अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 14/ मन्त्र 2
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - द्विपदासुरी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
मन॑सान्ना॒देनान्न॑मत्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठमन॑सा । अ॒न्न॒ऽअ॒देन॑ । अन्न॑म् । अ॒त्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
मनसान्नादेनान्नमत्ति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठमनसा । अन्नऽअदेन । अन्नम् । अत्ति । य: । एवम् । वेद ॥१४.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(यः) जो व्यक्ति (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता है वह (अन्नादेन), अन्न खाने वाले (मनसा) मन के द्वारा (अन्नम्) अन्न को (अत्ति) खाता है।
टिप्पणी -
[अर्थात् यह जान कर अन्न खाता है कि ऐसा अन्न मैंने खाना है जिस से मन का बल, स्वास्थ्य और पवित्रता बढ़े]