अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 22
सूक्त - शुक्रः
देवता - कृत्यादूषणम् अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्र्यवसाना सप्तदा विराड्गर्भा भुरिक्शक्वरी
सूक्तम् - प्रतिसरमणि सूक्त
स्व॑स्ति॒दा वि॒शां पति॑र्वृत्र॒हा वि॑मृ॒धो व॒शी। इन्द्रो॑ बध्नातु ते म॒णिं जि॑गी॒वाँ अप॑राजितः। सो॑म॒पा अ॑भयङ्क॒रो वृषा॑। स त्वा॑ रक्षतु स॒र्वतो॒ दिवा॒ नक्तं॑ च वि॒श्वतः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस्व॒स्ति॒ऽदा: । वि॒शाम् । पति॑: । वृ॒त्र॒ऽहा । वि॒ऽमृ॒ध: । व॒शी । इन्द्र॑: । ब॒ध्ना॒तु॒ । ते॒ । म॒णिम् । जि॒गी॒वान् । अप॑राऽजित: । सो॒म॒ऽपा: । अ॒भ॒य॒म्ऽक॒र: । वृषा॑ । स: । त्वा॒ । र॒क्ष॒तु॒ । स॒र्वत॑: । दिवा॑ । नक्त॑म् । च॒ । वि॒श्वत॑: ॥५.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वस्तिदा विशां पतिर्वृत्रहा विमृधो वशी। इन्द्रो बध्नातु ते मणिं जिगीवाँ अपराजितः। सोमपा अभयङ्करो वृषा। स त्वा रक्षतु सर्वतो दिवा नक्तं च विश्वतः ॥
स्वर रहित पद पाठस्वस्तिऽदा: । विशाम् । पति: । वृत्रऽहा । विऽमृध: । वशी । इन्द्र: । बध्नातु । ते । मणिम् । जिगीवान् । अपराऽजित: । सोमऽपा: । अभयम्ऽकर: । वृषा । स: । त्वा । रक्षतु । सर्वत: । दिवा । नक्तम् । च । विश्वत: ॥५.२२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 22
भाषार्थ -
(स्वस्तिदाः) कल्याणप्रद (विशांपतिः) प्रजाओं का पति अर्थात् रक्षक, (वृत्रहा) पापनाशक या आवरण अर्थात् घेरा डालने वाले शत्रु का हनन करने वाला (विमृधः) संग्रामों से रहित अर्थात् जिसके साथ संग्राम करने वाला कोई शत्रु नहीं रहा, (वशी) सब को वश में किये हुआ, (जिगीवान्) जयशील, (अपराजितः) जो कभी पराजित नहीं हुआ, (सोमपाः) वीर्य शक्ति की रक्षा करने वाला, (अभयङ्करः) प्रजा को भयरहित करने वाला (वृषा) सुखवर्षी (इन्द्रः) सम्राट्, (ते) हे [राष्ट्र के राजन्] तेरे लिये, अर्थात् तेरी रक्षा के लिये तेरे साथ (मणिम्) पुरुषरत्न सेनाध्यक्ष को (बध्नातु) सुदृढ़बद्ध करे। (सः) वह पुरुषरत्न (सर्वतः) सब प्रकार (विश्वतः) तथा सब ओर से (दिवा नक्तम्, च) दिन और रात (त्वा रक्षतु) तुझे सुरक्षित करे।
टिप्पणी -
[प्रत्येक राष्ट्र के राष्ट्रपति-राजा की सुरक्षा के लिये, साम्राज्य का अधिपति सम्राट्, सेनाध्यक्ष नियत करे। निज सेनाध्यक्ष की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को नहीं। यह अधिकार सम्राट् का है। ताकि उसके राष्ट्रों में कहीं विप्लव हो जाय तो सम्राट् द्वारा नियुक्त सेनाध्यक्ष सम्राट् की आज्ञानुसार उस का शमन कर सके। मृधः संग्रामनाम (निघं० २।१७)। सोम= Semen [वीर्य] अथवा बलकारी सोम-रस का पीने वाला]।