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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 14/ मन्त्र 22
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - द्विपदासुरी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    प्रा॒णेना॑न्ना॒देनान्न॑मत्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒णेन॑ । अ॒न्न॒ऽअ॒देन॑ । अन्न॑म् । अ॒त्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑॥१४.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राणेनान्नादेनान्नमत्ति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्राणेन । अन्नऽअदेन । अन्नम् । अत्ति । य: । एवम् । वेद॥१४.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 14; मन्त्र » 22

    भाषार्थ -
    (यः) जो व्यक्ति (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता और तदनुसार आचरण करता है, वह (अन्नादेन ) अन्नभोजी (प्राणेन) प्राण की दृष्टि से (अन्नम्, अत्ति) अन्न खाता है। अर्थात् प्राण की परिपुष्टि की दृष्टि से अन्न खाता है, भोगदृष्टि से नहीं।

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