अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 12
सूक्त - अथर्वा
देवता - रुद्रः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - रुद्र सूक्त
धनु॑र्बिभर्षि॒ हरि॑तं हिर॒ण्ययं॑ सहस्र॒घ्नि श॒तव॑धं शिखण्डिन्। रु॒द्रस्येषु॑श्चरति देवहे॒तिस्तस्यै॒ नमो॑ यत॒मस्यां॑ दि॒शी॒तः ॥
स्वर सहित पद पाठधनु॑: । बि॒भ॒र्षि॒ । हरि॑तम् । हि॒र॒ण्यय॑म् । स॒ह॒स्र॒ऽघ्नि । श॒तऽव॑धम् । शि॒ख॒ण्डि॒न् । रु॒द्रस्य॑ । इषु॑: । च॒र॒ति॒ । दे॒व॒ऽहे॒ति: । तस्यै॑ । नम॑: । य॒त॒मस्या॑म् । दि॒शि । इ॒त: ॥२.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
धनुर्बिभर्षि हरितं हिरण्ययं सहस्रघ्नि शतवधं शिखण्डिन्। रुद्रस्येषुश्चरति देवहेतिस्तस्यै नमो यतमस्यां दिशीतः ॥
स्वर रहित पद पाठधनु: । बिभर्षि । हरितम् । हिरण्ययम् । सहस्रऽघ्नि । शतऽवधम् । शिखण्डिन् । रुद्रस्य । इषु: । चरति । देवऽहेति: । तस्यै । नम: । यतमस्याम् । दिशि । इत: ॥२.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
(शिखण्डिन्=नीलशिखण्डिन्) हे नीलेमेघरूपी केशसंनिवेश वाले विद्युद्-देव के सदृश परमेश्वर ! (मन्त्र ७), (हरितम्) संहार करने वाले, (सहस्रघ्नि) हजारों का हनन करने वाले, (शतवधम्) सैकड़ों प्रकार की विधियों से बध करने वाले (हिरण्यम्) परन्तु परिणाम में हितकर और रमणीय (धनुः) धनुष को (बिभर्षि) तू धारण करता है। (रुद्रस्य) तुझ रुलाने वाले की, (देवहेतिः) दिव्यास्त्र रूपी (इषुः) इषु, (इतः) इस जगत् में, (यतमस्याम् दिशि) जिस दिशा में भी (चरति) किसी लक्ष्य पर चलती है (तस्यै) उस के निराकरणार्थ (नमः) तुझे नमस्कार है।
टिप्पणी -
[शिखण्डिन्= नीलशिलण्डिन् (देखो मन्त्र ७ की व्याख्या) नीले अर्थात् काले मेघरूपी केशसंनिवेश वाला विद्युत् देव। विद्युद्-देव का धनुष् वर्षाकाल में इन्द्रधनुष के रूप में प्रकट होता है, जोकि रमणीय प्रतीत होता है, और जो महासंहारी वज्ररूपी-इषु का प्रहार करता है। इस दृष्टि से परमेश्वर और विद्युद्-देव परस्पर सदृश हैं, और दोनों ही रुद्ररूप हैं, दोनों के धनुष और इषु हैं। धनुष् तो लक्ष्य पर फैंका नहीं जाता, वह तो धानुष्क के हाथ में ही रहता है। चलाई जाती है इषु। अतः इसी इषु के वर्जनार्थ, निराकरणार्थ रुद्र को नमस्कार किया है, ताकि वह अनुकूल होकर, हम पर इषु न चलाए। "तस्यै" में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग "क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः” (अष्टा० २।३।१४) द्वारा उपपन्न हो सकता है। तस्यै नमः = तां निवारयितुं नमः कुर्मः। प्रत्येक व्यक्ति इषु के निवारण को ही चाहता है।]