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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 2/ मन्त्र 21
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स उद॑तिष्ठ॒त्सउदी॑चीं॒ दिश॒मनु॒ व्यचलत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । उत् । अ॒ति॒ष्ठ॒त् । स: । उदी॑चीम् । दिश॑म् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥२.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स उदतिष्ठत्सउदीचीं दिशमनु व्यचलत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । उत् । अतिष्ठत् । स: । उदीचीम् । दिशम् । अनु । वि । अचलत् ॥२.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 2; मन्त्र » 21

    भाषार्थ -
    (सः) वह व्रती तथा परहितकारी संन्यासी (उदतिष्ठत्) उठा, प्रयत्नवान् हुआ, (सः) वह (उदीचीम्, दिशम्, अनु) उत्तर दिशा के साथ साथ, या उसे लक्ष्य करके (व्यचलत्) विशेषतया चला या विचरा।

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