अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 14/ मन्त्र 12
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - भुरिक् प्राजापत्या अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
ओष॑धीभिरन्ना॒दीभि॒रन्न॑मत्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठओष॑धीभि: । अ॒न्न॒ऽअ॒दीभि॑: । अन्न॑म् । अ॒त्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१४.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
ओषधीभिरन्नादीभिरन्नमत्ति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठओषधीभि: । अन्नऽअदीभि: । अन्नम् । अत्ति । य: । एवम् । वेद ॥१४.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 14; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
(यः) जो व्यक्ति (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता है और तदनुसार आचरण करता है, वह (अन्नादीभिः) अन्नभोगी (ओषधीभिः) शरीरस्थ ओषधिरूप तत्वों की दृष्टि से (अन्नम्, अत्ति) अन्न खाता है।