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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 17/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    य एक॒ इच्च्या॒वय॑ति॒ प्र भूमा॒ राजा॑ कृष्टी॒नां पु॑रुहू॒त इन्द्रः॑। स॒त्यमे॑न॒मनु॒ विश्वे॑ मदन्ति रा॒तिं दे॒वस्य॑ गृण॒तो म॒घोनः॑ ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । एकः॑ । इत् । च्या॒वय॑ति । प्र । भूमा॑ । राजा॑ । कृ॒ष्टी॒नाम् । पु॒रु॒ऽहू॒तः । इन्द्रः॑ । स॒त्यम् । ए॒न॒म् । अनु॑ । विश्वे॑ । म॒द॒न्ति॒ । रा॒तिम् । दे॒वस्य॑ । गृण॒तः । म॒घोनः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य एक इच्च्यावयति प्र भूमा राजा कृष्टीनां पुरुहूत इन्द्रः। सत्यमेनमनु विश्वे मदन्ति रातिं देवस्य गृणतो मघोनः ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। एकः। इत्। च्यवयति। प्र। भूम। राजा। कृष्टीनाम्। पुरुऽहूतः। इन्द्रः। सत्यम्। एनम्। अनु। विश्वे। मदन्ति। रातिम्। देवस्य। गृणतः। मघोनः ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 17; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजविषयमाह ॥

    अन्वयः

    यः पुरुहूत इन्द्रः कृष्टीनां राजैक इच्छत्रून् प्र च्यावयति तं मघोनो गृणतो देवस्य मध्ये वर्त्तमानं सत्यं रातिं विश्वे विद्वांसः सभासदोऽनुमदन्ति तमेनं राजानं कृत्वा वयं सुखिनो भूम ॥५॥

    पदार्थः

    (यः) (एकः) (इत्) एव (च्यावयति) (प्र) (भूम) भवेम। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (राजा) शुभगुणैः प्रकाशमानः (कृष्टीनाम्) कृषीवलादिप्रजास्थमनुष्याणाम् (पुरुहूतः) बहुभिराहूतः प्रशंसितः (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् (सत्यम्) सत्सु साधुम् (एनम्) (अनु) (विश्वे) सर्वे (मदन्ति) (रातिम्) दातारम् (देवस्य) दिव्यगुणसम्पन्नस्य (गृणतः) सकलविद्याः स्तुवतः (मघोनः) बहुधनयुक्तस्य सभ्यसमूहस्य मध्ये ॥५॥

    भावार्थः

    स एव राजा भवितुमर्हति य एकोऽपि बहूञ्छत्रून् विजेतुं शक्नोति स एव विजयी भवति यः सत्पुरुषाणां सङ्गमुपदेशं प्राप्य धर्म्यं न्यायं सततं करोति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (यः) जो (पुरुहूतः) बहुतों से बुलाया और प्रशंसा किया गया (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्यवान् (कृष्टीनाम्) क्षेत्र बोनेवाले आदि प्रजास्थ मनुष्यों का (राजा) उत्तम गुणों से प्रकाशमान राजा (एकः) एक (इत्) ही शत्रुओं को (प्र, च्यावयति) कम्पाता है उसको (मघोनः) बहुत धन से युक्त श्रेष्ठ पुरुषों के समूह के मध्य में (गृणतः) सम्पूर्ण विद्या की स्तुति करते हुए (देवस्य) दिव्यगुणी विद्वानों के समूह में वर्त्तमान (सत्यम्) श्रेष्ठों में साधु (रातिम्) दाता जन को (विश्वे) सम्पूर्ण विद्वान् सभासद् (अनु, मदन्ति) अनुमति देते हैं उस (एनम्) इसको राजा करके हम लोग सुखी (भूम) होवें ॥५॥

    भावार्थ

    वही राजा हो सकता है, जो एक भी बहुत शत्रुओं को जीत सकता है और वही विजयी होता है, जो श्रेष्ठ पुरुषों के सङ्ग और उपदेश को प्राप्त होकर धर्मयुक्त न्याय निरन्तर करता है ॥५॥

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    विषय

    'देव, गृणन् व मघवा '

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो (एकः इत्) = अकेला ही (भूम) = इस सम्पूर्ण उत्पन्न ब्रह्माण्ड को (प्रच्यावयति) = प्रलयकाल में विनष्ट करता है, जो (कृष्टीनाम्) = सब श्रमशील मनुष्यों का राजा दीप्त करनेवाला है, (पुरुहूतः) = जिसकी पुकार पालन व पूरण करनेवाली है। (इन्द्रः) = जो परमैश्वर्यशाली है। (एनं सत्यं अनु) = इस सत्यस्वरूप प्रभु की अनुकूलता में (विश्वे) = सब (मदन्ति) = हर्ष का अनुभव करते हैं । [२] उस प्रभु की अनुकूलता में सब हर्ष का अनुभव करते हैं, जो कि (देवस्य) = दिव्यवृत्तिवाले (गृणत:) = स्तुति करते हुए (मघोनः) = [मघ-मख= यज्ञशील ]पुरुष के (रातिम्) = बन्धु हैं [अ-राति-शत्रु,राति = मित्र]- इसके लिए सब कुछ प्राप्त करानेवाले हैं। प्रभु भी 'देव, गृणन् व मघवा' हैं- दिव्यगुणों के पुञ्ज, ज्ञानोपदेश करनेवाले व सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के स्वामी हैं। जो भी उपासक इस प्रभु जैसा बनने का प्रयत्न करता है, वही आनन्दित होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की अनुकूलता में ही आनन्द है। उतना ही हमारा जीवन आनन्दमय होता है, जितना कि हम दिव्यगुणोंवाले बनते हैं [देव], ज्ञानी स्तोता बनते हैं [गृणन्] और यज्ञशील होते हैं [मघवा] ।

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    विषय

    प्रजा के वास्तविक अधिकार निरूपण ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार (इन्द्रः) विद्युत् वा सूर्य (एकः इत् भूम प्रच्यावयति) अकेला ही बहुत जल को नीचे गिरा देता है और (कृष्टीनां राजा) जलादि खींचने वाले किरणों और लोकों को आकर्षण करने वाले बालों का (राजा) स्वामी है उसी प्रकार (यः) जो (एक इत्) अकेला का ही (भूम) बहुत से शत्रु दल को (प्र च्यावयति) गिराता, संग्राम-भूमि से भगा देता है और (भूम प्र च्यावयति) बहुत से राज्यों को सञ्चालित करता है, और जो (कृष्टीनां) कर्षणशील कृषक प्रजाओं और शत्रुओं का कर्षण, पीड़न करने वाले सैन्यों के बीच (राजा) उनका स्वामी (पुरुहूत) बहुतों से प्रशंसित है वही (इन्द्रः) सचमुच ‘इन्द्र’ अर्थात अन्न का देने वाला और शत्रुओं को विदारण करने में समर्थ सेनापति है। (विश्वे) समस्त लोक (सत्यम्) सत्याचरणयुक्त, न्यायशील (एनं) इसको पाकर ही (अनु मदन्ति) उसके साथ हर्षित होते हैं और (मघोनः), ऐश्वर्यवान् (गुणतः) उत्तम उपदेष्टा (देवस्य) दानशील पुरुष के ही (रातिम्) दान को प्राप्त करके ही सब प्रसन्न होते हैं । इत्येकविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ पंक्तिः । ७,९ भुरिक पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः। १५ याजुषी पंक्तिः । निचृत्पंक्तिः । २, १२, १३, १७, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, ८, १०, ११ त्रिष्टुप् । ४, २० , । विराट् त्रिष्टुप् ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो एकटाच पुष्कळ शत्रूंना जिंकू शकतो तोच राजा होऊ शकतो. जो श्रेष्ठ पुरुषांच्या संगतीने व उपदेशाने सतत धर्मयुक्त न्याय करतो, तोच विजयी होतो. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The ruler of the people, Indra, invoked and celebrated by many, all by himself, alone, shakes and stirs many a great one, and surely all his admirers, in response to the munificence and generosity of the brilliant lord of magnificence and majesty, approve and support him, celebrate and rejoice with him.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a good king are again stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    May we be happy by having a king, who is invited and admired by many, who shines with his noble virtues among the peasants and other men, and who even single handed casts down many enemies? All people should support this truly liberal donor and best among the group. They are endowed with divine virtues and wealth and admire all sciences.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    He alone is fit to be a ruler show single handed is capable to conquer many enemies. Single-handed, he alone should be capable to achieve victory. He should have received the company, association and teachings of good men and always should act righteously and justly.

    Foot Notes

    (रातिम्) दातारम् । = Donor, Embodiment of charity. (राजा) शुभगुण: प्रकाशमान: = Shining with noble virtues. (कृष्टीनाम् ) कृषीवलादिप्रजास्थमनुष्याणाम् । कृष्टय इति मनुष्यनाम (NG 2,3)। = Of farmers and other men. The spiritual interpretation of the mantra regarding God is quite clear. He is the only Lord of all people and whose munificence is glorified by all.

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    हिंगलिश (1)

    Word Meaning

    सुराज्य मे. उद्यमी कर्मवीरों द्वारा के प्रोत्साहन. प्रशिक्षण, सुरक्षा से अनेक उद्यमों व्यापार इत्यादि द्वारा सर्वव्यापी समृद्धि स्थापित होती है.

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