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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 26/ मन्त्र 4
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वो व्यश्वो वाङ्गिरसः देवता - अश्विनौ छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    आ वां॒ वाहि॑ष्ठो अश्विना॒ रथो॑ यातु श्रु॒तो न॑रा । उप॒ स्तोमा॑न्तु॒रस्य॑ दर्शथः श्रि॒ये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । वा॒म् । वाहि॑ष्ठः । अ॒श्वि॒ना॒ । रथः॑ । या॒तु॒ । श्रु॒तः । न॒रा॒ । उप॑ । स्तोमा॑न् । तु॒रस्य॑ । द॒र्श॒थः॒ । श्रि॒ये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ वां वाहिष्ठो अश्विना रथो यातु श्रुतो नरा । उप स्तोमान्तुरस्य दर्शथः श्रिये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । वाम् । वाहिष्ठः । अश्विना । रथः । यातु । श्रुतः । नरा । उप । स्तोमान् । तुरस्य । दर्शथः । श्रिये ॥ ८.२६.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 26; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ashvins, harbingers of light and grace, let your strongest chariot of renown come and transport you here to us where you may, we pray, listen and appreciate the ardent devotee’s songs of adoration and bless them with the honour and dignity of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    रथ शब्द उपलक्षणाने आलेला आहे. अर्थात प्रजेमध्ये जेथे जेथे भोज्य पदार्थांची न्यूनता असेल तेथे तेथे राजाच्या मंत्रिमंडळाने रथ, अश्व, घोडे इत्यादीद्वारे अन्न पोचवावे.॥४॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    राजकर्त्तव्यकर्माह ।

    पदार्थः

    नरा=हे सर्वस्य नेतारौ ! अश्विना=मन्त्रिनृपौ । वाम्=युवयोः । वाहिष्ठः=अतिशयेन वोढा । श्रुतः=विख्यातः । रथः । आयातु । युवाम् । तुरस्य=शीघ्रं स्तुतिं कुर्वतः पुरुषस्य । स्तोमान् । श्रिये । उपदर्शथः=शृणुतम् ॥४ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा का कर्त्तव्य कर्म कहते हैं ।

    पदार्थ

    (नरा) हे मनुष्यों के नेता ! (अश्विना) राजा तथा मन्त्रिदल (वाम्) आप सबका (वाहिष्ठः) अतिशय अन्नादिकों का ढोनेवाला (श्रुतः) प्रसिद्ध (रथः) रथ (आयातु) प्रजाओं के गृह पर आवे और आप (तुरस्य) श्रद्धा और भक्तिपूर्वक स्तुति करते हुए पुरुषों के (स्तोमान्) स्तोत्रों को (श्रिये) कल्याण के लिये (उपदर्शथः) सुनें ॥४ ॥

    भावार्थ

    रथ शब्द यहाँ उपलक्षण है अर्थात् प्रजाओं में जहाँ-२ भोज्य पदार्थों की न्यूनता हो, वहाँ-२ राजदल रथ, अश्व, उष्ट्र आदिकों के द्वारा अन्न पहुँचाया करें ॥४ ॥

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    विषय

    माता-पिता, गुरु जनों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (अश्विना) अश्व के स्वामी, रथी सारथीवत् राजा सचिव जनो! वा स्त्री पुरुषो ! वा माता पिता गुरु जनो ! हे (नरा) सन्मार्ग से लेजाने वालो ! ( वां ) तुम दोनों का ( वाहिष्ठः ) ज्ञान प्राप्त कराने वाला ( रथः ) रमणीय ( श्रुतः ) श्रवण करने योग्य उपदेश हमें ( रथः ) रथवत् ( आ यातु ) प्राप्त हो। आप दोनों ( तुरस्य ) सर्वदुःखनाशक प्रभु के ( स्तोमान् ) उपदेश किये वेद मन्त्रों का ( श्रिये ) अपने आश्रय वा शोभा, और ज्ञान धनादि समृद्धि के लिये ( उप दर्शथः ) गुरु देवादि की उपासना द्वारा ज्ञान किया करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वमना वैयश्वो वाङ्गिरस ऋषिः॥ १—१९ अश्विनौ। २०—२५ वायुदेवता॥ छन्दः—१, ३, ४, ६, ७ उष्णिक्। २, ८, २३ विराडुष्णिक्। ५, ९—१५, २२ निचृदुष्णिक्। २४ पादनिचृदुष्णिक्। १६, १९ विराड् गायत्री। १७, १८, २१ निचृद् गायत्री। २५ गायत्री। २० विराडनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    श्रुत वाहिष्ठ' रथ

    पदार्थ

    [१] हे (नरा) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले (अश्विना) = प्राणापानो! (वाम्) = आपका (वाहिष्ठः) = जीवनयात्रा में उत्तमता से आगे और आगे ले चलनेवाला (श्रुतः) = प्रसिद्ध अथवा ज्ञान के श्रवण से युक्त (रथः) = यह शरीररथ आयातु हमें प्राप्त हो। प्राणसाधना के होने पर यह शरीरस्थ बड़ा दृढ़ बना रहता है, यह ज्ञानाग्नि से प्रकाशमय बन जाता है। यह श्रुत वाहिष्ठ रथ हमारी जीवनयात्रा की पूर्ति का उत्तम साधन बनता है। [२] हे अश्विनौ ! आप (तुरस्य) = वासनाओं का संहार करनेवाले प्रभु की (स्तोमान्) = स्तुतियों का (उपदर्शथः) = हमें ज्ञान कराते हो, हमें स्तुति की वृत्ति का बनाते हो । (श्रिये) = जिससे हमारा जीवन शोभावाला हो। प्राणसाधक पुरुष प्रभु-स्तवन करता हुआ जीवन को बड़ा शोभामय बनाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से यह शरीर - रथ 'वाहिष्ठ व श्रुत' बनता है, दृढ़ प्रकाशमय । प्राणसाधक प्रभु-स्तवन करता हुआ जीवन को श्री सम्पन्न बनाता है।

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