ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 107/ मन्त्र 15
तर॑त्समु॒द्रं पव॑मान ऊ॒र्मिणा॒ राजा॑ दे॒व ऋ॒तं बृ॒हत् । अर्ष॑न्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ धर्म॑णा॒ प्र हि॑न्वा॒न ऋ॒तं बृ॒हत् ॥
स्वर सहित पद पाठतर॑त् । स॒मु॒द्रम् । पव॑मानः । ऊ॒र्मिणा॑ । राजा॑ । दे॒वः । ऋ॒तम् । बृ॒हत् । अर्ष॑त् । मि॒त्रस्य॑ । वरु॑णस्य । धर्म॑णा । प्र । हि॒न्वा॒नः । ऋ॒तम् । बृ॒हत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तरत्समुद्रं पवमान ऊर्मिणा राजा देव ऋतं बृहत् । अर्षन्मित्रस्य वरुणस्य धर्मणा प्र हिन्वान ऋतं बृहत् ॥
स्वर रहित पद पाठतरत् । समुद्रम् । पवमानः । ऊर्मिणा । राजा । देवः । ऋतम् । बृहत् । अर्षत् । मित्रस्य । वरुणस्य । धर्मणा । प्र । हिन्वानः । ऋतम् । बृहत् ॥ ९.१०७.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 107; मन्त्र » 15
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ऊर्मिणा) स्वानन्दवीचिभिः (पवमानः) पवित्रयिता परमात्मा (समुद्रम्) अन्तरिक्षलोकं (तरत्) अवगाहते (राजा) सर्वप्रकाशकः (देवः) दिव्यरूपः (बृहत्, ऋतं) सर्वोपरि सत्यताश्रयः परमात्मा (प्रार्षत्) सर्वत्र गतिशीलो भवति (मित्रस्य) अध्यापकस्य (वरुणस्य) उपदेशकस्य च (धर्मणा) धर्मैः (बृहत्, ऋतम्) सर्वोपरि सत्यतां (हिन्वानः) प्रेरयन् ताभ्यां लोककल्याणं वर्धयति ॥१५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ऊर्मिणा) अपने आनन्द की लहरों से (पवमानः) पवित्र करनेवाला परमात्मा (समुद्रम्) अन्तरिक्षलोक को (तरत्) अवगाहन करता है। (राजा) “राजते प्रकाशत इति राजा”=सबको प्रकाश करनेवाला (देवः) दिव्यस्वरूप (बृहत्, ऋतम्) सर्वोपरि सत्य के धारण करनेवाला परमात्मा (प्रार्षत्) सर्वत्र गतिशील होता है और (मित्रस्य) अध्यापक तथा (वरुणस्य) उपदेशक के (धर्मणा) धर्मों द्वारा (बृहत्, ऋतम्) सर्वोपरि सत्य को (हिन्वानः) प्रेरणा करता हुआ अध्यापक और उपदेशकों द्वारा देश का कल्याण करता है ॥१५॥
भावार्थ
जिस देश में अध्यापक तथा उपदेशक अपनी शुभ शिक्षा द्वारा लोगों को सुशिक्षित करते हैं, परमात्मा उस देश का अवश्यमेव कल्याण करता है ॥१५॥
विषय
राजा देव ऋतं बृहत्
पदार्थ
(पवमानः) = पवित्र करता हुआ सोम (ऊर्मिणा) = अपने प्रकाश से, सोमरक्षण द्वारा उत्पन्न ज्ञान से (समुद्रं तत्) = [कामो हि समुद्रा उ०] इस अनन्त पार वाले काम को तैर जाता है, हमें वासनाओं से यह ऊपर उठाता है । (राजा) = यह जीवन को दीप्त बनाता है। (देवः) = प्रकाशमय है, दिव्यगुणों का जनक है । (ऋतं बृहत्) = यह हमारे जीवन में उत्कृष्ट ऋत को प्राप्त कराता है । सोमरक्षण से जीवन ऋतमय बनता है। यह सोम (मित्रस्य) = सब के प्रति स्नेह वाले, (वरुणस्य) = द्वेष का निवारण करनेवाले पुरुष के (धर्मणा) = धारण के हेतु से (अर्षन्) = शरीर में गतिवाला होता है। उसके मित्र व वरुण के जीवन में यह (बृहत् ऋतं) = उत्कृष्ट ऋत को जीवन की नियमितता को (हिन्वानः) = प्रेरित करता है, बढ़ाता है। सोमरक्षण से पुरुष 'स्नेह व निद्वेषता' के भावों को धारण करता हुआ बड़े नियमित जीवन वाला होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम सुरक्षित हुआ हुआ हमें वासनाओं से पार ले जाता है, जीवन को 'प्रकाशमय दिव्यगुण सम्पन्न स्नेहयुक्त निर्दोष व ऋतमय' बनाता है ।
विषय
दिनरात्रिवत् जगत् की उत्पत्ति-प्रलय करने वाला प्रभु।
भावार्थ
(राजा देवः) प्रकाशमान राजा के समान तेजस्वी, (देवः) नाना सुखों के चाहने वाला, परम आत्मा प्रभु (बृहत्) महान् (ऋतम्) सत्य कारण रूप (समुद्रम्) सरिर-मय समुद्र को, (तरत्) पार कर जाता और प्राप्त होता है। (मित्रस्य वरुणस्य धर्मणा) वह प्रभु मित्र, दिन और वरुण, रात्रि के तुल्य जगत् को धारण करनेवाले नियम से दिन-रात्रिवत् संसार की उत्पत्ति और प्रलय करता हुआ (बृहत् ऋतम् अर्षन्) बड़े भारी जगत् के कारण रूप प्रधान तत्व को उत्तम रीति से सञ्चालित करता, व्यक्त रूप में प्रकट करता है। इति चतुर्दशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सप्तर्षय ऋषयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ६, ९, १४, २१ विराड् बृहती। २, ५ भुरिग् बृहती। ८,१०, १२, १३, १९, २५ बृहती। २३ पादनिचृद् बृहती। ३, १६ पिपीलिका मध्या गायत्री। ७, ११,१८,२०,२४,२६ निचृत् पंक्तिः॥ १५, २२ पंक्तिः॥ षड्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Across the ocean of existence, pure, purifying and flowing by waves of ecstasy, refulgent generous divine ruler of life, itself the law of expansive universe, radiating by and with the Dharma of Mitra, spirit of love, and Varuna, spirit of justice, inspiring and stimulating the universal law of truth and advancement, rolls Soma.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या देशात अध्यापक व उपदेशक आपल्या शुभ शिक्षणाद्वारे लोकांना सुशिक्षित करतात. परमात्मा त्या देशाचे अवश्य कल्याण करतो. ॥१५॥
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