अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 22
सूक्त - अथर्वा
देवता - रुद्रः
छन्दः - त्रिपदा विषमपादलक्ष्मा महाबृहती
सूक्तम् - रुद्र सूक्त
यस्य॑ त॒क्मा कासि॑का हे॒तिरेक॒मश्व॑स्येव॒ वृष॑णः॒ क्रन्द॒ एति॑। अ॑भिपू॒र्वं नि॒र्णय॑ते॒ नमो॑ अस्त्वस्मै ॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । त॒क्मा । कासि॑का । हे॒ति: । एक॑म् । अश्व॑स्यऽइव । वृष॑ण: । क्रन्द॑: । एति॑ । अ॒भि॒ऽपू॒र्वम् । नि॒:ऽनय॑ते । नम॑: । अ॒स्तु॒ । अ॒स्मै॒ ॥२.२२।
स्वर रहित मन्त्र
यस्य तक्मा कासिका हेतिरेकमश्वस्येव वृषणः क्रन्द एति। अभिपूर्वं निर्णयते नमो अस्त्वस्मै ॥
स्वर रहित पद पाठयस्य । तक्मा । कासिका । हेति: । एकम् । अश्वस्यऽइव । वृषण: । क्रन्द: । एति । अभिऽपूर्वम् । नि:ऽनयते । नम: । अस्तु । अस्मै ॥२.२२।
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 22
भाषार्थ -
(यस्य) जिस परमेश्वर का (तकमा) ज्वर; तथा (कासिका) कुत्सित शब्द करने वाली खांसी (हेतिः) अस्त्रः है, जो खांसी (एकम्) किसी एक पुरुष को, (वृषणः) शक्तिशाली (अश्वस्य) अश्व के (क्रन्दः) ह्रेषा शब्द की (इव) तरह (एति) प्राप्त होती है, वह हेति (निर्णयते) मानो, स्वयं, निर्णय करती है कि (अभिपूर्वम्) किसे पहिले प्राप्त होना है।
टिप्पणी -
[ज्वर और कासिका = कासिका "कुक्कर-खांसी" प्रतीत होती है, जिसे कि "Fertussis, तथा whooping-cough" कहते हैं। यह ह्रेषा की तरह खांसते समय, ऊंचा शब्द करती है। यह पहिले किसी एक व्यक्ति को प्राप्त होती है, तदनन्तर सम्पर्क द्वारा अन्यत्र फैल जाती है। यह कमजोर व्यक्ति को मानो स्वयं चुनने का निर्णय करती है। ह्रेषा = अश्व के नथनों का शब्द, हिनहिनाना]