ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 26/ मन्त्र 11
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वो व्यश्वो वाङ्गिरसः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
वै॒य॒श्वस्य॑ श्रुतं नरो॒तो मे॑ अ॒स्य वे॑दथः । स॒जोष॑सा॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा ॥
स्वर सहित पद पाठवै॒य॒श्वस्य॑ । श्रु॒त॒म् । न॒रा॒ । उ॒तो इति॑ । मे॒ । अ॒स्य । वे॒द॒थः॒ । स॒ऽजोष॑सा । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा ॥
स्वर रहित मन्त्र
वैयश्वस्य श्रुतं नरोतो मे अस्य वेदथः । सजोषसा वरुणो मित्रो अर्यमा ॥
स्वर रहित पद पाठवैयश्वस्य । श्रुतम् । नरा । उतो इति । मे । अस्य । वेदथः । सऽजोषसा । वरुणः । मित्रः । अर्यमा ॥ ८.२६.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 26; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O leaders of the nation, listen to the song of the holy sage and acknowledge and respond to this song of mine. O Varuna, Kshatriya dispenser of justice, Mitra, loving and friendly Brahmana, and Aryama, Vaishya producer and distributor pursuing the path of rectitude, all together in unison and cooperation, listen to me.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रजेने आपली इच्छा स्वतंत्रतेने सर्व प्रतिनिधींना सांगावी. प्रतिनिधीमंडळाने त्यावर योग्य कार्य करावे. ॥११॥
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तदनुवर्तते ।
पदार्थः
हे नरा=नेतारौ लोकानाम् । उतो=अपि च । युवाम् । वैयश्वस्य=जितेन्द्रियस्य । अस्य । मे=मम । श्रुतम्=शृणुतमाह्वानम् । वेदथश्च=जानीथश्च । तथा । सजोषसा=संगतौ । वरुणः=राजप्रतिनिधिः । मित्रः=ब्राह्मणप्रतिनिधिः । अर्य्यमा=वैश्यप्रतिनिधिः । एतेऽपि । ममाह्वानम् । शृण्वन्तु ॥११ ॥
हिन्दी (3)
विषय
पुनः वही विषय आ रहा है ।
पदार्थ
(नरा) हे लोकनेता ! राजा तथा मन्त्रिदल (उतो) और भी आप सब (वैयश्वस्य) जितेन्द्रिय ऋषियों के समान (अस्य+मे) इस मेरे आह्वान को (श्रुतम्) सुनें (वेदथः) जानें तथा (सजोषसा) मिलकर (वरुणः) राजप्रतिनिधि (मित्रः) ब्राह्मणप्रतिनिधि ये दोनों और (अर्यमा) वैश्यप्रतिनिधि, ये सब मिलकर मेरी सुनें ॥११ ॥
भावार्थ
प्रजागण अपनी इच्छा स्वतन्त्रता से सब प्रतिनिधियों के समक्ष सुनावें । प्रतिनिधि दल उस पर यथोचित कार्य्य करें ॥११ ॥
विषय
जितेन्द्रियों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( नरा ) उत्तम नेताओ ! हे स्त्री पुरुषो ! आप लोग (वैय-श्वस्य ) विविध अश्वों के स्वामी, विविध इन्द्रियों के साधक जितेन्द्रिय राजा वा विद्वान् के आज्ञा वा उपदेश वचन ( श्रुतं ) श्रवण किया करो। ( उतो ) और ( मे अस्य ) मुझ इस प्रिय प्रजाजन को भी ( वेदथः ) जाना करो। ( वरुणः ) सर्वश्रेष्ठ मित्र, स्नेही और ( अर्यमा ) उत्तम जनों का स्वामी उनका आदरकर्त्ता, दुष्टों का नियन्ता पुरुष (सजोषसा) समान प्रीति से युक्त हों। वे प्रजा के व्यवहार जानें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्वो वाङ्गिरस ऋषिः॥ १—१९ अश्विनौ। २०—२५ वायुदेवता॥ छन्दः—१, ३, ४, ६, ७ उष्णिक्। २, ८, २३ विराडुष्णिक्। ५, ९—१५, २२ निचृदुष्णिक्। २४ पादनिचृदुष्णिक्। १६, १९ विराड् गायत्री। १७, १८, २१ निचृद् गायत्री। २५ गायत्री। २० विराडनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
स्नेह-निर्देषता व संयम
पदार्थ
[१] हे (नरा) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले प्राणापानो! (वैयश्वस्य) = व्यश्व पुत्र, अर्थात् अत्यन्त विशिष्ट इन्द्रियाश्वोंवाले मे मेरी प्रार्थना को (श्रुतम्) = आप सुनो। (उत) = और (उ) = निश्चय से (मे अस्य वेदथः) = मेरी इस प्रकार को (वेदथः) = आप जानो। अर्थात् मेरी आराधना व्यर्थ न जाये । आपकी इस आराधना से ही मैं अपने इन्द्रियाश्वों को विषयों से अनाक्रान्त व पवित्र बना पाऊँगा। [२] आपकी आराधना से ही मेरे जीवन में (मित्र: वरुणः) = स्नेह व निर्देषता के भाव (सजोषसा) = प्रीतिपूर्वक संगत हों। आपकी आराधना से ही अर्यमा [अदीन् यच्छति] काम-क्रोध- लोभ का संयम मुझे प्राप्त हो ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से मेरे जीवन में 'स्नेह, निद्वेषता व संयम' के दिव्यभावों का वास होता है।
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