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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 64/ मन्त्र 25
    ऋषिः - कश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वं सो॑म विप॒श्चितं॑ पुना॒नो वाच॑मिष्यसि । इन्दो॑ स॒हस्र॑भर्णसम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । सो॒म॒ । वि॒पः॒ऽचित॑म् । पु॒ना॒नः । वाच॑म् । इ॒ष्य॒सि॒ । इन्दो॒ इति॑ । स॒हस्र॑ऽभर्णसम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं सोम विपश्चितं पुनानो वाचमिष्यसि । इन्दो सहस्रभर्णसम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । सोम । विपःऽचितम् । पुनानः । वाचम् । इष्यसि । इन्दो इति । सहस्रऽभर्णसम् ॥ ९.६४.२५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 64; मन्त्र » 25
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 40; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (पुनानः) सर्वपावक ! (सोम) हे सर्वोपास्य देव ! (त्वम्) भवान् (विपश्चितम्) ज्ञानविज्ञानदायिनीं (वाचम्) वाणीं (इन्दो) हे सर्वप्रकाशक ! (सहस्रभर्णसम्) बहुविधभूषणवत् शोभा यस्यास्तादृशीं वाणीं (इष्यसि) त्वं वाञ्छसि ॥२५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (पुनानः) सबको पवित्र करनेवाले ! (सोम) सब के उपास्य देव परमात्मन् ! (इन्दो) हे सर्वप्रकाशक ! (त्वं) तुम (विपश्चितम्) ज्ञान-विज्ञान को देनेवाली (वाचम्) जो वाणी है (सहस्रभर्णसं) और अनन्त प्रकार के भूषणों के समान जिसकी शोभा है, ऐसी वाणी को (इष्यसि) चाहते हो ॥२५॥

    भावार्थ

    वेदवाणी के समान कोई अन्य भूषण ज्ञान का ज्ञापक नहीं है। वह सहस्त्रों प्रकार के भूषणों की शोभा को धारण किये हुई है। जो पुरुष इस विद्याभूषण को धारण करता है, वह सर्वोपरि दर्शनीय बनता है ॥२५॥

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    विषय

    विपश्चितं सहस्रभर्णसम्

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (त्वम्) = तू (पुनानः) = पवित्र करता हुआ, हमारे हृदयों को निर्मल करता हुआ (विपश्चितं वाचम्) = हमारे ज्ञान को बढ़ानेवाली प्रभु की वाणी को (इष्यसि) = हमारे में प्रेरित करता है । तेरे रक्षण से हमें प्रभु की वह वाणी सुन पड़ती है, जो कि हमारे ज्ञान का वर्धन करनेवाली है व हमें मार्ग को दिखानेवाली है। [२] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू (सहस्त्रभर्णसम्) = सहस्रशः भरण करनेवाली वाणी को हमारे में प्रेरित करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से पवित्र हृदय में हम प्रभु की वाणी को सुनते हैं जो कि हमारा मार्गदर्शन करती है और हमारा भरण करती है।

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    विषय

    शासक और विद्वान् का कर्त्तव्य, ज्ञानपूर्वक वाणी का प्रयोग करे।

    भावार्थ

    हे (सोम) उत्तम शासक ! हे (इन्दो) ऐन्नर्यवन् ! तू (पुनानः) सत्यासत्य का विवेक करता हुआ, (सहस्र-भर्णसम्) सहस्रों को भरण पोषण करने वाली और (विपश्चितं) ज्ञान से परिष्कृत (वाचम् इष्यसि) वाणी का प्रयोग कर। इति चत्वारिंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४, ७, १२, १३, १५, १७, १९, २२, २४, २६ गायत्री। २, ५, ६, ८–११, १४, १६, २०, २३, २५, २९ निचृद् गायत्री। १८, २१, २७, २८ विराड् गायत्री। ३० यवमध्या गायत्री ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, Indu, pure and purifying joy of divinity, you love, inspire and energise the Vedic voice of wisdom and omniscience which bears a thousand jewels of knowledge and science.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    वेदवाणीप्रमाणे इतर कोणतेही भूषण ज्ञानाचे ज्ञापक नाही. या वेदवाणीने हजारो प्रकारच्या भूषणांची शोभा धारण केलेली आहे. जो पुरुष या विद्याभूषणाला धारण करतो तो सर्वात श्रेष्ठ व दर्शनीय बनतो. ॥२५॥

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