ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 17/ मन्त्र 18
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स॒खी॒य॒ताम॑वि॒ता बो॑धि॒ सखा॑ गृणा॒न इ॑न्द्र स्तुव॒ते वयो॑ धाः। व॒यं ह्या ते॑ चकृ॒मा स॒बाध॑ आ॒भिः शमी॑भिर्म॒हय॑न्त इन्द्र ॥१८॥
स्वर सहित पद पाठस॒खि॒ऽय॒ताम् । अ॒वि॒ता । बो॒धि॒ । सखा॑ । गृ॒णा॒नः । इ॒न्द्र॒ । स्तु॒व॒ते । वयः॑ । धाः॒ । व॒यम् । हि । आ । ते॒ । च॒कृ॒म । स॒ऽबाधः॑ । आ॒भिः । शमी॑भिः । म॒हय॑न्तः । इ॒न्द्र॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सखीयतामविता बोधि सखा गृणान इन्द्र स्तुवते वयो धाः। वयं ह्या ते चकृमा सबाध आभिः शमीभिर्महयन्त इन्द्र ॥१८॥
स्वर रहित पद पाठसखिऽयताम्। अविता। बोधि। सखा। गृणानः। इन्द्र। स्तुवते। वयः। धाः। वयम्। हि। आ। ते। चकृम। सऽबाधः। आभिः। शमीभिः। महयन्तः। इन्द्र ॥१८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 17; मन्त्र » 18
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राज्यवर्द्धनप्रकारमाह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! सखीयतां सखाविता गृणानः सन् स्तुवते वयो धाः। हे इन्द्र ! ये वयं हि ते तुभ्यमाभिः शमीभिर्महयन्तस्सन्तो वयश्चकृमा ताँस्त्वं सबाधः सन्नाऽबोधि ॥१८॥
पदार्थः
(सखीयताम्) सखेवाचरताम् (अविता) (बोधि) बुध्यस्व (सखा) सुहृत् (गृणानः) स्तुवन् (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रद (स्तुवते) प्रशंसकाय (वयः) कमनीयं धनम् (धाः) धेहि (वयम्) (हि) (आ) (ते) तव (चकृमा) कुर्य्याम। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सबाधः) बाधेन सह वर्त्तमानः (आभिः) (शमीभिः) क्रियाभिः (महयन्तः) महानिवाचरन्तः (इन्द्र) सूर्य इव विद्याविनयप्रकाशित ॥१८॥
भावार्थः
हे राजन् ! यदि वर्धयितुं भवानिच्छेत्तर्हि पक्षपातं विहाय सर्वैः सह मित्रवद्वर्त्तताम्। श्रेष्ठान् रक्षान् दुष्टान् दण्डयन्त्स्वतेजः प्रख्यापयताम् ॥१८॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राज्यवर्द्धन प्रकार को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के देनेवाले (सखीयताम्) मित्र के सदृश आचरण करते हुए पुरुषों के (सखा) मित्र (अविता) रक्षा करनेवाले (गृणानः) स्तुति करते हुए (स्तुवते) प्रशंसा करनेवाले के लिये (वयः) सुन्दर धन को (धाः) धारण कीजिये। और हे (इन्द्र) सूर्य्य के सदृश विद्या और विनय से प्रकाशित जो (वयम्) हम लोग (हि) ही (ते) आपके लिये (आभिः) इन (शमीभिः) क्रियाओं से (महयन्तः) बड़े के सदृश आचरण करते हुए (वयः) सुन्दर धन को (चकृमा) करें उनको आप (सबाधः) विलोडन के सहित वर्त्तमान होते हुए (आ, बोधि) अच्छे प्रकार जानिये ॥१८॥
भावार्थ
हे राजन् ! यदि राज्य बढ़वाने की आप इच्छा करें तो पक्षपात का त्याग करके सब के साथ मित्र के सदृश वर्त्ताव करिये और श्रेष्ठ पुरुषों की रक्षा करते और दुष्ट पुरुषों को दण्ड देते हुए अपने तेज की प्रसिद्धि करिये ॥१८॥
विषय
सखा वयोधाः
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (सखीयताम्) = मित्रता की कामनावालों के (अविता बोधि) = रक्षक होइये। (सखा) = आप मित्र हैं, वे मित्र जो कि (गृणान:) = उपदेश देनेवाले हैं [गृणति उपदिशति] कर्तव्य मार्ग का ज्ञान देनेवाले हैं। स्तुवते स्तुति करनेवाले के लिए (वयोधाः) = उत्कृष्ट जीवन का धारण करते हैं । [२] (वयम्) = हम हि निश्चय से (सबाध:) = शत्रुओं के बाधन के साथ होते हुए शत्रुओं का बाधन करते हुए (ते आचकृमा) = आपका उपासन करते हैं आपका आह्वान करते हैं। हे (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! (आभिः शमीभि:) = इन शान्तभाव से किये जानेवाले कर्मों द्वारा हम (महयन्तः) = आपका पूजन करनेवाले हों। आपका कर्मों द्वारा पूजन करते हुए हम आपको पुकारें। आपके द्वारा ही तो हम शत्रुओं का बाधन कर सकेंगे।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु का पूजन करते हैं। प्रभु हमें ज्ञान देते हुए हमारा रक्षण करते हैं।
विषय
आचार्य इन्द्र ।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन्! अज्ञाननाशक आचार्य ! तू (सखीयता) अपना उत्तम मित्र चाहने वाले लोगों का (अविता) रक्षक और उत्तम ज्ञान से तृप्त करने वाला (सखा) परम मित्र (बोधि) जाना जाय। तू (स्तुवते) स्तुति प्रार्थना करने वाले को (गृणानः) उपदेशः करता हुआ (वयः) ज्ञान, बल (धाः) प्रदान कर । (वयम्) हम लोग (आभिः) इन (शमीभिः) उत्तम शान्तिदायक कर्मों द्वारा (महयन्तः) तेरी पूजा करते हुए (सबाधः) दुःखी एवं विघ्न बाधा से पीड़ित होकर (ते हि) तुझे ही (आचकृम) सदा बुलावें या तू उनकी (सबाधः) वाधा सहित रहकर भी (बोधि) जान, उनकी ख़बर रख ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ पंक्तिः । ७,९ भुरिक पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः। १५ याजुषी पंक्तिः । निचृत्पंक्तिः । २, १२, १३, १७, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, ८, १०, ११ त्रिष्टुप् । ४, २० , । विराट् त्रिष्टुप् ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा ! जर राज्य वाढविण्याची इच्छा करशील तर पक्षपाताचा त्याग करून सर्वांबरोबर मित्राप्रमाणे वर्तन कर व श्रेष्ठ पुरुषांचे रक्षण करून दुष्ट लोकांना दंड देत आपले तेज प्रकट कर. ॥ १८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, friend and protector of friends you are, know us and enlighten us. Lord admired and celebrated, bless the devotee with health, wealth and long age. Lord of power, honour and excellence, Indra, with all our limitations, we admire, honour and celebrate you only, exalting you with these our acts of love, devotion and worship.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The ways to supplement prosperity of the State are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king! you are giver of great wealth, and friend of those who act friendly, and are their protector. Grant them the desirable wealth and to your admirers, and praise his virtues. Enlighten the suffering human beings, who approach you with the supplications, and honor you with the peaceful acts. O Indra (shining like the sun with knowledge and humility).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king! if you desire to make your State advanced, deal with all like a friend, giving up all prejudices or partiality. Extend your splendor protecting good people and punishing the wicked.
Foot Notes
(शमोभिः ) क्रियाभि: । शमीति कर्मनाम (NG 2, 1) = With acts that lead to peace. (इन्द्र) सूर्य इव विद्या विनय प्रकाशित । परमैश्र्थ्यप्रद । अथ यः स इन्द्रोऽसौ स आदित्य: ( Stph 8, 5, 3, 2) एष एवेन्द्रः य एष सूर्यः स्तपति (Stph 1, 6, 4, 18) = Shining like the sun with knowledge and humility. A king should be truly devoted to O god and should be just like Him.
हिंगलिश (1)
Word Meaning
हे राजन् यदि आप की इच्छा राज्य मे सुख समृद्धि के विस्तार की है, तो पक्षपात को त्याग कर सब से मित्रता पूर्ण व्यवहार करिये, श्रेष्ठ पुरुषों की रक्षा करते हुवे दुष्टों को दण्ड देते हुवे अपने तेज की प्रसिद्धि कीजिये.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal