अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 1/ मन्त्र 10
मैतं पन्था॒मनु॑ गा भी॒म ए॒ष येन॒ पूर्वं॒ नेयथ॒ तं ब्र॑वीमि। तम॑ ए॒तत्पु॑रुष॒ मा प्र प॑त्था भ॒यं प॒रस्ता॒दभ॑यं ते अ॒र्वाक् ॥
स्वर सहित पद पाठमा । ए॒तम् । पन्था॑म् । अनु॑ । गा॒: । भी॒म: । ए॒ष: । येन॑ । पूर्व॑म् । न । इ॒यथ॑ । तम् । ब्र॒वी॒मि॒ । तम॑: । ए॒तत् । पु॒रु॒ष॒ । मा । प्र । प॒त्था॒: । भ॒यम् । प॒रस्ता॑त् । अभ॑यम् । ते॒ । अ॒र्वाक् ॥१.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
मैतं पन्थामनु गा भीम एष येन पूर्वं नेयथ तं ब्रवीमि। तम एतत्पुरुष मा प्र पत्था भयं परस्तादभयं ते अर्वाक् ॥
स्वर रहित पद पाठमा । एतम् । पन्थाम् । अनु । गा: । भीम: । एष: । येन । पूर्वम् । न । इयथ । तम् । ब्रवीमि । तम: । एतत् । पुरुष । मा । प्र । पत्था: । भयम् । परस्तात् । अभयम् । ते । अर्वाक् ॥१.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 10
भाषार्थ -
(एतम्) इस (पन्थाम्) प्रेय पथ का (मा अनुगाः) अनुगमन न कर, (एषः) यह पथ (भीमः) भयानक है, (येन) जिस पथ द्वारा (पूर्वम्) पुराकाल में (न इयथ) तुम अभी नहीं गए (तम्) उसे (ब्रवीमि) मैं आचार्य कहता हूं। (पुरुष) हे पुरुष ! (एतत् तमः) इस प्रेयरूपी तमोमय पथ को (मा प्र पत्थाः) न स्वीकार कर (परस्तात्) यह परला पथ है (भयम्) जो कि भयानक है, (अर्वाक्) और इधर का ब्रह्मचर्य पथ (ते, अभयम्) तेरे लिये भयरहित है।
टिप्पणी -
[मन्त्र ९ में "पथिरक्षी" द्वारा पथ का निर्देश हुआ है, यह मार्ग, "जिस में कि "श्वानौ" अर्थात् श्याम और शबल दो कुत्ते रक्षक हैं" भयानक है। यह मार्ग तमोगुणी और रजस्तमस्-गुणी व्यक्तियों का है, सत्त्वगुणियों का नहीं। यह मार्ग सत्त्वगुणियों के लिये परे१ का मार्ग है, और अर्वाक मार्ग है ब्रह्मचर्य का मार्ग। यह "अर्वाक्" मार्ग तेरे लिये अभयरूप है, श्रेयरूप है। प्रेय और श्रेय मार्गों की विस्तृत व्याख्या के लिये देखो "कठोपनिषद२"]। [१. अर्थात् त्याज्य है। २. श्रेय और प्रेय मार्ग (अध्याय १, बल्ली २, सन्दर्भ १-५)।