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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 14/ मन्त्र 10
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - द्विपदासुरी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    वि॒राजा॑न्ना॒द्यान्न॑मत्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒ऽराजा॑ । अ॒न्न॒ऽअ॒द्या । अन्न॑म् । अ॒त्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१४.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विराजान्नाद्यान्नमत्ति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विऽराजा । अन्नऽअद्या । अन्नम् । अत्ति । य: । एवम् । वेद ॥१४.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 14; मन्त्र » 10

    भाषार्थ -
    (यः) जो व्यक्ति (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता है, और तदनुसार आचरण करता है, वह (अनाद्या) अन्न का भोजन करने वाली (विराजा) विशिष्ट दीप्ति की दृष्टि से (अन्नम्) अन्न को (अत्ति) खाता है। अर्थात् वह इस दीप्ति को बनाएं रखने की दृष्टि से अन्न खाता है।

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