सख्ये) = इसकी मित्रता में (प्रियास: स्याम) = प्रिय हों । प्रभु के मित्र होंगे तो अवश्य ही शक्ति प्राप्त करनेवाले होंगे। शक्ति प्राप्त करके शत्रुओं का संहार करनेवाले होंगे।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु के हम मित्र बनें। प्रभु हमें शक्ति देंगे और हमारे शत्रुओं का संहार कर देंगे।
विषय
प्रजा के पालन पोषण की प्रार्थना ।
भावार्थ
(अयं) यह (वृतः) मुख्य पद पर वरण किया जाकर (समीचीः) एक साथ आक्रमण करने वाली शत्रु सेनाओं को भी (एकः) अकेला ही (चातयते) विनाश करे । और यह विद्वान् आचार्य, (समीचीः) समान भाव से प्राप्त होने वाली (वृतः) गुरु को घेर बैठने वाली शिष्य पंक्तियों को (चातयते) शिक्षित करे । (यः) जो वीर पुरुष (मघवा) ऐश्वर्यवान् होकर (एकः) अकेला, अद्वितीय पराक्रमी (आजिषु) संग्रामों मैं (शृण्वे) सुना जाता है । (अयं वाजं भरति) वह ज्ञान, धनैश्वर्य को धारण करता और अन्यों तक पहुंचाता है। (यं सनोति) जिसको सब कोई प्रजाजन कर, दान उपहार रूप में प्रदान करता है, (अस्य सख्ये) उसके मैत्रीभाव में हम (प्रियासः) प्रिय होकर (स्याम) रहें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ पंक्तिः । ७,९ भुरिक पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः। १५ याजुषी पंक्तिः । निचृत्पंक्तिः । २, १२, १३, १७, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, ८, १०, ११ त्रिष्टुप् । ४, २० , । विराट् त्रिष्टुप् ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा ! जो सेनेला प्रशिक्षण देतो व विशेष करून युद्धाच्या वेळी योग्य बोलून योद्ध्यांचा उत्साह वाढवितो व जे लोक समक्ष तुमचे दोष सांगतात. त्यांच्यापासून शिक्षण घेऊन त्याच लोकांबरोबर मैत्री करून संपूर्ण कार्य सिद्ध करा. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
This ruler, elected, accepted and exalted, inspires and enlightens, he stirs and moves and leads trained armies to the battles of life, is excellent and magnanimous, listens to people and wins fame, and decides and acts with unique self-confidence. He creates and bears food and energy and leads forward in progress whoever approaches and cooperates with him. Let us all be friends with him and win his love and confidence.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The qualities or essentials of ministers and other State officials are underlined.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! may we have friendship of a king who when elected enlightens the ignorant, possesses abundant wealth and inspires the trained army with zeal single handed. He imparts the true knowledge to men. I learn about his reputation of being a person, and is endowed with wisdom.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king ! follow the advice and instructions of those who train armies and particularly lead them during the battles, inspires the warriors with zeal by proper oratory, and points out your drawbacks plainly. Regard such fearless people as your friends and join them in all works.
Foot Notes
(चातयते) विज्ञापयति चततीति गतिकर्म्मा (NG 2,14 ) = Inspires. Takes forward. (समीची:) या: सम्यगञ्चन्ति शिक्षा प्राप्तुवन्ति ताः सेना: = Well-trained armies. (आजिषु) सङ्ग्रामेषु । सम् + अंचु - गति पूजनयोः गतेस्तिवष्वर्थेषु ज्ञान-प्राप्त्यर्थं ग्रहणम् । आजेति संग्रामनाम (NG 2, 17) = In the battle.
हिंगलिश (1)
Word Meaning
हे राजन् जो सेनाओं को प्रशिक्षण दिलाता है , विशेष रूप से युद्ध के समय योद्धाजनों का उत्साह बढाता है, और जो जनता के सम्मुख आप के दोषों को व्यक्त करता है उन से शिक्षा ले कर उन की मित्रता प्राप्त करके सम्पूर्ण कार्यों को सिद्ध करो.
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