ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 17/ मन्त्र 15
असि॑क्न्यां॒ यज॑मानो॒ न होता॑ ॥१५॥
स्वर सहित पद पाठअसि॑क्न्याम् । यज॑मानः । न । होता॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
असिक्न्यां यजमानो न होता ॥१५॥
स्वर रहित पद पाठअसिक्न्याम्। यजमानः। न। होता ॥१५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 17; मन्त्र » 15
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजदण्डप्रकर्षतामाह ॥
अन्वयः
यो राजा यजमानो नाऽसिक्न्यामभयस्य होता स्यात् स एव सततं मोदेत ॥१५॥
पदार्थः
(असिक्न्याम्) रात्रौ। असिक्नीति रात्रिनामसु पठितम्। (निघं०१.७) (यजमानः) सङ्गन्ता (न) इव (होता) सुखस्य दाता ॥१५॥
भावार्थः
यस्य राज्ञः प्रजाजनेषु प्राणिषु सुप्तेषु दण्डो जागर्त्ति सोऽभयदः कुतश्चिदपि भयं नाऽऽप्नोति ॥१५॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजदण्ड की प्रकर्षता को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जो राजा (यजमानः) मेल करनेवाले के (न) सदृश (असिक्न्याम्) रात्रि में भयरहित (होता) सुख को देनेवाला होवे, वही निरन्तर आनन्द करे ॥१५॥
भावार्थ
जिस राजा के प्रजाजनों में प्राणियों वा शयन किये हुओं में दण्ड जागता है, वह अभय का देनेवाला पुरुष किसी से भी भय को नहीं प्राप्त होता है ॥१५॥
विषय
दिन-रात चलनेवाला यज्ञ
पदार्थ
[१] (असिक्न्याम्) = रात्रि में भी (यजमानः न) = यज्ञशील की तरह (होता) = वे प्रभु आहुति देनेवाले हैं। उस प्रभु का यह सृष्टियज्ञ दिन-रात चलता है। 'दिन में प्रभु कार्य करते हों और रात्रि में सो जाते हों' ऐसी बात नहीं है। प्रभु का यह सृष्टियज्ञ दिन-रात चलता है। दिन में प्रभु सूर्य द्वारा ब्रह्माण्ड को प्रकाश प्राप्त कराते हैं, तो रात्रि में चन्द्रमा की ज्योत्स्ना को करनेवाले हैं। [२] प्रभु का यह सृष्टियज्ञ दिन-रात चलता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु इस सृष्टियज्ञ के महान् होता हैं।
विषय
राजचक्रवत् सैन्यचक्र का चालन, राष्ट्र की वृद्धि, और उसमें अभय का स्थापन ।
भावार्थ
जिस प्रकार (यजमानः न) यजमान दानशील वा ईश्वराराधन करने वाला पुरुष (असिक्नयां) कृष्ण रात्रि में भी (होता) परमेश्वर का आह्वान करता है, उसका भजन करता है । उसी प्रकार राजा भी (यजमानः) प्रजाजन को अभय, ऐश्वर्यादि प्रदान करता हुआ (असिक्नयां) रात्रिकाल में भी (होता) राष्ट्र को सुख देता और दुष्टों को दण्ड देता है । इसी प्रकार दानशील राजा (असिक्नयाम्) न सिंचने वाली भूमि में भी मेघ के तुल्य (होता) दानशील, जलादि के सेचन का प्रबन्धक हो । इति त्रयोविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ पंक्तिः । ७,९ भुरिक पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः। १५ याजुषी पंक्तिः । निचृत्पंक्तिः । २, १२, १३, १७, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, ८, १०, ११ त्रिष्टुप् । ४, २० , । विराट् त्रिष्टुप् ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या राजाच्या प्रजेमध्ये, प्राण्यामध्ये, शयन केलेल्यामध्ये दंड (राजा) जागृत असतो तो अभय देणारा पुरुष कुणालाही घाबरत नाही. ॥ १५ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
In the great dark night of the universe, Indra is the yajamana of creation, the clarion call as well as the performer, preserving the fire eternal.
हिंगलिश (1)
Word Meaning
जिस राज्य में शयन करते हुवे छुप कर पाप कर्म करने वाले भी दण्ड से अभय नहीं होते वहां प्रजा अभय से रहती है.
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