अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
यत्त्वा॑ शि॒क्वः प॒राव॑धी॒त्तक्षा॒ हस्ते॑न॒ वास्या॑। आप॑स्त्वा॒ तस्मा॑ज्जीव॒लाः पु॒नन्तु॒ शुच॑यः॒ शुचि॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । त्वा॒ । शि॒क्व: । प॒रा॒ऽअव॑धीत् । तक्षा॑ । हस्ते॑न । वास्या॑ । आप॑: । त्वा॒ । तस्मा॑त् । जी॒व॒ला: । पु॒नन्तु॑ । शुच॑य: । शुचि॑म् ॥६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्त्वा शिक्वः परावधीत्तक्षा हस्तेन वास्या। आपस्त्वा तस्माज्जीवलाः पुनन्तु शुचयः शुचिम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । त्वा । शिक्व: । पराऽअवधीत् । तक्षा । हस्तेन । वास्या । आप: । त्वा । तस्मात् । जीवला: । पुनन्तु । शुचय: । शुचिम् ॥६.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
हे फाल ! (शिक्वः) शिक्षित अर्थात् बढ़ई की विद्या के जानने वाले (तक्षा) तर्खान ने (हस्तेन) हाथ द्वारा तथा (वास्या) वासी द्वारा (यत्) जो (त्वा) तुझे (परा अवधीत्) छेदा है, छील कर तैयार किया है, (तस्मात्) उससे (जीवलाः) जीवनप्रद (शुचयः) शुचि (आप) जल (त्वा) तुझे (पुनन्तु) पवित्र करें, और (शुचिम) शुचि करें।
टिप्पणी -
[हल के फाल का सम्बोधन कविता में है। यथा “अथापि पौरुषविधि कैः कर्मभिः स्तूयन्ते"। यथा "होतुश्चित्पूर्वे हविरद्यमाशत" (ऋ० १०।९४।२) इति "ग्रावस्तुतिरेव' (निरुक्त ७।२।७)। अर्थात् अचेतन पदार्थों की स्तुतियां पुरुषविधकर्मों द्वारा होती हैं, जैसे कि पत्थरो को कहा है कि तुम भक्षणीय हवि का प्राशन करो। पत्थरों पर सोम ओषधि को पीस कर, पेय सोमरस तैयार किया जाता है। शिक्वः; शिक्ष्= शिक्ष् + वः = शिक्वः। षकारस्य विलोपः। यथा पक्वः = पच् + वः। वास्या; वासी = Adze (आप्टे), वसूला, कुल्हाड़ी, Chisel (आप्टे), छैनी। काष्ठनिर्मित फाल तय्यार हो जाने पर उसे जल द्वारा धोकर साफ करने का विधान मन्त्र में हुआ है]।