ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 26/ मन्त्र 16
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वो व्यश्वो वाङ्गिरसः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
वाहि॑ष्ठो वां॒ हवा॑नां॒ स्तोमो॑ दू॒तो हु॑वन्नरा । यु॒वाभ्यां॑ भूत्वश्विना ॥
स्वर सहित पद पाठवाहि॑ष्ठः । वा॒म् । हवा॑नाम् । स्तोमः॑ । दू॒तः । हु॒व॒त् । न॒रा॒ । यु॒वाभ्या॑म् । भू॒तु॒ । अ॒श्वि॒ना॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वाहिष्ठो वां हवानां स्तोमो दूतो हुवन्नरा । युवाभ्यां भूत्वश्विना ॥
स्वर रहित पद पाठवाहिष्ठः । वाम् । हवानाम् । स्तोमः । दूतः । हुवत् । नरा । युवाभ्याम् । भूतु । अश्विना ॥ ८.२६.१६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 26; मन्त्र » 16
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, rulers and leading lights of the nation, may the song of our invocation to you be the instant and most effective messenger to you and bring you here to the yajnic hall.
मराठी (1)
भावार्थ
आमचे सर्व कार्य राज्याचे प्रिय करणारे असावे. ॥१६॥
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तदनुवर्तते ।
पदार्थः
हे नरा=नेतारौ ! अश्विना=अश्विनौ । हवानाम्= ह्वातॄणामस्माकम् । वाहिष्ठः=अतिशयेन यशोवोढा । स्तोमः । दूतः=दूत इव भूत्वा । वाम=युवाम् । हुवत्=आह्वयतु । तथा स स्तोमः । युवाभ्यां प्रियः । भूतु=भवतु ॥१६ ॥
हिन्दी (3)
विषय
पुनः वही विषय आ रहा है ।
पदार्थ
(नरा+अश्विना) हे प्रजाओं के नेता अश्विद्वय ! (हवानाम्) आह्वानकर्ता और प्रार्थनाकारी हम लोगों का (स्तोमः) स्तोत्र अर्थात् यशःप्रसारक गानविशेष ही (दूतः) दूत होकर वा दूत के समान (वाम्+हुवत्) आप दोनों को निमन्त्रण कर यहाँ ले आवे । जो स्तुतिगान (वाहिष्ठः) आपके यशों का इधर-उधर अतिशय ले जानेवाला है तथा वह स्तोम (युवाभ्याम्+भूतु) आप सबको प्रिय होवे ॥१६ ॥
भावार्थ
हमारे समस्त काम राज्यप्रियसाधक हों ॥१६ ॥
विषय
दिन-रात्रिवत् पति-पत्नी जनों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( अश्विना ) सूर्य चन्द्रवत् तेजस्वी पुरुषो ! हे ( नरा ) नायक जनो ! ( हवानां ) ग्राह्य उपदेशों, ज्ञानों को ( वाहिष्ठः ) उत्तम रीति से अन्यों तक पहुंचाने वाला ( स्तोमः ) वेदमन्त्रों का समूह ( वां ) तुम दोनों को ( दूतः हुवत् ) उत्तम संदेशहर के समान ज्ञानप्रद हो, और वह सदा ( युवाभ्यां ) तुम दोनों के लिये हितकारी ( भूतु ) होवे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्वो वाङ्गिरस ऋषिः॥ १—१९ अश्विनौ। २०—२५ वायुदेवता॥ छन्दः—१, ३, ४, ६, ७ उष्णिक्। २, ८, २३ विराडुष्णिक्। ५, ९—१५, २२ निचृदुष्णिक्। २४ पादनिचृदुष्णिक्। १६, १९ विराड् गायत्री। १७, १८, २१ निचृद् गायत्री। २५ गायत्री। २० विराडनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
प्राणापान का स्तोम 'वाहिष्ठ' है -
पदार्थ
[१] हे प्राणापानो! (वां स्तोमः) = आपका यह स्तवन हवानाम् - स्तोमों में वाहिष्ठ: - वोढृतम है। प्राणापान की साधना ही सर्वोत्तम स्तुति है। प्राणापान चित्तवृत्ति का निरोध करके हमें प्रभु प्रवण करता है। एवं प्राणापान का स्तवन प्रभु का स्तवन हो जाता है, यह हमें प्रभु तक ले जाता है। हे (नरा) = उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले प्राणापानो! यह स्तोम (दूतः) = दूत बनता है, ज्ञान-सन्देश को प्राप्त करानेवाला होता है और (हुवत्) = हमारे हृदयों में आसीन होने के लिये प्रभु को पुकारता है। [२] सो हे (अश्विना) = प्राणापानो! हमारा स्तोम तो (युवाभ्यां भूतु) = आपके लिये ही हो। हम आपकी ही आराधना करें। यह आराधना ही हमारे लिये वाहिष्ठ होगी, हमें अतिशयेन प्रभु के समीप प्राप्त करानेवाली होगी।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणापान का स्तवन सर्वोत्तम स्तवन है, यह हमें प्रभु के अतिशयेन समीप पहुँचानेवाला है।
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