अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 6/ मन्त्र 34
सूक्त - बृहस्पतिः
देवता - फालमणिः, वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
यस्मै॑ त्वा यज्ञवर्धन॒ मणे॑ प्र॒त्यमु॑चं शि॒वम्। तं त्वं श॑तदक्षिण॒ मणे॑ श्रैष्ठ्याय जिन्वतात् ॥
स्वर सहित पद पाठयस्मै॑ । त्वा॒ । य॒ज्ञ॒ऽव॒र्ध॒न॒ । मणे॑ । प्र॒ति॒ऽअमु॑ञ्चम् । शि॒वम् । तम् । त्वम् । श॒त॒ऽद॒क्षि॒ण॒ । मणे॑ । श्रैष्ठ्या॑य । जि॒न्व॒ता॒त् ॥६.३४॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्मै त्वा यज्ञवर्धन मणे प्रत्यमुचं शिवम्। तं त्वं शतदक्षिण मणे श्रैष्ठ्याय जिन्वतात् ॥
स्वर रहित पद पाठयस्मै । त्वा । यज्ञऽवर्धन । मणे । प्रतिऽअमुञ्चम् । शिवम् । तम् । त्वम् । शतऽदक्षिण । मणे । श्रैष्ठ्याय । जिन्वतात् ॥६.३४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 34
भाषार्थ -
(यज्ञवर्धन मणे) यज्ञ वर्धक हे मणि ! (यस्मै) जिसे मैंने (शिवम्, त्वा) शिवस्वरूप तुझ को, (प्रत्यमुञ्चम्) पहनाया है, (शतदक्षिण) हे सैकड़ों दक्षिणाओं वाली (मणे) मणि ! (तम्) उसे (त्वम्) तू (श्रैष्ठ्याय) श्रेष्ठ हो जाने के लिये (जिन्वतात्) प्रीणित कर, उत्साहित कर।
टिप्पणी -
[जिन्वतात् = जिवि प्रीणनार्थः (भ्वादिः), तृप्त करना, प्रसन्न करना। मन्त्र में अर्थ संगत होता है, "उत्साहित करना"। तृप्त मनुष्य नए कर्म करने में उत्साहित होता है, अतृप्त, उत्साहविहीन रहता है। मन्त्र में मणि द्वारा सर्वश्रेष्ठ मणि, परमेश्वर प्रतीत होता है। मन्त्र ३१, ३२ और ३४ में "श्रैष्ठ्याय" पद समानरूप में पठित है। अतः इन तीन मन्त्रों में परमेश्वर को ही मणि कहा है। सद्गुरु, जिस अभ्यासी को यह शिवमणि पहनाता है उस की प्रसन्नता और प्रोत्साहन के लिये, सद्गुरु परमेश्वर से प्रार्थना करता है। परमेश्वर "यज्ञवर्धन" है, संसाररूपी यज्ञ की वृद्धि में लगा हुआ है, ताकि देवों के उत्पादन और असुरों के क्षय द्वारा योग्य व्यक्ति अपवर्ग पा सकें। परमेश्वर के इस उद्देश्य में जो महानुभाव सहायता प्रदान करते हैं वे दक्षिणा के पात्र होते हैं। इसलिये परमेश्वर को "शतदक्षिण" कहा है। परमेश्वर है यज्ञ का कर्त्ता, "यजमान", और सहायता प्रदान करने वाले हैं इस यज्ञ में पुरोहित, ऋत्विक। ये दक्षिणाओं के अधिकारी हैं, दक्षिणाएं हैं मन्त्र २२ से ३४ तक कथित रस आदि पदार्थ, तथा मन्त्र २८ में कथित “सब भूतियाँ”१]। [१. अथवा "यज्ञवर्धन" हमारे यज्ञिय कर्मों को बढ़ाने वाले परमेश्वररूपी ऋत्विक; "शतदक्षिण" तदर्थ हमारी सैकड़ों स्तुतिरूप दक्षिणाओं के अधिकारी परमेश्वर।]