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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 26/ मन्त्र 12
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वो व्यश्वो वाङ्गिरसः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    यु॒वाद॑त्तस्य धिष्ण्या यु॒वानी॑तस्य सू॒रिभि॑: । अह॑रहर्वृषण॒ मह्यं॑ शिक्षतम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒वाऽद॑त्तस्य । धि॒ष्ण्या॒ । यु॒वाऽनी॑तस्य । सू॒रिऽभिः॑ । अहः॑ऽअहः । वृ॒ष॒णा॒ । मह्य॑म् । शि॒क्ष॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युवादत्तस्य धिष्ण्या युवानीतस्य सूरिभि: । अहरहर्वृषण मह्यं शिक्षतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युवाऽदत्तस्य । धिष्ण्या । युवाऽनीतस्य । सूरिऽभिः । अहःऽअहः । वृषणा । मह्यम् । शिक्षतम् ॥ ८.२६.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 26; मन्त्र » 12
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O devout and benevolent harbingers of the showers of prosperity, of that which you have created and given to the nation and that what you have brought in, let me learn day by day and share through the wise and brave leaders.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राज्याकडून जे धन विद्वानांना दिले जाते तसेच इतर लोकांनाही ते वाटावे. ॥१२॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तदनुवर्तते ।

    पदार्थः

    हे धृष्ण्या=धृष्ण्यौ=धिषणार्हौ=पूजार्हौ । वृषणा=धनादीनां वर्षितारौ । अश्विनौ । सूरिभिः=सूरिभ्यः=विद्वद्भ्यः । युवादत्तस्य=युवाभ्यां दत्तम् । युवानीतस्य=युवाभ्यां नीतम् । यद्धनम् । तत् । मह्यमपि । अहरहः=प्रतिदिनम् । शिक्षतम्=दत्तम् ॥१२ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    पुनः वही विषय आ रहा है ।

    पदार्थ

    (धृष्ण्या) पूजार्ह (वृषणा) धनादिकों की वर्षा करनेवाले आप सब (सूरिभिः+युवादत्तस्य) विद्वानों को आपने जो धन दिये हैं (युवानीतस्य) और उनके लिये जो धन ले आये हैं, उस धन से (मह्यम्) मुझको भी (अहरहः) सर्वदा (शिक्षतम्) धनयुक्त कीजिये ॥१२ ॥

    भावार्थ

    राज्य की ओर से जो धन विद्वद्वर्ग में वितीर्ण किये जाएँ, वे इतर जातियों में भी बाँटे जाएँ ॥१२ ॥

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    विषय

    जितेन्द्रियों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (धिष्ण्या) स्तुतियोग्य, बुद्धियुक्त, उत्तम आसनार्ह के योग्य हे ( वृषणा ) उत्तम ज्ञान, सुख, धनैश्वर्य बल-वीर्यादि के वर्षण करने वाले, बलवान् एवं माता पितावत् पालक प्रबन्धकर्त्ता जनो ! आप लोग ( युवादत्तस्य ) आप दोनों से देने योग्य, और ( युवा-नीतस्य ) आप दोनों से प्राप्त कराने और सिखाने योग्य ज्ञान और ऐश्वर्य ( सूरिभिः ) विद्वानों द्वारा ( मह्यं ) मुझ प्रजाजन को पुत्रवत् ( अहरहः ) दिन प्रति दिन ( शिक्षत् ) दो और सिखाओ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वमना वैयश्वो वाङ्गिरस ऋषिः॥ १—१९ अश्विनौ। २०—२५ वायुदेवता॥ छन्दः—१, ३, ४, ६, ७ उष्णिक्। २, ८, २३ विराडुष्णिक्। ५, ९—१५, २२ निचृदुष्णिक्। २४ पादनिचृदुष्णिक्। १६, १९ विराड् गायत्री। १७, १८, २१ निचृद् गायत्री। २५ गायत्री। २० विराडनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    युवादत्त 'धिषणा', युवानीत 'शक्ति'

    पदार्थ

    [१] हे (दिष्ण्या) = [धिषणार्हो] स्तुति के योग्य अथवा उत्तम बुद्धि को प्राप्त करानेवाले [धिषणा = बुद्धि] (वृषणा) = शक्ति का शरीर में सेचन करनेवाले प्राणापानो ! (युवादत्तस्य) = आप से दिये जानेवाले ज्ञान को तथा (युवानीतस्य) = आप से आनीत [ प्राप्त करायी जानेवाली] शक्ति को (सूरिभिः)= ज्ञानी स्तोताओं के सम्पर्क के द्वारा (अहरहः) = प्रतिदिन (मह्यम्) = मेरे लिये (शिक्षतम्) = दीजिये । [२] ज्ञानी स्तोताओं के सम्पर्क में हम भी ज्ञान की रुचिवाले बनेंगे तथा विषय वासनाओं में न फँसने के कारण शक्ति को प्राप्त करनेवाले होंगे। ज्ञानी स्तोताओं के सम्पर्क की ओर झुकाव इस प्राणापान की साधना से ही होगा। एवं यह साधना हमें ज्ञान व शक्ति को प्राप्त करानेवाली बनेगी।

    भावार्थ

    भावार्थ- हे प्राणापानो! हम आप से दत्त ज्ञान को तथा आप से प्राप्त करायी गयी शक्ति को ज्ञानियों के सम्पर्क में रहते हुए प्राप्त करें।

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