अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - आयुः
छन्दः - प्रस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
श्या॒मश्च॑ त्वा॒ मा श॒बल॑श्च॒ प्रेषि॑तौ य॒मस्य॒ यौ प॑थि॒रक्षी॒ श्वानौ॑। अ॒र्वाङेहि॒ मा वि दी॑ध्यो॒ मात्र॑ तिष्ठः॒ परा॑ङ्मनाः ॥
स्वर सहित पद पाठश्या॒म: । च॒ । त्वा॒ । मा । श॒बल॑: । च॒ । प्रऽइ॑षितौ । य॒मस्य॑ । यौ । प॒थि॒रक्षी॒ इति॑ प॒थि॒ऽरक्षी॑ । श्वानौ॑ । अ॒वाङ् । आ । इ॒हि॒ । मा । वि । दी॒ध्य॒: । मा । अत्र॑ । ति॒ष्ठ॒: । परा॑क्ऽमना: ॥१.९॥
स्वर रहित मन्त्र
श्यामश्च त्वा मा शबलश्च प्रेषितौ यमस्य यौ पथिरक्षी श्वानौ। अर्वाङेहि मा वि दीध्यो मात्र तिष्ठः पराङ्मनाः ॥
स्वर रहित पद पाठश्याम: । च । त्वा । मा । शबल: । च । प्रऽइषितौ । यमस्य । यौ । पथिरक्षी इति पथिऽरक्षी । श्वानौ । अवाङ् । आ । इहि । मा । वि । दीध्य: । मा । अत्र । तिष्ठ: । पराक्ऽमना: ॥१.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(यमस्य) यम के (श्वानौ) दो कुत्ते हैं, (श्यामः) काला (च) और (शबलः च) चितकबरा (प्रेषितौ) [ये यम के] भेजे हुए हैं, (यौ) जो दोनों कि (पथिरक्षी) [यम द्वारा दर्शाए] मार्ग में रक्षक हैं, [चौकीदार हैं]। (अर्वाङ) इधर अर्थात् इस आश्रम की ओर (एहि) आ (विदीध्यः मा) विविध पदार्थों का ध्यान न कर या विविध प्रकार की चिन्ताएं न कर, और (अत्र) इस ब्रह्मचर्याश्रम में (पराङ्मनाः) कर्तव्य पराङ्मुख हुआ (मा तिष्ठः) तू बैठा न रह।
टिप्पणी -
[यम का अभिप्राय है "नियन्ता परमेश्वर"। इसे "महायम" भी कहा है (अथर्व० १३।४ (१)।५), यह नियन्ता है और सर्वतो महान् है। दो कुत्ते हैं तमोगुण और रजस् तथा तमस् का मिश्रण। "तमस्" श्यामः काला कुत्ता है, और रजस् तमस् का मिश्रण शबल अर्थात् चितकबरा कुत्ता। ये दोनों प्रेयमार्ग के पथिक को प्रेयमार्ग में बान्धे रखते हैं। इन से बचने का उपाय है ब्रह्मचर्य जीवन। दोनों कुत्ते यम द्वारा निर्दिष्ट मार्ग की रक्षा करते हैं, ताकि तमोगुणी की ओर रजस्-तमस् के मिश्रणवाले व्यक्ति की निजकर्मों से बन्धी हुई आत्मा इस मार्ग में रहती हुई, निजकर्मों के फलों को भोग सके]।