अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 14/ मन्त्र 8
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - द्विपदासुरी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
आहु॑त्यान्ना॒द्यान्न॑मत्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआऽहु॑त्या । अ॒न्न॒ऽअ॒द्या । अन्न॑म् । अ॒त्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ । ॥१४.८॥
स्वर रहित मन्त्र
आहुत्यान्नाद्यान्नमत्ति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठआऽहुत्या । अन्नऽअद्या । अन्नम् । अत्ति । य: । एवम् । वेद । ॥१४.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 14; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(यः) जो व्यक्ति (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता है, वह (अन्नाद्या) अन्न भोगिनी (आहुत्या) आहुति द्वारा (अन्नम्) अन्न को खाता है।
टिप्पणी -
[अर्थात वह उस अन्न को खाता है जो कि आहुतिरूप है, और समझता है कि वह अपने शरीर में अग्निहोत्र करता है।]