ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 71/ मन्त्र 13
ऋषिः - सुदीतिपुरुमीळहौ तयोर्वान्यतरः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृद्बृहती
स्वरः - मध्यमः
अ॒ग्निरि॒षां स॒ख्ये द॑दातु न॒ ईशे॒ यो वार्या॑णाम् । अ॒ग्निं तो॒के तन॑ये॒ शश्व॑दीमहे॒ वसुं॒ सन्तं॑ तनू॒पाम् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः । इ॒षाम् । स॒ख्ये । द॒दा॒तु॒ । नः॒ । ईशे॑ । यः । वार्या॑णाम् । अ॒ग्निम् । तो॒के । तन॑ये । शश्व॑त् । ई॒म॒हे॒ । वसु॑म् । सन्त॑म् । त॒नू॒ऽपाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निरिषां सख्ये ददातु न ईशे यो वार्याणाम् । अग्निं तोके तनये शश्वदीमहे वसुं सन्तं तनूपाम् ॥
स्वर रहित पद पाठअग्निः । इषाम् । सख्ये । ददातु । नः । ईशे । यः । वार्याणाम् । अग्निम् । तोके । तनये । शश्वत् । ईमहे । वसुम् । सन्तम् । तनूऽपाम् ॥ ८.७१.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 71; मन्त्र » 13
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
May Agni as a friend give us food and energy for sustenance since he rules over all the wealth and powers of the world. We always serve and pray to Agni for our children and grand children, he being the universal giver of home and settlement as well as the protector and sustainer of our body’s health.
मराठी (1)
भावार्थ
तो ईश सर्वांचा सखा व पोषक आहे. त्यामुळे सर्व पदार्थांसाठी त्याची प्रार्थना करावी. ॥१३॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
योऽग्निवाच्येश्वरः । वार्य्याणां=निखिलधनानाम् । ईशे=ईषे= स्वामी भवति सोऽग्निः । सख्ये=सर्वेषां स सखास्तीति हेतौ । इषामिषोऽन्नानि । नोऽस्मभ्यं ददतु । तथा । तोके=पुत्रे । तनये=पौत्रे च । अग्निं+शश्वत्=सर्वदा सुखम् । ईमहे=याचामहे । कीदृशम् । वसुं=वासकम् । सन्तम्=सदा वर्तमानम् । तनूपाम्=शरीररक्षकम् ॥१३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(यः) जो अग्निवाच्येश्वर (वार्य्याणाम्) सर्वश्रेष्ठ धनों का (ईशे) सर्वाधिकारी है, (अग्निः) वह अग्नि (सख्ये) जिस हेतु वह सबका मित्र पालक है, अतः (नः) हम लोगों को (इषाम्+ददातु) सर्व प्रकार के सुखों को देवे । (तोके) पुत्र (तनये) पौत्र आदिकों के लिये (शश्वत्) सदा (अग्निम्+ईमहे) ईश्वर से सुख-सम्पत्ति की याचना करते हैं, जो ईश (वसुम्) सबको बसानेवाला (सन्तम्) सर्वत्र विद्यमान और (तनूपाम्) शरीररक्षक है ॥१३ ॥
भावार्थ
वह ईश सबका सखा और पोषक है, अतः सर्व वस्तु के लिये उससे प्रार्थना करें ॥१३ ॥
विषय
देववत् पूज्य अग्नि परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
( यः वार्याणाम् ईशे ) जो वरण करने योग्य धनों का स्वामी है वह ( अग्निः ) तेजस्वी प्रभु ( सख्ये ) अपने स्नेही मित्र को ( इषां ददातु ) अन्न दान करे। हम ( वसु ) सबके भीतर बसे ( सन्तं ) सत्स्वरूप ( तनूपाम् ) सब देहों के पालक ( अग्निम् ) अग्नि, व्यापक प्रभु को ( तोके तनये शश्वत् ईमहे ) पुत्र पौत्रादि के कल्याणार्थ भी सदा याचना करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सुदीतिपुरुमीळ्हौ तयोर्वान्यतर ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१, ४, ७ विराड् गायत्री। २, ६, ८, ९ निचृद् गायत्री। ३, ५ गायत्री। १०, १०, १३ निचृद् बृहती। १४ विराड् बृहती। १२ पादनिचृद् बृहती। ११, १५ बृहती॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
वसुं सन्तं तनूपाम्
पदार्थ
[१] (अग्निः) = वह अग्रणी प्रभु (सख्ये) = मित्रभूत जीव के लिए (इषां ददातु) = प्रेरणा को प्राप्त कराएँ। प्रभु की प्रेरणा ही हमें जीवनमार्ग से भ्रष्ट होने से बचाएगी। वे प्रभु (यः) = जो (नः) = हमारे लिए (वार्याणाम्) = वरणीय वस्तुओं के ईशे ईश हैं । [२] (अग्निं) = उस अग्रणी प्रभु को (तोके) = पुत्रों के निमित्त तथा (तनये) = पौत्रों के निमित्त (शश्वद्) = सदा (ईमहे) = याचना करते हैं। उस प्रभु को जो (वसुं) = सबको बसानेवाले हैं । (सन्तम्) = सत् हैं तथा (तनूपाम्) = हमारे शरीरों का रक्षण करनेवाले हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमें प्रेरणा देते हैं, वरणीय धनों को प्राप्त कराते हैं, पुत्रों व पौत्रों का रक्षण करते हैं, बसानेवाले हैं, सत् हैं और हमारे शरीरों का रक्षण करनेवाले हैं।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal