अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 17
स॑हस्रा॒क्षम॑तिप॒श्यं पु॒रस्ता॑द्रु॒द्रमस्य॑न्तं बहु॒धा वि॑प॒श्चित॑म्। मोपा॑राम जि॒ह्वयेय॑मानम् ॥
स्वर सहित पद पाठस॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षम् । अ॒ति॒ऽप॒श्यम् । पु॒रस्ता॑त् । रु॒द्रम् । अस्य॑न्तम् । ब॒हु॒ऽधा । वि॒प॒:ऽचित॑म् । मा । उप॑ । अ॒रा॒म॒ । जि॒ह्वया॑ । ईय॑मानम् ॥२.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
सहस्राक्षमतिपश्यं पुरस्ताद्रुद्रमस्यन्तं बहुधा विपश्चितम्। मोपाराम जिह्वयेयमानम् ॥
स्वर रहित पद पाठसहस्रऽअक्षम् । अतिऽपश्यम् । पुरस्तात् । रुद्रम् । अस्यन्तम् । बहुऽधा । विप:ऽचितम् । मा । उप । अराम । जिह्वया । ईयमानम् ॥२.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 17
भाषार्थ -
(सहस्राक्षम्) हजारों आंखों वाले अर्थात् सर्वद्रष्टा, (अतिपश्यम्) बहुत दूर तक देखने वाले, (पुरस्तात्) पूर्व दिशा में (अस्यन्तम) अन्धकार का निरसन करने वाले, (विपश्चितम्) मेधावी, (बहुधा ईयमानम्) प्रायः आते हुए (रुद्रम्) रुद्र के प्रति (जिह्वया) जिह्वा द्वारा [नमस्कार करने में] (मा उपाराम) हम उपरत न हों, विश्राम न पाएँ, अर्थात् जिह्वा द्वारा उस की सदा स्तुतियां करें।
टिप्पणी -
[बहुधा ईयमानम्= इन पदों द्वारा यह दर्शाया है कि प्रातः काल पूर्व दिशा में मुखकर समाधि का अभ्यास करनेवाले को प्रायः रूद्र-परमेश्वर के दर्शन होते हैं, वह समाधि अवस्था में चित्त में आता है, प्रकट होता है। "प्रायः" पद द्वारा यह प्रकट किया है कि समाधि के ठीक प्रकार न लगने पर वह रुद्र-परमेश्वर दर्शन नहीं भी देता। सहस्राक्षम्, अतिपश्यम्= अति पश्यम में दूर तक, देखने में रूद्र को सहस्राक्ष अर्थात् हजारों आंखों वाला कहा है।]