ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 107/ मन्त्र 22
मृ॒जा॒नो वारे॒ पव॑मानो अ॒व्यये॒ वृषाव॑ चक्रदो॒ वने॑ । दे॒वानां॑ सोम पवमान निष्कृ॒तं गोभि॑रञ्जा॒नो अ॑र्षसि ॥
स्वर सहित पद पाठमृ॒जा॒नः । वारे॑ । पव॑मानः । अ॒व्यये॑ । वृषा॑ । अव॑ । च॒क्र॒दः॒ । वने॑ । दे॒वाना॑म् । सो॒म॒ । प॒व॒मा॒न॒ । निः॒ऽकृ॒तम् । गोभिः॑ । अ॒ञ्जा॒नः । अ॒र्ष॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मृजानो वारे पवमानो अव्यये वृषाव चक्रदो वने । देवानां सोम पवमान निष्कृतं गोभिरञ्जानो अर्षसि ॥
स्वर रहित पद पाठमृजानः । वारे । पवमानः । अव्यये । वृषा । अव । चक्रदः । वने । देवानाम् । सोम । पवमान । निःऽकृतम् । गोभिः । अञ्जानः । अर्षसि ॥ ९.१०७.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 107; मन्त्र » 22
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मृजानः) भवान् सर्वेषां शोधकः (अव्यये, वारे) रक्ष्यं वरणीयं पुरुषं (पवमानः) पवित्रयन् (वृषा) सर्वकामान् वर्षुकः (वने) सम्पूर्णे ब्रह्माण्डे (अव, चक्रदः) शब्दायसे (सोम) हे सर्वोत्पादक ! (पवमान) सर्वपावक ! (देवानाम्) विदुषां (निष्कृतं) संस्कृतमन्तःकरणं (अर्षसि) प्राप्नोति (गोभिः) ज्ञानवृत्तिभिश्च (अञ्जानः) साक्षात्क्रियते भवान् ॥२२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मृजानः) आप सबको शुद्ध करनेवाले हैं (अव्यये, वारे) रक्षायुक्त वरणीय पुरुष को (पवमानः) पवित्र करनेवाले (वृषा) सब कामनाओं की वर्षा करनेवाले आप (वने) सब ब्रह्माण्डों में (अव, चक्रदः) शब्दायमान हो रहे हैं। (सोम) हे सर्वोत्पादक (पवमान) सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (देवानाम्) विद्वानों के (निष्कृतम्) संस्कृत अन्तःकरण को (अर्षसि) प्राप्त होते हैं, आप कैसे हैं (गोभिः) इन्द्रियों द्वारा ज्ञानरूपी वृत्तियों से (अञ्जानः) साक्षात्कार किये जाते हैं ॥२२॥
भावार्थ
अभ्युदय और निःश्रेयस का हेतु एकमात्र परमात्मा ही है, इसलिये उसी की उपासना करनी चाहिये ॥२२॥
विषय
पवमान वृषा
पदार्थ
(वारे) = वासनाओं का निवारण करनेवाले (अव्यये) = [अवि अय] विषयों में न जानेवाले पुरुष में (मृजानः) = शुद्ध किया जाता हुआ (पवमानः) = हमारे जीवन को पवित्र करनेवाला यह सोम (वृषा) = हमारे जीवन में शक्ति का सेचन करता है। तथा (वने) = उपासक में (अवचक्रदः) = वासनाओं व काम आदि शत्रुओं को दूर करके रुलानेवाला होता है [क्रदि रोदने] । काम आदि शत्रुओं को रहने का स्थान नष्ट करके यह रुलाता है। हे सोम वीर्य ! (पवमान) = पवित्र करनेवाला तू (गोभिः अञ्जानः) = ज्ञान की वाणियों से अलंकृत किया जाता हुआ (देवानां निष्कृतं) = देववृत्ति के पुरुषों के परिष्कृत हृदय में अर्षसि प्राप्त होता है, ज्ञान की वाणियों के द्वारा शरीर में ही सुरक्षित हुआ हुआ सोम शरीर की शोभा का कारण बनता है। यह शरीर में तभी स्थिर होता है जब कि हम हृदय को पवित्र व वासनाशून्य बनाने के लिये यत्नशील हों ।
भावार्थ
भावार्थ-सोम काम आदि शत्रुओं को स्थानभ्रष्ट करके रुलाता है। यह पवित्र हृदय पुरुषों में ही स्थिर होता है ।
विषय
प्रभु का दर्शन।
भावार्थ
हे (सोम) सर्वोत्पादक ! सर्वप्रेरक प्रभो ! (अव्यये) अविनाशी (वारे) सर्ववरणीय रूप में (मृजानः) परिशुद्ध, (पवमानः) सबको पवित्र करता हुआ, (वृषा) सब सुखों का वर्षक होकर तू (वने अव चक्रदः) सेवनीय, परम सुखद रूप में प्राप्त होता है। हे (पवमान) सर्वव्यापक, परिशुद्ध ! तू (गोभिः) वाणियों द्वारा रश्मियों से सूर्य के तुल्य (अंजानः) प्रकाशित होता हुआ (देवानाम्) विद्वानों, जीवों वा समस्त लोकों के (निःकृतम् अर्षसि) निःशेष रूप से किये उपासनादि कर्म वा हृदय स्थान को प्राप्त करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सप्तर्षय ऋषयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ६, ९, १४, २१ विराड् बृहती। २, ५ भुरिग् बृहती। ८,१०, १२, १३, १९, २५ बृहती। २३ पादनिचृद् बृहती। ३, १६ पिपीलिका मध्या गायत्री। ७, ११,१८,२०,२४,२६ निचृत् पंक्तिः॥ १५, २२ पंक्तिः॥ षड्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, universal spirit of generosity, cleansing, purifying and radiating in the protected heart of the cherished celebrant, you manifest loud and bold in the deep and beautiful world of existence and, sung and celebrated with songs of adoration, you move and manifest in the holy heart of divinities, pure, purifying, vibrating.
मराठी (1)
भावार्थ
अभ्युदय व नि:श्रेयस यांचा हेतू एकमेव परमात्माच आहे. त्यासाठी त्याचीच उपासना केली पाहिजे. ॥२२॥
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