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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 107 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 107/ मन्त्र 16
    ऋषिः - सप्तर्षयः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पिपीलिकामध्यागायत्री स्वरः - षड्जः

    नृभि॑र्येमा॒नो ह॑र्य॒तो वि॑चक्ष॒णो राजा॑ दे॒वः स॑मु॒द्रिय॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नृऽभिः॑ । ये॒मा॒नः । ह॒र्य॒तः । वि॒ऽच॒क्ष॒णः । राजा॑ । दे॒वः । स॒मु॒द्रियः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नृभिर्येमानो हर्यतो विचक्षणो राजा देवः समुद्रिय: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नृऽभिः । येमानः । हर्यतः । विऽचक्षणः । राजा । देवः । समुद्रियः ॥ ९.१०७.१६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 107; मन्त्र » 16
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (समुद्रियः) अन्तरिक्षदेशव्यापी (देवः) दिव्यस्वरूपः (राजा) अखिलब्रह्माण्डनियन्ता (विचक्षणः) सर्वद्रष्टा (हर्यतः) सर्वप्रियः परमात्मा (नृभिः) सदुपदेशकैः (येमानः) उपदिष्टः कर्मयोगिने शुभफलप्रदाता भवति ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (समुद्रियः) अन्तरिक्षदेशव्यापी (देवः) दिव्यस्वरूप (राजा) सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों का नियन्ता (विचक्षणः) सर्वद्रष्टा (हर्यतः) सर्वप्रिय परमात्मा (नृभिः) सदुपदेशक मनुष्यों द्वारा (येमानः) उपदेश किया हुआ कर्मयोगी के लिये शुभ फलों का प्रदाता होता है ॥१६॥

    भावार्थ

    परमात्मा के ज्ञान से कर्मयोगी नानाविध फलों को लाभ करता है, यहाँ कर्मयोगी यह उपलक्षणमात्र है, वास्तव में ज्ञानयोगी, उद्योगी, तपस्वी और संयमी सब प्रकार के पुरुषों का यहाँ ग्रहण है ॥१६॥

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    विषय

    राजा देवः समुद्रियः

    पदार्थ

    (नृभिः) = उन्नतिपथ पर चलानेवाले मनुष्यों से (येमानः) = नियम में किया जाता हुआ, संयत होता हुआ यह सोम (हर्यतः) = अत्यन्त स्पृहणीय होता है। (विचक्षणः) = यह विशेषरूप से शरीर का (द्रष्टा) = ध्यान करनेवाला होता है, इससे शरीर सुरक्षित रहता है। राजा यह हमारे जीवनों को दीप्त बनाता है (देवः) = प्रकाशमय व दिव्यगुण सम्पन्न करता है और (समुद्रियः) = उस आनन्दमय प्रभु की ओर ले जानेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- संयत सोम 'हर्यत विचक्षण-राजा - देव व समुद्रिय' है ।

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    विषय

    व्यवस्थापक प्रभु।

    भावार्थ

    (समुद्रियः) समस्त लोकों, रसों, सुखों और बलों का उद्भवस्थान और आकर तथा महान् समुद्र और आकाश के तुल्य अनन्त प्रभु (राजा) समस्त जगत् का प्रकाशक, (देवः) सब का दाता, (हर्यतः) कान्तिमान्, सबकी इच्छा वा अभिलाषा का पात्र, सर्वप्रिय, (वि-चक्षणः) विशेषरूप से सबको देखने वाला परमेश्वर (नृभिः येमानः) ठीक २ मार्गो में ले जाने वाले बलों, प्राणों और विद्वानों द्वारा जगत् के लोकों, देहों और जीवों को व्यवस्थित किया करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सप्तर्षय ऋषयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ६, ९, १४, २१ विराड् बृहती। २, ५ भुरिग् बृहती। ८,१०, १२, १३, १९, २५ बृहती। २३ पादनिचृद् बृहती। ३, १६ पिपीलिका मध्या गायत्री। ७, ११,१८,२०,२४,२६ निचृत् पंक्तिः॥ १५, २२ पंक्तिः॥ षड्विंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Invoked and impelled by leading lights of intelligent humanity, graciously charming, all watching, self-refulgent divine light of life, omnipresent in the universe, it rolls for Indra, the soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या ज्ञानाने कर्मयोगी नानाविध फळांचा लाभ करून घेतो. येथे कर्मयोगी हे उपलक्षण आहे. वास्तविक ज्ञानयोगी, उद्योगी, तपस्वी व संयमी सर्व प्रकारच्या पुरुषांचे येथे ग्रहण केलेले आहे. ॥१६॥

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